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________________ मुहम्मद इकबाल और उनकी शायरी प्रोफ़ेसर इन्द्रनाथ मदन, एम० ए० सर इकबाल ने उर्दू शायरी का मस्तक ऊँचा किया है, भारत को राष्ट्रीयता का संदेश देने का श्रेय उन्हें प्राप्त है । परन्तु अब तो वे काव्य-जगत् में उस विशाल वृक्ष की भाँति ढहे पड़े हैं जिसे साम्प्रदायिकता की आँधी ने जड़ से उखाड़ दिया है। उनके परिवर्तित विचारों के कारण उनकी शायरी में भी वह ज़ोर नहीं रहा, तथापि उनकी पिछली सेवायें उन्हें अमर बनाये रहेंगी। इस लेख में विद्वान् लेखक ने उनका थोड़े में पर सुन्दर परिचय दिया है। कवि का परिचय और संसार उसको अटल और अमर जान पड़ता जी कबाल के नाम से कौन है। युवक यह अनुभव करता है कि उसका जीवन VIC E S परिचित नहीं। यह सम्भव सदा के लिए है। उसके माता-पिता और बन्धुजन है, आम लोग इक़बाल की अनन्त के लिए जीवित रहेंगे। मौत का इस युवक शायरी से शायद इतना को तनिक भी ज्ञान नहीं होता। अगर सुन्दर वस्तुओं परिचित न हों. जितना को देखता है तो यह समझता है कि ये अजर और S T D उनकी लीडरी से। कुछ अमर हैं । अगर किसी से स्नेह करता है तो इस समय से उनकी काव्य में विचार से कि प्रेम सदा क़ायम रहेगा। इतनी रुचि नहीं रही, जितनी इस्लाम के सुधार में! यौवन के बाद अब तो उन्होंने अपना जीवन मुसलमानों की बेह- इसके बाद वह यौवन से निकल कर धीरे धीरे तरी में लगा दिया है। वह भी समय था जब वे पुरुष की आय को पहुँचता है। वह यौवन का सुन्दर कौमी गीत लिख लिखकर लोगों को देश-प्रेम के और स्नेहमय संसार हलके हलके उसकी आँखों से लिए उभारते थे। अब तो उसकी मीठी याद ही ओझल हो जाता है। पता चलता है कि यह जीवन बाक़ी है। उनके काव्य के सब रसिक यह अनुभव अमर नहीं, इसका किसी दिन अन्त है । संसार के करते हैं कि वे एक महाकवि के आदर्श को पहुँचकर बनने से पहले प्रलय भी विद्यमान था। इन सुन्दर नीचे उतर आये हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं वस्तुओं का किसी दिन नाश होना है। आज सवेरे कि इकबाल संसार के महाकवियों से कई स्थानों पर जो कली खिनी है, शाम को मुरझा जायगी। सौन्दर्य टक्कर खाते हैं। लेकिन किसी कवि के तङ्ग-दिल हो वही है जिसका नाश हो। जीवन दुःख-सागर है। जाने पर उसका मान घट जाता है। असल में कवि इस जीवन-वीणा के सब तार धीरे धीरे शिथिल का जीवन ही मत है, जीवन ही धर्म है। उसे इसी होकर टूट जाते हैं । इस मानसिक हालत में साधाजीवन की पहेली को हल करना और उसको मधुर रण आदमी की अक्ल चकरा जाती है। कवि का तो गीतों में गाकर लोगों के व्यथित दिलों को शान्त कहना ही क्या ! उसका दिल तो और भी नरम करना है। होता है । वह इस कठोर जीवन की चोटें नहीं सह जीवन के तीन भाग सकता । वह क्या करता है ? इस निर्दय संसार से हमारा जीवन तीन भागों में बँट सकता है। नाता तोड़कर अपने मन की एक दुनिया बनाता है। पहले आदमी जवान होता है । इस समय यह जीवन वह दुनिया उसकी उमङ्गों के अनुकूल होती है। ३४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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