SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संख्या ४ ] मुहम्मद इक़बाल और उनकी शायरी बुढ़ापा जीवन की तीसरी पीढ़ी बुढ़ापे की है जब मनुष्य मौत के अधिक समीप होता है और उसका शरीर जर्जर हो जाता है । अगर वह इस हालत से पहले इस जीवन की पहेली को हल कर ले तो उसको मौत का भय नहीं रहता । वह एक मुनि की तरह हँसखेलकर इस संसार में अपना सफर तय करके आराम के लिए सो जाता है। लेकिन अगर वह इस दुनिया की तकलीफों से विकल हो जाय और मौत की हक़ीक़त को न जान पाये तो बुढ़ापे में बेचैनी के दिन काटता है। शायरी के तीन भाग यही हाल इकबाल के जीवन और शायरी का है । जवान होकर कवि को भोले बचपन के मधुर दिन याद आते हैं । इसी बचपन की याद को शायर ने 'एक परिन्दे की फ़रयाद' नामक कविता में बन्द कर दिया है। सुरीली तान में कवि कहता है जादियाँ कहाँ वह अब अपने घोंसले की, अपनी खुशी से आना अपनी खुशी से जाना । आगे चल कर पिछले समय की याद और भी तीखी हो जाती है और इक़बाल लिखते हैं-लगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम, शबनम के आँसु पर कलियों का मुसकराना । पिछले समय की याद किसको नहीं रुलाती ? इस याद से सबको एक मीठा सा सुख मिलता है, दिल भर आता है और आदमी अपने दुःखों को भूल जाता है । कवि कहता है- गाना इसे समझ कर खुश हों न सुननेवाले, दुःखे हुए दिलों की फरयाद यह सदा है । मगर यह शायर का रोना दुःखी दिलों को चैन देता है । यह तो इक़बाल के बचपन की याद है, जो काव्य के रसिक को रुला देती है । यह अरमानों की दुनिया सबको मोह लेती है । यौवन के बाद इक़बाल के जीवन में जवानी के दिन जल्दी बीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३४७ गये । वे शीघ्र इस निष्ठुर समाज और दुनिया से तङ्ग कर इनसे भागने लगे । जैसे कि पहले वर्णन किया गया है कि यह इन्सान के जीवन का दूसरा भाग है । इस समय आदमी जीवन की ठोकरों से घबराकर कहीं ऐसे स्थान पर जाना चाहता है, जहाँ इन बातों का नाम तक न हो। इस समय हमारे कवि क्या चाहते हैं दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब, क्या लुफ़्त अंजमन का जब दिल ही बुझ गया हो । अब इक़बाल शोरिशों से भागते हैं और किसी एकान्त स्थान की तलाश में हैं और वह रमणीय स्थान पहाड़ के दामन में एक छोटी-सी कुटीर हो । वहाँ संसार के झंझटों से अलग होकर कवि आनन्द के दिन बिताये, उसे चिड़ियों के चहचहों से सुख मिले। चश्मे की शोरिशों में एक नाद बज रहा हो। इस तरह कवि एक के बाद एक प्रकृति का ऐसा सुन्दर चित्र खींचता है कि मोहित ही होते बनता है। एक स्थान पर इक़बाल कहते हैं रातों के चलनेवाले रह जायें थक के जिस दम, उम्मीद उनकी मेरी टूटा हुआ दिया हो । बिजली चमक के उनको कुटिया मेरी दिखावे, जब आसमाँ पै हरसू बादल घिरा हुआ हो । अब तो समाज से इतने निराश हो जाते हैं कि आखिर यह भी कह देते हैं तू मेरे क़ाबिल नहीं मैं तेरे क़ाबिल नहीं । यही नहीं कवि अपने जीवन से भी निराश हैं, क्योंकि ज़िन्दगी इनसाँ की इक दम के सिवा कुछ भी नहीं, दम हवा की मौज है रम के सिवा कुछ भी नहीं । तो आदमी इस जहान में आता ही क्यों है ? इसका यहाँ पैदा होने का मतलब ही क्या है ? यह पहेली तो हर एक के दिल को विकल कर देती है । अगर सुबह भी सफ़र है, शाम को भी सफ़र है, और जिन्दगी का नाम ही सफ़र है तो यहाँ आने का मतलब ही क्या ? क्या विधि ने बिना सोच www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy