SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ सरस्वती [भाग ३६ इस प्रकार के झगड़ालू वातावरण में बालकों को रहने देने तलाक भी विवाह का सुधार करने के लिए एक आवश्यक से उनके माता-पिता को तलाक की स्वतंत्रता देकर अलग वस्तु है। किसी भी पवित्र सम्बन्ध की रक्षा कानून के हो जाने का मौका देने से हम बालकों के हितों की अधिक दबाव से करना उसका अपमान करना है। यदि विवाह रक्षा कर सकेंगे। तलाक के लिए कानूनी स्वीकृति मिल कृत्रिमता की भित्ति पर नहीं, बरन दो हृदयों के पारस्परिक जाने पर भी कुछ कारण ऐसे हैं जो विवाह-सम्बन्ध के प्रेम की सुदृढ़ चट्टान पर स्थित है, तो तलाक का कानून विच्छेद में बाधक होंगे। उदाहरणार्थ हम संतान के स्नेह होने पर भी वह पूर्ववत् सुरक्षित बना रहेगा और यदि को ही ले सकते हैं। विवाह स्त्रियों को गुलाम बनाने का पुरुषों का एक साधनतलाक विवाह-प्रथा का शत्रु है । ऐसा कहना भ्रमपूर्ण मात्र है तो इसके नाश को संसार की कोई भी शक्ति रोक है। यदि वास्तव में विवाह एक पवित्र सम्बन्ध है तो नहीं सकती। जुगनू-गीत लेखक, श्रीयुत मोहनलाल महतो जगमग कर जुगनू छनछन पर, तू ज्वलन्त स्मृतियों का निर्भर, जीवन-मग का तम प्रतिपल हर।। जगमग कर जुगनू छनछन पर । किसलय किसलय पर हँस सजनी, अपने नवगीतों में कविवर, सिहरे प्रोस बूंद मिस रजनी ।। रख न सका जिसको सँभाल कर ॥ तम-अञ्चल हीरक से दे भर, . तू है वही उपेक्षित सुस्वर, जगमग कर जुगनू छनछन पर। जगमग कर जुगनू छनछन पर । चूरचूर धन अभिलाषा-सी, एक आह भर चले गये जो, दीप्तिमान-नीरव भाषा-सी॥ अपनापन दे छले गये जो॥ मूर्तिमान कविता-सी सुखकर, तू उनका हे जरजर-अन्तर, जगमग कर जुगनू छनछन पर । जगमग कर जुगनू छनछन पर। तू भूतल की तारावलियाँ, जिनको भूला जग हँस, रोकर, विद्युलता की जगमग कलियाँ ॥ उनकी चिताकणा हे सुन्दर ॥ उड़ती है तू आज लगा पर, जगमग कर जुगनू छनछन पर । विरहपत्रिका वह सकरुणतर जिसके तू ज्वालामय अक्षर ।। पढ़ता जिन्हें निशा भर अम्बर, जगमग कर जुगनू छनछन पर ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy