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योरप-जैसा कि मैंने उसे देखा
२--फैराश्रो का देश लेखक, श्रीयुत हरिकेशव घोष
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घामम कुक के प्रवन्ध के अनु
जिसमें सब देशों के लोग सम्मिमार कैरो की यह मक्षित
लित थे। 'कुक' के एक कर्मचारी यात्रा अत्यन्त मनोरम होती है।
की सलाह के अनुसार मईद बन्दर कुल मिलाकर व ५ पौड लेते हैं।
में हम माटरों में सवार होन के इमी में मोटर, भोजन और मन्ध्या
लिए चार चार की टोलियों में का स्टीमर तक वापस पहुँचने का
विभक्त हो गये । दो अमरीकन व्यय भी सम्मिलित रहता है । यदि
महिलाये, मैं और दिल्ली के एक कोई चार मित्रों की मंडली बना
प्रसिद्ध व्यापारी की पुत्री ने एक मक तो उसे जो व्यय करना पड़ेगा,
साथ जाने का निश्चय किया। उसका प्रायः दृना व्यय इममें
मेरे मित्र मिस्टर झिलानी और बैठता है। खैर, हम सोचते है कि
मंग वम्बई के एक दूसरे मित्र भी यह मूल्य चुकाने के योग्य है
इम यात्रा में हमारे साथ थे। क्योंकि इस प्रकार सम्पृण भ्रमण
जिन्हें दम दिन तक कोई एक दिन में समाप्त हो जाता है
देश देखने का अवसर न मिला हो और इस यात्रा का सम्ता प्रवन्ध
उन्हें जब जहाज सईद बन्दर के कंवल वे ही, या कम-से-कम उनमें
निकट पहुँचने लगता है तब बड़ा एक व्यक्ति, जो उम स्थान को
मुहावना मालूम होता है। महान भली भाँति जानता है, कर सकता
अफ्रीका के दृरम्थ प्रदेश को जो। है। दिन बहुत गर्म नहीं था, कम
सवथा नग्न और निजन पड़ा था. मं-कम यह हमें, जो भारत में
ऊबड़ ग्वाबड़ समुद्री किनारे को अत्यन्त उग्र जल-वाय के आदी हैं,
जो नीचे की नील जल-राशि के एमा प्रतीत नहीं हुआ। भारतवर्ष
मम्मुख विशाल दीवारों के समान में इन दिनों मई में जो गर्मी
खड़ा था, देखना हम सबको बहुत पड़ती है उसके मुकाविले में यहाँ १८ डिगरी गर्मा भला प्रतीत हुआ। इतने दिनों के बाद फिर से कम थी।
मनुप्य की वम्ती देखने की आशा से ममन्त यात्री यह ५, व्यक्तियों का अत्यन्त रमणीय दल था सतृष्ण नत्रों के साथ डंक पर आ जमा हुए।
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