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संख्या ५
मेरी श्री बदरीनाथ जी की यात्रा
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२६-६-३५ को श्रीनगर पहुँच गया। जगह अच्छी स्पष्ट देख पड़ती है। पुरानी बस्ती में सिवा २ या ३ है, पर पंखे की हवा में काम करना पड़ता है। शाम को मंदिरों के कुछ भी नहीं रह गया है। नई बस्ती चौकोर कमलेश्वर महादेव के दर्शन किये। कहा जाता है कि जयपुर के नमूने पर बनाई गई है। यहाँ टोन एरिया महादेव जी का नाम कमलेश्वर इसलिए पड़ा कि एक और स्पेशल मजिस्ट्रेट की कचहरी भी है। इसके उस समय भगवान् ने हज़ार कमलों से इनका पूजन किया पार टेहरी-रियासत है । श्रीनगर किसी समय टेहरी-रियासत था । एक कमल घट जाने पर अपनी आँख निकाल कर की राजधानी थी। अब वह उजाड़-सा देख पड़ता है। चढ़ाने को तैयार हो गये थे तब शिव जी ने प्रसन्न होकर इस प्रकार हमारी यह यात्रा कुशलपूर्वक समाप्त हुई दर्शन दिये।
1 और हम पौड़ी सरकारी काम करने चले गये। वहाँ जाकर श्रीनगर में विरहीगंगा ने जो हानि पहुँचाई थी वह मैंने वज़न लिया । वह ५ सेर बढ़ गया था।
अभिलाषा
लेखक, श्रीयुत उपेन्द्र दिल के धोरे आ बैठो तुम, बनो प्रेम की प्यास,
ताल-हीन हो जैसे नर्तन, आँखों पर छा जाओ जैसे अवनी पर आकाश। मैं हूँ बुझते दिल की धड़कन तुम हो उसकी आस, रे, आशा का दीप जलाकर,
दिल के धोरे आ बैठो तुम बनो प्रेम की प्यास ॥ बुझी हुई यह प्यास जगाकर,
सिर से पैरों तक जादू तुम, मैं मोहा अनजान, मत झिझको अब आग लगाकर।
तुम हो रूप छली औ' मैं हूँ सरल प्रेम नादान। मुझे तड़फता देख करो तुम मत मेरा उपहास,
तुम हो दीपक मैं परवाना, दिल के धोरे आ बैठो तुम बनो प्रेम की प्यास ॥
मैं तन्मयता तुम हो गाना, भला न हँसने दो प्राणों को लेकिन ऐ सरकार,
___ तुम पागलपन मैं दीवाना, रोको नहीं अश्रुओं का तुम पागल पारावार ।। नयनों की नदियों का पानी,
बिना तुम्हारे जीवन नीरस सुमन-हीन मधुमास, बहती जिसमें व्यथा कहानी,
दिल के धोरे आ बैठो तुम बनो प्रेम की प्यास ॥ जिसमें दिल रोता है मानी ।
जगत आँख है मैं हूँ आँसू, तुम धरती हो प्राण, इसे बिगाड़ो नहीं, न होने दो तुम इसका ह्रास,
इससे पलकों के छोरों पर मैं बैठा हूँ आन । दिल के धोरे आ बैठो तुम बनो प्रेम की प्यास ॥
अपना हृदय उदार बिछा लो, तुम हो रुह अगर ऐ प्यारे ! मैं हूँ जीर्ण शरीर,
अपने में अब मुझे मिला लो, मैं हूँ जो सूखी-सी नदिया तुम हो शीतल नीर ।
'मुझे' मिटा दो, 'मुझे बना लो, बिना तुम्हारे मेरा जीवन,
यह अभिलाष करो पूर्ण या कर दो सत्यानाश, एक मरुस्थल-सा है निर्जन,
दिल के धोरे ा बैठो तुम बनो प्रेम की प्यास ॥
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