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सामयिक साहित्य
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हिन्द-समाज का कलंक
में उनका आदर नहीं होता, इसलिए धर्मान्तर करना तिल ज भी हाल में डाक्टर अम्बेड- चाहिए । यह बात नहीं है कि ऐसा केवल डाक्टर अम्बेडकर
लोक कर ने घोषणा की है कि ही अनुभव करते हों । प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पुरातत्त्ववेत्ता
हिन्दू-धर्म में उन्हें आत्म- श्री काशीप्रसाद जायसवाल भी सुना जाता है कि कहा M विकास का पर्याप्त क्षेत्र नहीं करते थे क्योंकि मैं हिन्दू के घर में पैदा हुया हूँ इसलिए मिलता, अतएव वे उसे कभी भी समाज में वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त कर सकता
जो और किसी देश में अपनी योग्यता और क्षमता मे
प्राप्त कर सकता था। ऐसे न जाने कितने ही योग्य व्यक्ति ईसाई, मुसलमान और आर्य-समाज आदि के अपने जन्म के कारण समाज में हीन और तुच्छ दृष्टि से अनयायियों ने उन्हें अपने अपने धर्म में आने के देखे जाते होंगे। इसके कारण तथा कतिपय निम्न श्रेणी लिए आह्वान किया है। उधर कुछ हिन्दुओं ने उन में अन्दर ही अन्दर सुलग रही असन्तोष की अग्नि ही पर रोप भी प्रकट किया है। यद्यपि हमारा यह अाज डाक्टर अम्बेडकर के धर्म-परिवर्तन के निश्चय में विश्वास है कि हिन्दू-धर्म किसी के आत्मविकास प्रकट हुई है। इसलिए डाक्टर अम्बेडकर की आलोचना में बाधक नहीं सिद्ध हो सकता, तथापि हमें उन करने के बजाय यदि हम आत्म-निरीक्षण करें तो अधिक कारणों पर भी विचार करने की आवश्यकता है उपयुक्त होगा। जिनसे डाक्टर अम्बेडकर जैसे लोग हिन्दू-धर्म से डाक्टर अम्बेडकर के धर्मान्तर के निश्चय से ज़माने असन्तुष्ट हैं। इस सम्बन्ध में उपर्युक्त शीर्षक के पर कोई असर होगा, इसकी भी हमें कोई अाशा नहीं है। अन्दर 'नवयग' ने एक विचार-पूर्ण अग्रलेख लिखा जिस समाज में असमानता के भाव और विषम व्यवहार के है, जिसका एक अंश हम नीचे उद्धृत करते हैं- कारण एक व्यक्ति यह अनुभव करता है कि वह अपनी ___डाक्टर अम्बेडकर का धर्म-परिवर्तन का निश्चय योग्यता, क्षमता से इतना ऊँचा जिस समाज में नहीं उठ हिन्दू-समाज-व्यवस्था और धर्म पर कलंक का एक अमिट सकता उस समाज को यदि कोई व्यक्ति छोड़ दे तो इसमें धव्या है। डाक्टर अम्बेडकर एक उच्च शिक्षित व दोप छोड़नेवाले व्यक्ति का नहीं है, बल्कि सामाजिक सम्भ्रान्त व्यक्ति हैं। वे कानून और अर्थशास्त्र के रचना और सामाजिक व्यवस्था का है। जब तक व्यवस्था एक महान् पंडित हैं । जब ऐसा व्यक्ति यह अनुभव कायम है तब तक डाक्टर अम्बेडकर-सदृश व्यक्ति उस करता है कि मेरे पूर्ण विकास के लिए हिन्दू-समाज समाज से निकलते ही रहेंगे। इमलिए आवश्यकता इस में अवसर और क्षेत्र नहीं है तब हर एक विचार- बात की है कि हिन्दू-जाति अपने को टटोले और उन शील व्यक्ति को मानना होगा कि हिन्दू-जाति की सामा- छिद्रों को बन्द कर दे जिनके कारण डाक्टर अम्बेडकरजिक व्यवस्था में कोई मौलिक दोष है और इस दोष सरीखे प्रतिभाशाली, विचारक और विद्वान् इम समाज के कारण ही डाक्टर अम्बेडकर-सदृश पुरुष अनुभव करते को छोड़ने के लिए लाचार हो रहे है। हैं कि उनकी योग्यता, शक्ति और क्षमता के अनुरूप समाज हमारा अपना विचार है कि जब तक वर्तमान
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