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________________ संख्या ५] चिट्ठी-पत्री ४४९ सबके विषय में पूरी जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इसमें शान्ति-निकेतन से लेखकों, पत्र-संचालकों और पुस्तकदोनों का लाभ होगा और हम भी अपने मनोरथ और प्रकाशन-संस्थाओं के नाम निम्नलिखित अपील प्रकाशित उद्देश में सफल होंगे। की हैहम आशा करते हैं कि आप इस पुस्तक के आयोजन प्रिय महोदय, में हमारी सहायता करेंगे तथा अपना पूरा परिचय शीघ्र आपको यह जानकर खुशी होगी कि शान्ति-निकेतन भेजेंगे । हमें पूर्ण विश्वास है कि आप हमारे इस आयोजन में हिन्दी-भाषी प्रान्तों से आनेवाले विद्यार्थियों की संख्या को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे तथा अपने । बड़ी शीघ्रता से बढ़ रही है। स्कूल-विभाग के अतिरिक्त मित्रों को भी इसकी सूचना देंगे। कालेज-विभाग में ही इस समय पन्द्रह विद्यार्थी शिक्षा पा रहे हैं । श्राशा है, यह संख्या और भी अधिक बढ़ेगी। विद्यार्थियों की यह बढ़ती हुई संख्या देश के बंगला और चक्रधर-पुरस्कार हिन्दीभाषी दलों के मध्य सांस्कृतिक एकता का द्योतक साहित्य-समिति, रायगढ़, के मंत्री पण्डित श्रानन्द- है। मध्यकालीन हिन्दी-साहित्य के मर्मज्ञ श्री क्षितिमोहन मोहन वाजपेयी एम० ए० लिखते हैं सेन के महत्कार्य के फलस्वरूप अनेक प्राचीन हिन्दी___समस्त हिन्दी-भाषा-भाषी समाज को यह सुनकर अपार कवि गुरुदेव के आश्रम में परिचित हो चुके हैं। दादू की| आनंद होगा कि हमारे साहित्य-मर्मज्ञ महाराज चक्रधर कविता पर उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। सिंहजू देव (रायगढ़-नरेश) ने श्रीगणेशोत्सव के उपलक्ष और मैं श्राशा करता हूँ कि उसका अँगरेजी संस्करण भी में प्रतिवर्ष २००) रुपये का एक साहित्यिक-प्रतियोगिता- शीघ्र ही प्रकाशित हो जायगा। पुरस्कार देने का निश्चय किया है। हिन्दी के मध्यकालीन प्रेमियों के सम्बन्ध में उनके सौभाग्यवश, आज दिन, हिन्दी में अखिल भारत- व्याख्यानों का अँगरेज़ी संस्करण मैंने स्वयं पढ़ा है । इसके वर्षीय प्रतियोगितायें कई एक प्रचलित हो चुकी हैं, परन्तु द्वारा जो ज्ञान-राशि पाश्चात्य जनता के सम्मुख उपस्थित प्रान्तीय प्रतियोगिताओं का अभी अभाव-सा ही है । शिक्षा होने जा रही है उसे देखकर मुझे आश्चर्यचकित रह की कमी के कारण मध्य-प्रान्त के निवासियों के लिए अभी जाना पड़ा है। मैं आशा करता हूँ कि यह ग्रन्थ भविष्य कुछ वर्षों तक अखिल भारतवर्षीय प्रतियोगिताओं में में आनेवाले उन कितने ही प्रकाशनों में प्रथम होगा जो सफलता पाना साधारणतः कठिन-सा दिखाई देता है । इस हिन्दी-भाषी सन्तों और कवियों की वाणी का पश्चिम के प्रकार इस प्रान्त के साहित्य-सेवियों के लिए अब तक कोई पंडितों में प्रसार करेंगे। मध्यकालीन मौलिक ग्रन्थों के साधन प्रस्तुत नहीं किया गया। इसी अभाव की पूर्ति के अनुवाद-कार्य का मैं भी हर प्रकार से अपनी शक्ति भर लिए श्रीमान् राजा साहब ने इस पुरस्कार की घोषणा की प्रोत्साहन दे रहा हूँ। है । अतएव इस प्रतियोगिता का क्षेत्र मध्य-प्रान्त और आश्रम में हम लोगों की सहायता करने के लिए 'ईस्टर्न स्टेट्स एजेन्सी' तक ही परिसीमित रहेगा। क्या मैं आपसे इस बात की प्रार्थना करूँ कि आप अपने रायगढ़-नरेश का यह कार्य प्रशंसनीय ही नहीं, अनु- यहाँ से मंत्री हिन्दी-समाज' शान्ति-निकेतन के नाम करणीय भी है। नवीन पुस्तकें और पत्र-पत्रिकायें भेजने की कृपा करें, जिनके द्वारा विश्व-भारती में हिन्दी के गहरे अध्ययन की सुविधाओं में वृद्धि हो सके। एक अपील दीनबन्धु सी० एफ० ऐन्ड्रयूज़ ने गत ३० जुलाई को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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