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________________ सरस्वती [भाग ३६ है। इनमें से कोई दो-तीन भी ऐसे मजबूत हो सकते मैंने बताया था कि ज्यों ही इन देशों ने इस्लाम हैं कि वे, अन्य भेद-भावों की विद्यमानता में स्वीकार किया, त्यों ही इनकी अपनी-अपनी असली भी, जाति बना दें। जातीयता के वास्तविक भाव जातीयता मिट गई और अरवी-सभ्यता में जज्ब हो (स्पिरिट) को समझना बहुत आसान हो जाता जाने से ये एक प्रकार के स्थायी दासत्व का शिकार है, अगर हम एक मनुष्य के जीवन को अपने बन गये। पं. जवाहरलाल ने मिस्र का उदाहरण संमुख रख लें। छः-सात बरस का बच्चा है। उसका लिया है। उन्होंने कहा है कि मिस्र में कई हजार रङ्ग-रूप और बौद्धिक अवस्था बच्चों की-सी है। वर्ष तक एक सभ्यता रही। "फिर क़रीब २,२०० वर्ष वही बच्चा बड़ा होकर लड़का बनता है और फिर हुए सिकंदर ने मिस्र फतह किया और इसके बाद जवान होता है। बाद में बूढ़ा हो जाने पर उसके रोमवासियों ने । १,३०० बरस हुए मुसलमानों ने शरीर और दिमाग़ में अगणित परिवर्तन आ जाते हैं। उसको विजित किया। इस पर पण्डित जी का परन्तु एक बुड्ढा आदमी भी अपने छुटपन की हालत सवाल है कि मेरे पहले लेख में किस युग के मिस्त्रियों को याद करके इस बात का ज्ञान रखता है कि को असली जाति कहा गया है। इसका उत्तर यह है उसका जीवन बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बराबर, कि जब तक मिस्र-वासियों ने अपने अंदर जातीय सिलसिलेवार, एक ही चला आता है। जीवन का अनुवर्तन या सिलसिले (Continuity) को कायम इस प्रकार जारी रहना या जीवन-अनुवर्तन (Conti- रक्खा और जब तक उनके अंदर यह भाव विद्यnuity of Life) ही वास्तविक जातीयता है। मान रहा कि वे उसी जाति में से उत्पन्न हुए हैं यदि हम जातीयता के इस सिद्धान्त को अच्छी जिसने पिरामिडों को बनाया और योरप में तरह से समझ लें तो 'स्व' या 'हिंदूत्व' के विचार अपनी सभ्यता फैलाई, तब तक वे चाहे स्वाधीन के विषय में जितने प्रश्न या संदेह पं० जवाहरलाल रहे, चाहे रोमन लोगों के अधीन रहे या यूनानियों ने किये हैं, वे खुद-ब-खुद मिट जाते हैं । हिन्दुओं के के, उनकी जातीयता बराबर बनी रही। परंतु वर्णो या जातियों के विभाजन को, उनके सामाजिक जब अरबवासियों ने मिस्र को विजित करके संस्कारों और रस्मों को, उनके विभिन्न मत-मतान्तर को मिस्रवासियों को उनके समस्त भूत (Past) से अलग ! मैं हिन्दुओं की जातीयता नहीं समझता, बल्कि जाति कर दिया तब उस समय मिस्री-जाति मिट गई और के लिए एक प्रकार का लिबास खयाल करता हूँ, जिसे तब मिस्र में उस बड़े शानदार मिस्त्री वृक्ष के स्थान बनाये रखना या बदल देना जाति के अपने इख्ति- में अरब की एक शाखा गाड़ दी गई। यार की बात है। और, इसमें कोई परिवर्तन कर देने यह बात ब्रिटेन के इतिहास से भी भली भाँति से जाति मिट नहीं जाती, बल्कि इसे एक प्रकार की प्रकट हो जाती है। ब्रिटेनवासी जो केल्ट (Celts) उन्नति (Progress) का साधन समझा जा सकता कहलाते थे, तीन सौ वर्ष तक रोमन-शासन के है। इस प्रश्न पर दो प्रकार के लोग पाये जाते हैं; अधीन रहे। रोमन-दासत्व के होते हुए उनका एक वे जो परिवर्तन के खिलाफ़ होते हैं-रूढ़िवादी मजहब, संस्कृति और जातीयता बने रहे । (उनके (Conservative ) और दूसरे तबदीली-पसंद मजहब, और रीति-रवाज पुराने आर्यो -जैसे और (Progressive)। वर्तमान हिन्दुओं से मिलते-जुलते थे।) जब एंग्लो___ इस अवसर पर एक अन्य बड़े सवाल का सेक्सन लोगों ने ब्रिटेन पर आक्रमण करने आरंभ जवाब भी दे दिया जाय तो कोई हर्ज न होगा। किये तब उन्होंने अपनी जीतों के साथ ब्रिटेनअपने लेख में मिस्र, ईरान आदि के उदाहरण देकर वासियों को मिटा दिया और उस जाति के स्थान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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