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________________ ४४६ सरस्वती [भाग ३६ जायगा तब कोई बड़ी दुर्घटना होगी। मन्दिर में बैठ भी मिला जो गौत्रों के चराने के लिए (गोचर) किसी रानी गया । लोगों से वहाँ के मन्दिरों का हाल पूछने लगा। ने खरीद कर पुण्य कर दिया है। इस मैदान के दरख्त मालूम हुअा कि वासुदेव नामक एक राजा जोशीमठ काटकर और पत्थर हटाकर हवाई जहाज़ के उतरने के के जंगल में अपनी रानी-सहित तपस्या को गया था। लिए जगह बनाई गई है। एक बहुत बड़ा बरगद का एक रोज़ उसकी कुटी में एक बाघ घुस गया। रानी पेड़ और एक चट्टान का टुकड़ा रह गया है। इसी चट्टान घबराकर बाहर आगई। राजा उस समय वहाँ नहीं था। से लड़कर एक बार एक हवाई जहाज़ टूट पड़ा था। मेरे जब वह कुटी पर आया तब रानी ने सब हाल बतलाया। सामने जहाज़ आया था और एक हिन्दुस्तानी साहब उसे साधु राजा तलवार लेकर कुटी में घुस गया और बाघ के चला रहे थे । इसमें टूटे हुए जहाज़ को बनाने के लिए एक तलवार मारी। तलवार उसके हाथ पर पड़ी जो एक इंजीनियर पाया था। वह उसी वक्त एक मारवाड़ी झूल गया, पर खून के बजाय उससे दूध बह निकला। और उसकी स्त्री को लेकर उड़ गया । २ आदमियों को बाघ चला गया। रात को राजा को स्वप्न हुआ कि लेने के लिए फिर आने का वादा किया। ४५) एक आदमी बदरीनारायण जी ही बाघ की शक्ल में दर्शन देने आये । का १२२ मील के लिए किराया और आने-जाने का थे । उसी घटना की यादगार में नरसिंह-बदरी का मन्दिर | किराया ७५) रक्खा गया है। हवाई जहाज़ यहाँ से ४५ राजा वासुदेव ने बनवाया और राजा की याद में वासुदेव | मिनट में हरिद्वार पहुँचा देता है। जी का मन्दिर बनाया गया। यह घाटी यहाँ पीपल, बरगद, श्राम के पेड वहाँ बैठकर पाँच बदरी का नाम व स्थान पूछा। दिखाई दिये। इनके पास ही चीड़ वगैरह के पेड़ भी मालूम हुआ कि आदिबदरी इनमें नहीं हैं । पाँच बदरी ये पहाड़ पर मिले। आम यहाँ बहुत हैं, परन्तु आँवला हैं-(१) श्री बदरीनाथ जी, (२) योगेश्वर बदरी जो पांडु- से बड़ा कोई अाम नहीं देखा। आम अभी कच्चे थे। केसर में हैं, (३) नरसिंह बदरी जो जोशीमठ में हैं, (४) जब ८ मील चल चुका तब कोटेश्वर महादेव जी के वृद्ध बदरी जो जोशीमठ से ४, मील पर चमोली की तरफ़ दर्शन गंगा के इस पार से किये । महादेव जी का स्वयंभू हैं, (५) ध्यान बदरी जो उर्ग गाँव में गंगा के उस पार लिंग एक पथरीले पहाड़ में एक कुदरती गुफा में गंगा जी • कुमारचट्टी के सामने हैं । यहाँ बहुत मन्दिर हैं, परन्तु गंगा के पास है। उस पर पानी बराबर चुश्रा करता है । यहाँ जी को पार करने के लिए २ लट्ठों ही पर चलना पड़ता है। रने के लिए २ लट्ठों ही पर चलना पड़ता है। एक साध रहते हैं। एक धर्मशाला भी बन गई है। एक साधु र इसलिए यात्रियों की हिम्मत नहीं पड़ती। यह भी बतलाया रुद्रप्रयाग पहुँच कर पहले मंदाकिनी गंगा और अलकगया कि भविष्य बदरी का स्थान पुराणों में लिखा है । वह नन्दा के संगम पर स्नान किया। मंदाकिनी केदारनाथ स्थान नीती की तरफ़ 'तपोवन' से ३ मील प्रागे धौलीगंगा जी से आकर यहाँ मिली है। काली कमलीवाले बाबा ने के नज़दीक जोशीमठ से ६ मील पर है। तपोवन में भी यहाँ एक पक्का घाट बनवा दिया है और १२० सीढ़ी उतर एक गर्म चश्मा है । एक स्वयम्भू-मूर्ति भी वहाँ बन रही कर संगम मिलता है। वहाँ भी जंजीर पकड़कर स्नान हुआ। है । कहा जाता है कि एक पहाड़ की चट्टान पर चेहरे की कर्णप्रयाग से रुद्रप्रयाग तक यात्रा-मार्ग नहीं है । आकृति बन चुकी है। स्थान बड़ा रमणीक बतलाया इसलिए रास्ते में बहुत कम भीड़ मिली। परन्तु रुद्रप्रयाग जाता है। / से निकलते ही सैकड़ों यात्री मिले। इनमें बहुत-से रुद्र२३-६-३५ को नये रास्ते से चला और १० मील प्रयाग से केदारनाथ जी होकर श्री बदरीनाथ जी जा रहे पर नगरासू आया। पहले दो मील तो पथरीला पहाड़ थे। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जी ४८ मील है। बदरीनाथ और तंग रास्ता मिला। बाद को कच्चा पहाड़ मिला। जी से लौटकर यात्री कर्णप्रयाग से रानीखत अथवा वहाँ कुछ मैदान भी मिला। यहाँ ६ मील पर वह मैदान रामनगर को जाते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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