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________________ अगस्त पर बैठा दिया और क्योतो की कहा, यही ट्रेन सीधी यात्रा समाप्त कोयासान्--केबलकार कर एक बजे स्टेशन तक जायगी। स्टेशन पर पहुँचे । फिर १५ मिनट केबहमारे चिर-सहचर श्री लकार से सीधी चढ़ाई शकाकिबारा का यहीं चढ़नी होगी और तब से साथ छूटनेवाला कोई सवारी लेकर था। ट्रेन के बारे में शिन्नो हन्-मठ में पूछतांछ करने पर मीजुहारा सान् के पास मालूम हुअा, तोक्यो चले जाइएगा। | के लिए टिकट के गाड़ी पर बैठ | रास्ते से जाने पर जाने के बाद मैंने गाड़ी को कई जगह देखा कि शकाकिबारा बदलना होगा और का चेहरा उतर गया हमारे जैसे सौ जापानी है। मेरे हृदय में भी शब्दों के पंडित के कुछ एकान्तपन का लिए यह छोटी अनुभव होता था। समस्या न थी । अन्त शकाकिबारा का परिमें शकाकिबारा की [ तीर्थ-यात्री] चय ३ वर्ष पूर्व जर्मनी सलाह हुई, श्रोसाका में हुआ था और इधर लेखक, श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन होते चलें, वहाँ तक जापान पहुँचने पर साथ रहेगा । हम कोयासान जापान में बौद्धों के शिङ्-बोन-सम्प्रदाय का पहले एक मास तक टिकट के आफ़िस में एक बहुत बड़ा विहार है। इसके अन्तर्गत १२ हजार उनका ही अतिथि गये और एक मिनट से अधिक मंदिर हैं। इस लेख में श्रीयत राहुल जी ने रहा। बाद भी रहने के भीतर हमारा टिकट इसी विहार का वर्णन किया है। का आग्रह कर रहे लौटाकर नकद पैसे थे, किन्तु दूसरे मित्र मिल गये । (मुताबिला कीजिए भारतीय रेलों से) । तोक्यो को संस्कृत के एक अनुवाद में सहायता देने के लिए मुझे से मंचोली (सोवियट-मंचूरिया-सीमा) तक का टिकट लिया। गाँव में रहना पड़ा। अब इधर फिर दो सप्ताह साथ रहा। स्टेशन से टेक्सी करके हम बिजली की रेल से नम्बा-स्टेशन शकाकिबारा के विषय में इतना ही कहना चाहता हूँ कि पर पहुँचे । रिटर्न टिकट ले लिया। शकाकिबारा ने ट्रेन यदि एक सौ जापानी पुरुषों ने भी मेरे साथ अभद्रता का ४१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara. Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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