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________________ संख्या ४] सम्पादकीय नोट २८१ होकर अमरीका जाना चाहते थे । पर रूस की सरकार से परन्तु हिंडेनबर्ग ने कहा-नहीं सौरब्रुच, जब तक मैं अनुमति प्राप्त होने में कठिनाई देखकर उन्होंने अपना बाइबिल का कुछ पाठ करता हूँ, तुम यहाँ रह सकते हो। विचार बदल दिया और मंगोलिया से घोड़ों पर वे २३ तब मैंने पर्दे को कुछ खींच लेना चाहा ताकि अधिक महीने में ब्रह्मदेश आये । यहाँ उन्होंने अपने घोड़े बेच प्रकाश आवे। परन्तु उन्होंने कहा-उसे उसी तरह डाले। अब वे स्टीमर से कैरो जायेंगे। वहाँ से घोड़ों पड़ा रहने दो। जो अंश मुझे पढ़ना है वह मुझे याद है। पर वे अफ्रीका की यात्रा करेंगे और सीधा केप-टाउन को यह कहकर उन्होंने बाइबिल उठा ली। बाइबिल की पुस्तक जायँगे । इस यात्रा के बाद वे अमेरिका व्याख्यान देने सदा उनके पलँग पर रक्खी रहती थी। उन्होंने जायँगे। पन्द्रह मिनट तक धीरे-धीरे उसे पढ़ा। इसके बाद उन्होंने ___इस प्रकार ये दोनों पति-पत्नी सारे भू-मण्डल की किताब रख दी और मुझे पलँग के पास बुलाकर कहायात्रा करके अपने घर को लौटना चाहते हैं । सौरब्रुच, अच्छा अब तुम मित्र मृत्युदेव से कहो कि वे कमरे के भीतर श्रा सकते हैं। इसके दूसरे दिन सवेरे स्वर्गीय राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग के सम्बन्ध में- फ़ील्ड मार्शल मर गये। सचमुच यह एक वीर जैसी जर्मनी के स्वर्गीय राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने अपनी मृत्यु ही मृत्यु हुई । का जिस धैर्य के साथ स्वागत किया था उसका प्रामाणिक वर्णन उनके डाक्टर ने पत्रों में प्रकाशित करवाया है, भारत के जलवायु का प्रभाव जो इस प्रकार है इतिहासज्ञों का कहना है कि गर्म देशां के निवासी पहली अगस्त के दोपहर को मैं फ़ील्डमार्शल के ठंडे देशों के निवासियों के मुकाबिले में कभी नहीं ठहर शयनागार में था। वे चाहते थे कि मैं उनके पास बना सके हैं। नागपुर के मारिस-कालेज के प्रिन्सपल डाक्टर रहा करूँ.चाहे मेरी ज़रूरत भी न हो। वे उस दिन बड़ी जी० प्रार० हंटर ने हाल में एक महत्त्वपूर्ण भाषण किय देर से चुप पड़े थे। इस तरह रहना उन्हें पसन्द भी था। है। उन्होंने उसमें कहा है कि भारतीयों की उन्नति का ऐसे अवसरों पर उनसे कोई कुछ नहीं कहता था, सबसे अधिक बाधक यहाँ का उष्ण जलवायु है। भारत अतएव मैं भी खिड़की के पास चुप बैठा बाहर बाग़ का में जो जो प्रगतिशील जातियाँ समय समय पर श्राकर दृश्य देख रहा था । एकाएक फ़ील्डमार्शल ने पुकार कर श्राबाद हुई हैं उनके भी पराभव का यही कारण हो सकता कहा-सौरब्रुच, क्या तुम अभी बैठे हो ? मैं उठकर उनके है। अगर आर्यों के इतिहास पर विचार किया जाय तो पास गया और पूछा-क्या अाज्ञा है ? देर तक मुझे हम उन्हें ऋग्वेद और उपनिषद् के काल के बीच में देखकर उन्होंने कहा- सौरब्रुच, तुमने सदा मुझसे सत्य ही अत्यन्त प्रबल अवस्था में पाते हैं, अर्थात् उनके पंजाब सत्य कहा है। आज भी तुम्हें सत्य ही कहना होगा । क्या में आने के समय से लेकर बुद्ध की मृत्यु के समय तक मित्र मृत्युदेव दुर्ग में आ गये हैं और मेरी राह देख रहे आर्य लोगों की शक्ति बराबर प्रबल रही, किन्तु उसके हैं ? मैंने उनके दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर कहा- बाद उनका पराभव हुअा। यह बात यूनानी, शक नहीं फ़ील्डमार्शल, परन्तु वे मकान की परिक्रमा ज़रूर और कुशाण एवं मुसलमान अाक्रमणकारियों के सम्बन्ध कर रहे हैं । कुछ देर तक हिंडेनबर्ग चुप रहे। इसके में भी घटित होती है । प्रारम्भ में ये लोग प्रबल रहे, परन्तु बाद उन्होंने कहा-सौरब्रुच, तुमको धन्यवाद है | अब मैं बाद को इनका भी धीरे-धीरे पराभव हो गया। और कुछ अपने ऊपर के स्वामी से बातचीत करना चाहता हूँ। यह अंशों में यही बात योरपीयों पर भी चरितार्थ होती दिखाई कहकर उन्होंने ऊपर की ओर संकेत किया। मैं उठकर देती है। इनमें अँगरेज़ लोग अधिक सतर्क रहते हैं। वे खड़ा हो गया और चुपचाप वहाँ से चला जाना चाहा। अपना वैवाहिक सम्बन्ध ब्रिटेन से बनाये रहते हैं तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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