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________________ ४०२ सरस्वती | भाग ३६ . ___ "मैं कहती हूँ, यह अंधेर हो कैसे गया है । आज सुबह कि वे उसमें कुछ और भी कर देते हों । आखिर तंग से देखा तक नहीं। बदमाश मिल कर भी नहीं गया। इनको अाकर एक दिन पाल से कहा कि दरवाज़े बन्द कर जेमी भी मालूम नहीं क्या सूझी।' कुमार सीढ़ियों से उतरकर को छोड़ दो। उस दिन उसने सामान तो सारा उथलनीचे जा पहुँचा था कि इन्होंने ऊपर से आवाज़ दे मारी, पुथल कर दिया, लेकिन चूहे चार मार दिये । जब दरइसे भी साथ ले जाओ। कोई पूछे, भला यह भी कोई वाजे खोले तो दो भाग गये। अब उस दिन से शान्ति तरीका है। इसे सैर करवानी है तो बाकायदा करवाइए। है। हर एक चीज़ को अपनी-अपनी जगह पर देखती पाँच-सात रुपये का एक आदमी रखिए। कौन-सी बड़ी हूँ तो चूहे याद आ जाते हैं, और चूहों के साथ जेमी। बात है। आखिर इसकी सेहत का भी तो खयाल रखना भुलाये भूलता भी तो नहीं। कई बार दिल को समझाती चाहिए। एक दिन सैर के लिए भेज देने से क्या हो हूँ, लेकिन वह नहीं मानता । घड़ी-घड़ी वह याद आ जाता जायगा ? हर रोज़ सुबह-शाम भेजा जाय तो कुछ है।... .. बने भी...... ___"कमबख्त को खुद अपने हाथों से नहलाया करती ___ "मेरे लिए तो एक और मुश्किल भी है। संतोष दिन थी। एक बार जूए पड़ गई। पता नहीं, किसी बाज़ारी भर जेमी से खेला करती थी। इसने दूध पिया, उसने भी कुत्ते के साथ फिरा-फिराया जो जूएँ चढ़ गई । भंगन पिया और लगे दोनों खेलने। तीन-चार घंटे के बाद यह से कहा—'मिरजानी, ज़रा इसके बाल देखना । शाम को उस वक्त मेरे पास पाती जब भूख लगती । आज ही रेवड़ियाँ भी लेते जाना ।' लेकिन उसने एक न सुनी। जेमी घर पर नहीं है और यह मेरी गोद से नहीं उतरती। अंत में आप ही गरम पानी और नीम के साबुन से इसके कोई काम कैसे करे। वह धन्नू तो नीचे से ऊपर पाँच- बाल साफ़ किये, तेल लगाया और कँघी की। वरना सात गागर पानी लाता है। या फिर कमरों में झाडू देता खारिश से बेहाल हो गया था।" है। वह भी इस तरह कि आधा कचरा इधर-उधर रह "बाबू जी, कहाँ उतरना है आपको ? लोहारी दरवाजे जाता है। लेकिन बस इन्हीं दो कामों को करता है । रसोई के अन्दर तो ताँगा जायगा नहीं।" ताँगेवाले के ये शब्द के तो नज़दीक नहीं आता। अन्दर से कोई बरतन लाना मेरे कानों में इतने ज़ोर से पड़े कि मैं चौंक पड़ा। उसी हो तो उसे भी आप ही लाओ। परोसी हुई थाली भी तरह जिस तरह कोई आदमी गहरी नींद में सोया पड़ा तो उनके सामने नहीं रखता। अगर कहो तो आगे से हो और एकाएक धमाके की आवाज़ से उठ पड़े। जवाब देता है-बीबी जी, दो ही हाथ तो हैं । एक वक्त मैंने देखा कि ताँगा लोहारी के चौक में फलों की दूकानों में एक काम ही तो होगा। भला कोई ऐसे नौकर को के सामने खड़ा है। कहाँ बाँस-मंडी और कहाँ लोहारी क्या करे......। का चौक । ताँगेवाले से अब क्या कहूँ कि तुम आगे ___"एक अाफ़त होती तो भी खैर चुप हो जाती । लेकिन निकल आये हो, हमें तो पीछे बाँस-मंडी में उतरना था ! यहाँ पर तो श्राफ़तों की भरमार है। जेमी के बगैर घर ऐसा कहूँगा तो क्या वह मुझे अक्लमंद कहेगा ? सभी कितना सूना मालूम देता है । एक वक्त यहाँ चूहों ने नाक लोग यह समझेंगे कि हज़रत सो रहे थे जो बाँस-मंडी से में दम कर रखा था। जिधर जाओ उधर ही चूहे । खाने आगे निकल आये। लेकिन ताँगेवाले को ठहरने के लिए की कोई चीज़ उन्होंने न छोड़ी। पहनने का कोई कपड़ा कहा नहीं। इस बेइज्जती से बचने के लिए मैंने सबको उन्होंने न छोड़ा । जहाँ-तहाँ उनकी बीट । अाटा है तो उतरने के लिए कहा। ताँगेवाले को पैसे दिये और उस में । दालें हैं तो उनमें । कनस्तर से घी निकालो तो उलटे चल पड़े। श्राध मील फासले का जुर्माना दिया। उसमें । मरतबान से अचार निकालो तो उसमें । बाल्टी के अनारकली में भीड़ थी। मोटरें और ताँगे बेशुमार पानी को मुँह लगाते उन्हें कई बार देखा। क्या पता थे। डर था कि कहीं अश्विन किसी के नीचे ही न आ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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