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________________ सख्या ५] मेरी श्री बदरीनाथ जी का यात्रा वह पेशाब करती है और न पाखाने नाती है। उसके सी मालूम होती है। चेहरे में कोई प्राकृति नहीं है । बहुत भक्त चेले हैं । मुझे इस बात पर विश्वास नहीं आया। कहा जाता है कि श्री शंकराचार्य ने उसे नारद कुंड से यहाँ के रावल जी भी उसके कथन पर संदेह करते निकाला था। शृंगार बड़ा सुन्दर होता है। हज़ारों श्रादहैं। पर उन्होंने एक स्त्री का हाल सुनाया, जो पारसाल मियों की भक्ति के कारण वहाँ साक्षात् भगवान् का यहाँ अकेली ६ महीना जाड़े के दिनों में रह गई थी। समीपत्व का भास होता है । भगवान् की मूर्ति के पास उसके पास केवल एक कम्बल और एक चादर थी। उसके कुबेर जी, गरुड़ जी, उद्धव जी व नर-नारायण की मूर्तियाँ भोजन के लिए कुछ सत्तू उसके पास छोड़ दिया गया था। हैं । नर-नारायण की मूर्ति के पास देवियों की ४ मूर्तियाँ उसी पर उसने छः महीने तक गुज़र की। उसने छः महीने हैं। उनमें एक उर्वशी भी है । करीब १० बजे प्रारती तक भाग नहीं जलाई। यह औरत २५ साल की है। बड़ी लेकर चरणामृत पान कर वापस पाया। तपस्विनी कही जाती है। इसको एक रोज़ जब वह बर्फ बदरीनारायण-धाम में बहत-से बँगले गंगा के बायें पर पड़ी थी, स्वप्न में एक साधु ने कुछ हलवा दिया। वह किनारे पर बन गये हैं। परन्तु गंगा का बायाँ किनारा जाग पड़ो, देखा तो हलवा उसके हाथ में है। उसने ठहरने के लिए पुनीत स्थान नहीं माना जाता। गंगा के हलवा को तप्तकुंड पर जाकर खाया । एक दिन उसने दाहने तरफ़ जो पानी की धारायें गिरती हैं या जो पहाड़ तप्तकुंड पर कई श्रादमियों को स्नान करते देखा । उनकी हैं वे सब पवित्र और तीर्थ माने जाते हैं। वहाँ नर-नाराबोली न समझी। यण नाम के पहाड़ हैं। इन्हीं पहाड़ों पर नर (अर्जन) जिस रोज बदरीनाथ जी पहचा उसके दसरे दिन और नारायण (श्रीकृष्ण जी) ने तपस्या की है। एक (१३-६-३५) सुबह उठते ही तप्तकुंड में स्नान को गया। पहाड़ का नाम नीलकाँठा है। उसके नीचे एक स्थान है । पानी इतना गर्म था कि उसके अंदर घुसने जिसको ब्रह्मकपाली कहते हैं। यहाँ पितरों का श्राद्ध किया की हिम्मत न पड़ी। सूर्य-कुंड पर गया। वहाँ गर्म पानी जाता है। यहाँ श्राद्ध करने का माहात्म्य गया से भी की धारा से लोटे से स्नान किया। यहाँ भी शरीर पर अधिक है। कहते हैं कि कुम्भ के अवसर पर भक्तों को पानी पड़ते ही मालूम हुआ कि सारा शरीर जल गया। भगवान् के दर्शन इस पहाड़ पर मिलते हैं । बदरीनारायण वहाँ से स्नान कर गौरी-कुंड पर जहाँ गर्म धारा गंगा जी से ७ मील चलकर स्वर्गारोहण का रास्ता है, जहाँ चार से मिलती है, मार्जन किया। गंगा जी में स्नान करना पांडवों ने अपना शरीर त्याग किया था और युधिष्ठिर मेरे लिए संभव न था। थोड़ी ही दूर पर स्थित बर्फ से सदा महाराज स्वर्ग को गये थे। इस जगह कोई वृक्ष नहीं है। ढंके रहनेवाले पहाड़ से गंगा जी आई हैं। उनका जल बहुत साल में छः महीने यह स्थान बर्फ से ढका रहता है और ही ठंडा था । ऊपर आकर संध्या-तर्पण करके देव-दर्शन एक तरह की हवा वेग से चला करती है। को चला गया। अभिषेक (अर्थात् विशेष पूजा) का दिन अभी तक हनूमान्-चट्टी और बदरीनाथ के बीच में था। एक बाई ने १०१) देकर पूजा कराई थी। रावल जी दो जगह गंगा जी पर पुल नहीं बन सके हैं । पुराने महाराज ने बड़े परिश्रम से करीब ३ घंटे पूजा की। मुझे ज़माने की तरह झूले ही हैं। ये झले चलने पर हिलते हैं रावल जी की कृपा से एक अच्छा स्थान बैठने को मिल और इन पर एक साथ तीन या चार आदमी से ज्यादा गया था। वैसे तो यात्री ५ मिनट से ज्यादा मंदिर में नहीं जाते। ठहरने नहीं पाते हैं। और ठहर भी किस तरह सकते हैं लौटते समय मैं फिर जोशीमठ में नरसिंह-बदरी के जब कि ६०० व ७०० यात्री रोज़ आते हैं और कम से मन्दिर को गया । मूर्ति बड़ी विशाल चिकने काले पत्थर कम ३ रोज़ ठहरते हैं ? २,००० श्रादमियों को दर्शन भी की है। एक हाथ बाल की बराबर किसी चीज़ से जुड़ा तो कराना था। भगवान की मूर्ति बैठी हुई बौद्ध की मूर्ति- है। कहा जाता है कि जब यह हाथ किसी कारण टूट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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