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________________ सरस्वती [भाग ३६ यूनियन बाज़ार का अध्ययन करके समितियों को बतलावें उपयोग किया जाय तो देश में औद्योगिक क्रान्ति हो कि कौन-सी डिज़ाइन बाज़ार में अधिक चलती है जाय । कारीगर को स्टीम एंजिन की आवश्यकता न रहे इत्यादि । अच्छे किन्तु सस्ते यन्त्रों के अाविष्कार की बहुत (जिसे वह खरीद ही नहीं सकता), केवल बिजली का तार बड़ी आवश्यकता है, जिससे कारीगर थोड़े समय में लेकर वह बड़े से बड़े कारखाने का मुकाबिला कर अधिक माल तैयार कर सकें। यह कार्य सरकार का सकेगा। औद्योगिक इंजीनियरिंग विभाग करे। यन्त्र और औज़ारों भारतवर्ष की औद्योगिक उन्नति तीन प्रकार के का आविष्कार हो जाने पर उनको अधिक मात्रा में उत्पन्न धंधों के सम्मिश्रण से होगी। बड़े बड़े कारखाने उन धंधों करने के लिए बड़े बड़े कारखाने खोले जाएँ जो उन के खोले जायँ जिनके बिना काम नहीं चल सकता। यन्त्रों को तैयार करें। यदि भारत सरकार तथा प्रान्तीय उनके अतिरिक्त गृह-उद्योग-धंधों और ग्रामीण उद्योगसरकार जल के द्वारा बिजली उत्पन्न करके बिजली को धधों के संगठन की भी श्रावश्यकता होगी। देश की सस्ते दामों पर कारीगरों को दे सकें तो हमारे गृह- आर्थिक समस्या तभी हल होगी जब कृषि की वैज्ञानिक उद्योग-धंधे सहज में बड़े बड़े कारखानों की प्रतिस्पर्धा में ढंग से उन्नति करने के साथ साथ ऊपर लिखे अनुसार खड़े हो सकते हैं । छोटे छोटे कारीगर सहकारी समितियों औद्योगिक उन्नति की जाय। केवल देश को कारखानों से के द्वारा बड़े बड़े कारखानों की सब सुविधायें प्राप्त कर ही भर देने से काम नहीं चलेगा। यदि हमने पाश्चात्य सकते हैं, किन्तु शक्ति की सुविधा उन्हें प्राप्त नहीं हो देशों का अंध अनुसरण किया तो हमारी आर्थिक समस्या सकती। जल-द्वारा उत्पन्न की हुई बिजली ने यह समस्या और भी जटिल हो जायगी। भी हल कर दी है । यदि भारतवर्ष भर में बिजली का रजकरण लेखक, श्रीयुत रुस्तम सैटिन इक रजकण में प्रतिबिम्बित, इसके सीमित बन्धन में, इस अखिल विश्व को देखा। जग का अपनापन देखो। संमृति के शून्य गगन में, मलयानिल ले उड़ता है, ... रवि को रजकण सा देखा ।। इस छोटे-से रज-कण को। इन कण, कण को उलझन में, उनकी स्मृति-आँधी जैसे, जग-जीवन उठता गिरता। ले उड़ती मेरे मन को॥ पल पल के परिवर्तन में, इस माया के पर्वत में, जग-जीवन बनता मिटता ।। आशा की ज्वाला सोती। इन लघु, लघु रज के कण में, इसके नीरव जीवन में, माया की मूरत देखो। मेरी संज्ञायें खोती ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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