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________________ भूषण का हिन्दी में 'शिवाबावनी' की अराष्ट्रीयता का प्रश्न महात्मा जी के सम्मेलन के भाषण से उठ खड़ा हुआ है । इसी सम्बन्ध में हम यहाँ यह लेख छाप रहे हैं। श्राशा है, हिन्दी के विद्वान् इस महत्त्व के प्रश्न दूषण पर धैर्यपूर्वक विचार करने का कष्ट करेंगे। लेखक, श्रीयुत विनोद विहारी कायरता वाबावनी वीर-रस की उच्च उदाहरण न होकर रीति-ग्रन्थ-काल की अन्य शृङ्गारी कोटि की कविता का कविताओं की भाँति ही कामुकता-पूर्ण भी है। ग्रन्थ माना जाता है। अब पंडित लक्ष्मीधर वाजपेयी ने महात्मा जी के से लगभग ३०० वर्ष पूर्व उक्त भाषण का प्रतिवाद किया है। भाषण के इस महाकवि भूषण ने इसकी अंश के सम्बन्ध में उदाहरण-स्वरूप शिवाबावनी रचना करके अपार धन का एक कवित्त उद्धृत करके वाजपेयी जी जोश में और यश का अर्जन क्या कह गये हैं, ज़रा यह भी सुन लीजिए-- किया था। तब से अब तक इस कविता की हिन्दी "जब कोई ग्रामीण बुड्ढा कड़ककर यह कवित्त में वैसी हो काक जमी चली आ रही है। परन्तु अब पढ़ने लगता है तब सुननेवालों का खून खौल उठता समय बद ना है। अब लोगों ने कहना शुरू किया है, भुजायें फड़कने लगती हैं.........सुननेवाले चाहे है-"राष्ट्रीय दृष्टि से इस कविता का कोई महत्त्व मुसलमान ही क्यों न हों, वे भी अपने जातीय भाव नहीं।" महात्मा गांधी ने इन्दौर-सम्मेलन में सभा- को भूलकर एक बार कीर-रस के प्रखर प्रवाह में बह पति के आसन से जो भाषण किया था उसमें उन्होंने जाते हैं।" वाजपेयी जी ने जो कवित्त उद्धृत इसकी ओर इशारा किया है और कहा है- किया है उसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है"परीक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों में से एक पुस्तक के तेज तम-अंस पर कान्ह जिमि कंस पर. बारे में एक मुसलमान की भी, जो देवनागरी लिपि त्यों मलेच्छ-बंस पर सेर शिवराज है। अच्छी तरह जानते हैं. शिकायत है। उसमें मुग़ल परन्तु इस प्रकार के रूपक बाँधकर कोई किसी बादशाह के लिए भली-बुरी बातें हैं। वे सब ऐति- के हृदय में वीर-रस का संचार नहीं कर सकता। हासिक भी नहीं हैं। मेरा नम्र निवेदन है कि पाठ्य खून तब खौलता है, भुजायें तब फड़कती हैं, पुस्तकों का चुनाव सूक्ष्म विवेक के साथ होना युद्ध की प्रवृत्ति तब होती है, जब किसी प्रकार चाहिए और उसमें राष्ट्रीय दृष्टि रहनी चाहिए।" का अपमान या अनाचार का अवसर सामने ___ महात्मा गांधी ने जो प्रश्न उठाया है उस पर उपस्थित होता है और कवि पूर्व-गौरव की याद हमें गम्भीरता-पूर्वक विचार करने की आवश्यकता दिलाता हुआ उसका चित्र उपस्थित करता है और है। शिवाबावनी केवल इसी लिए त्याज्य नहीं है कि उसका मुकाबला करने के लिए मरने-मारने का संदेश वह साम्प्रदायिकता की आग को भड़कानेवाली है, देता है। यदि भूषण औरंगजेब के अत्याचारों का बल्कि इसलिए भी कि वह वीररस का वास्तविक वर्णन करते और हिन्दुओं को उन अत्याचारों का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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