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संख्या ५]
जाय । गोद में उठाकर चलना पड़ा। बाँस-मंडी में पहुँच गये । ज्यों-ज्यों मकान नज़दीक होता जाता, त्योंत्यों मुसीबत की सजीव मूर्ति अधिक भयप्रद मालूम देने लगी। दिल चाहता था कि अश्विन का बोझ उठाये हुए घंटों फिरता रहूँ, लेकिन मकान न आये । इतने ही में अपने आपको पीले मकान के सामने पाया । बस प्राण सूख ही तो गये; काटो तो लहू नहीं । अब ऊपर कौन चढ़े १ हिम्मत किसमें ? भौजाई को आगे किया । पहले तो उन्होंने न की और कहा, देखो मर्द को आगे जाना चाहिए । पर मेरी ज़िद के सामने वे बहुत देर न ठहर सकीं। इसके बाद मैंने अश्विन को नीचे उतार
उसकी मा के पीछे किया ।
जेमी
अब एक ख़याल आया कि नीचे से ही दफ़्तर को
जीवन
लेखक, श्रीयुत व्यथितहृदय
पूछ रही हो जीवन क्या है, क्या मैं तुम्हें बताऊँ । जान सका प्रिय, नहीं जिसे उसको कैसे समझाऊँ ? ॥ पूछ रही है प्रकृति, पूछते निशि में नभ के तारे । पूछ रहे हैं जीवन क्या है, सरिता - कूल- किनारे ॥
चल दूँ; शाम को लौटने पर जो होगा, देखा जायगा । फिर ख़याल आया कि नहीं, जेमी बेचारे की इन लोगों को खबर तो देनी चाहिए ताकि डाक्टर साहब किसी को इधर-उधर भेज सकें या और नहीं तो कम-से-कम थाने में रिपोर्ट तो कर सकें । सारी हिम्मत समेट कर सीढ़ी पर पाँव रक्खा। पैरों के साथ जैसे मनों भारी चक्की के पाट बँधे थे। फिर भी किसी तरह ऊपर पहुँच ही गया । श्रागे देखा तो जेमी साहब बैठक के सामने लेटे पड़े हैं। मुझे देखकर वह उठ बैठा और दुम हिलाने लगा। उधर से भौजाई ने सवाल किया - " जेमी तो बहुत देर का या हुआ है । आप इतनी देर कहाँ रहे ?"
मैं चुप । कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा । इतने में जेमी भी मेरे पास आ गया ।
कंपित लहरें दौड़ रही हैं, किरणें थक थक जातीं । निशा - दिवा जागृति के रथ पर पथ पर आती-जाती ॥ अरुण रागवाली वह ऊषा नभ-खिड़की पर आती । किंतु देखती नहीं वही क्या, संध्या बन सेो जाती ॥
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मत पूछो प्रिय जीवन क्या है, यह है गूढ़ कहानी । प्रेम दया, करुणा जीवन की केवल स्वर्ण निशानी ॥
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