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________________ सरस्वती [भाग ३६ जाति-व्यवस्था व वर्णाश्रम-व्यवस्था कायम है तब तक हिन्दू- ट्रेन में सफर कर चुका हूँ। वहाँ मुझे सादे कपड़ों में एक जाति प्रगति-पथ पर अन्य जातियों के समकक्ष आगे चलने गुप्तचर के सिवा और कोई भी शरीर-रक्षक दिखलाई योग्य नहीं हो सकती। हम इस बात में बिलकुल विश्वास नहीं दिया। मुझे ज्ञात हुया कि प्रिंस अाफ़ वेल्स तो नहीं करते कि इसी सामाजिक व्यवस्था ने हिन्दू-जाति किसी तरह जब इस गुप्तचर की नज़र से भी अपने को को अब तक बचाये रक्खा है । सम्भव है, इस विचारवालों अलग कर पाते हैं तब उन्हें बड़ी खुशी होती है। का कहना ही सत्य हो। मगर आज यह व्यवस्था वर्तमान परन्तु मुसोलिनी, हिटलर, स्टेलिन और मुस्तफ़ा समय के लिए सर्वथा अनुपयुक्त और अनुपयोगी सिद्ध हो कमाल पाशा के लिए बहुत-से सशस्त्र पहरेदारों की चुकी है। आज तो इसका जड़-मूल से नाश ही इष्ट है। आवश्यकता होती है। इसका एक कारण और भी है-- जब तक हिन्दू-समाज में सामाजिक स्थिति की दृष्टि से डिक्टेटर और उनके अनुयायी राज्य का शासन चलाने मालवीय जी और डाक्टर अम्बेडकर एक पाये पर नहीं के लिए अपने आपको इतना आवश्यक समझते हैं कि समझे जायेंगे, जब तक हिन्दू-धर्म-व्यवस्था मनुष्य और उनके सामने सदा यह समस्या नाचती रहती है कि उनकी मनुष्य के बीच भेद देखती है और उसे अपने धार्मिक मृत्यु के बाद स्थान ग्रहण करने के लिए कौन अावेगा। नियमों से स्थिर करती है तब तक हिन्दू-जाति के उद्धार हिटलर की अाशा करना व्यर्थ है। जर्मनों का विश्वास है कि हिटलर के रूप में उन्हें ऐसा व्यक्ति मिला है जो-और केवल वही उनके राष्ट्र डिक्टेटरों की रक्षा का प्रबन्ध को योरप में सबसे अधिक शक्तिशाली बना सकता है। योरप में आज-कल डिक्टेटरों का बोलबाला है। इसलिए जिन देशों में तानाशाही है उनमें डिक्टेटर को जितने वे लोकप्रिय हैं, उतनी ही उनकी जान का मारना या उसे मारने का प्रयत्न करना सबसे भारी जुर्म जोखिम भी है। उनकी रक्षा का कहाँ क्या प्रबन्ध माना जाता है। है, इस सम्बन्ध में 'स्टेट्स मैन' में एक ज्ञातव्य लेख फिर भी मुझे बर्लिन में ऐसे लोग मिले हैं जिनका प्रकाशित हुआ है। यहाँ हम 'भारत' से उसका कहना है कि उन्होंने हिटलर को सड़क पर अकेले जाते अनुवाद उद्धृत करते हैं देखा है । इस बात की सम्भावना तो अवश्य है, पर संसार में डिक्टेटरों की रक्षा के लिए, जितना प्रबन्ध ऐसा शायद साल भर पूर्व हुअा होगा जब तक कि करना पड़ता है उतना बादशाहों और सम्राटों की रक्षा हिटलर ने विद्रोहियों की हत्या करके अपने दल की के लिए भी नहीं । बात यह है कि डिक्टेटर शासना- सफ़ाई नहीं की थी। इसके बाद से तो हिटलर जब कभी धिकार अपने अातंक के कारण पाते हैं और अातंक के सार्वजनिक रूप में प्रकट होते हैं तब वे चारों तरफ़ से बल पर ही उनका शासन भी चलता है। डिक्टेटरों को सशस्त्र पहरेदारों से घिरे रहते हैं। बराबर अपने मारे जाने का भय लगा रहता है। सैनिक अभी कुछ दिन हुए मैं हिटलर से मिलने गया प्रदर्शन, कवायद का निरीक्षण और जुलूसों के समय था। हर हिटलर केसरहोफ़ होटल में रहते हैं । हमने अकसर षड्यंत्रकारी कुछ ही गज़ की दूरी पर उन्हें मारने देखा कि जिस कमरे में वे बैठते हैं उसके द्वार पर ६ के घात में फिरा करते हैं । यदि गुप्तचर पुलिस डिक्टेटरों सशस्त्र पहरेदार अाटोमेटिक पिस्तौल लिये हुए तैनात की रक्षा न करती तो शायद वे अधिक दिन तक कभी थे। ये लोग हिटलर के टेबिल से कुछ ही कदम दूर जीवित न रह सकते। ब्रिटिश राजकुल की रक्षा के थे। जब कोई व्यक्ति हिटलर से मिलने के लिए कमरे लिए बहुत ही कम प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। मैं में घुसता है तब ये लोग बड़ी सतर्कता से उस व्यक्ति स्वयं प्रिंस अाफ़ वेल्स तथा ड्यूक अाफ़ ग्लाउस्टर के साथ की जाँच करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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