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सरस्वती
[भाग ३६
चढ़ाव-उतार नहीं था और कुछ बादल भी थे। १० बजे के कुंड यात्री चले जा रहे थे और कोई नीचे देखता भी के पहले ही ६ मील चलकर जोशीमठ पहुँच गया। नहीं था। पांडुकेसर में दूध =) सेर और बाकी सब चीजें रास्ते में लखनऊ के वैद्य पंडित चिदानन्द से मुलाकात - सेर बिकती हैं । बँगला बहुत अच्छी जगह पर है। हुई। चित्त प्रसन्न हुआ। जोशीमट एक अच्छी जगह नज़दीक ही गंगा जी बह रही हैं और एक बर्फीला पहाड़ है । यहाँ की चट्टियाँ बहुत साफ़ सुथरी हैं। यहाँ अस्प- सामने है। ताल, डाकखाना और पुस्तकालय हैं। यहाँ नरसिंह बदरी यहाँ एक मंदिर श्री वासुदेव जी का है और दूसरा जी के मंदिर हैं। जोशीमठ में उस समय यात्री लोग श्री योगी बदरी का। ये मंदिर पाण्डवों के बनाये हुए नहीं ठहरते थे। किसी ने यह खबर उड़ा दी थी कि कहे जाते हैं। श्री योगी बदरी के मंदिर में लोहे की यहाँ फ़सली बीमारी फैली हुई है। मुझे बँगले में ठहरना ४ पाटियाँ रक्खी हैं। उनकी पुछियों पर नन्दी था, जो गाँव से दूर और ऊँचे पर बना है । इसलिए (नादिया) की मूर्ति बनी है और बाकी पट्टियों में कुछ मैं तो चला आया । डाक्टर साहब के यहाँ से ७-६-३५ लिखा है । वहाँ का पुजारी तो यह कहता है कि इन का लीडर मँगा कर देखा। यहाँ से नीती दर्ग को एक पट्टियों के लेखों को कोई पढ़ नहीं सकता। परन्तु वे लेख सड़क गई है। यह दर्रा तिब्बत से भारत को मिलाता पढ़ लिये गये हैं। उनमें आठवीं और नवीं सदी में जो है । जोशीमठ से ६० मील पर तिब्बत की सीमा मिलती दान राजाओं ने इन मंदिरों को दिये थे उनका ज़िक्र है। है। इस जिले के रहनेवाले वहाँ से ऊन और नमक गरुड़ जी की मूर्ति यहाँ करीब करीब हर मंदिर के सामने लाते है । पहाड़ पर नमक पानी से भी तैयार होता है, है और मंदिर विष्णु जी के नाम पर ही हैं। जोशीमठ में और उसकी खदान भी है। यह नमक भोट में होता है, जरूर एक नौ दर्गा जी का मंदि
गले के इर्द-गिर्द दो पहाड़ हैं, जिन पर उस समय १२-६-३५ को रास्ता हर रोज़ से ज्यादा लम्बा और तक कुछ कुछ बर्फ जमी थी।
खराब मिला । हनूमान-चट्टी के बाद ३,००० फुट से ज्यादा ११-६-३५ को एकादशी का दिन था। मुझे इस उँचाई चढ़नी पड़ी। रास्ते में बर्फ पर भी ३ या ४ जगह बात का संतोष था कि उस दिन का पड़ाव पांडुकेसर तक चलना पड़ा । एक जगह तो पैर फिसलते फिसलते बचा। ८ मील का ही होना अच्छा था । परन्तु ये ८ मील कल इस कष्टप्रद मार्ग में भी बर्फ के पुल और बर्फ की सुफ़ेद के ६ मील से खराब थे। जोशीमठ से चलते ही २ मील चट्टाने जो संगमरमर से भी सुन्दर मालूम होती थीं, हृदय का उतार विष्णुप्रयाग तक मिला। विष्णुप्रयाग में को आकर्षित करती थीं। बड़ी कठिनाई के साथ १२ बजे संगम सड़क से करीब १०० फुट नीचे था। वहाँ जाकर दोपहर को श्री बदरीनाथ धाम पहुँचा। स्नान करना भी मामूली काम न था। संगम पर तो कोई , बजे शाम को भगवान् बदरीनाथ जी के दर्शन नहा ही नहीं सकता है। अलकनन्दा में नहाया ओर धवली- को प्रारती के समय गया। दर्शन पाकर जो भाव मेरे गंगा में मार्जन किया। यही संगम-स्नान हो गया। पानी चित्त में उत्पन्न हुअा वह मैं ही जानता हूँ। मुझे मंदिर के बहुत ही ठंडा था । हाथ-पैर सब गल गये। फिर जंजीर कर्मचारियों ने दरवाज़े पर बग़ल में बिठला दिया। मैंने के सहारे ऊपर आ गया। वहाँ से चढ़ाई शुरू हुई। खूब दर्शन पाये और अपने को धन्य समझा । जिस प्रेम से रास्ते में पहाड़ की सीधी चट्टान की चट्टानें मिलीं। यहाँ यात्री लोग दर्शन करने आते हैं वह दृश्य देखने योग्य था। रास्ता बनाने में बड़ी कठिनाई पड़ी होगी । इसी लिए बहुत- कुछ औरतें तो बाहर भजन गाती और मन होकर सी जगहों में सिर्फ २ या २३ फुट ही सड़क चौड़ी थी। कूदती थीं । अन्दर पुजारी लोग विष्णुसहस्रनाम श्रादि . इतनी तंग सड़क पर से पाताल में गंगा जी को बहती हुई का पाठ करते थे। एक स्त्री मुझे दिखलाई गई जो कहती देखकर किसका दिल नहीं दहल सकता है ! परन्तु कुंड है कि उसने १४ वर्ष से खाना-पीना छोड़ रक्खा है। न
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