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________________ संख्या ४] अमृत नहीं कि तुम इस खतरे को मुझसे पहले स्वीकार दी कि आचार्य पकड़ लिये जायें और उनके अमृत कर लो?" पर कब्जा कर लिया जाय । साथी ने उत्तर दिया--"बेटे और माँ का नाता जब महाराज के आदमी आचार्य के कमरे में दृढ़ होते हुए भी शीघ्र टूट जाता है, क्योंकि माँ बूढ़ी दाखिल हुए तब देखते क्या हैं कि आचार्य अपनी होती है और मर जाती है। इसके विपरीत बहन- बैठने की जगह पर मरे पड़े हैं। एक गिलास खाली भाई का नाता अधिक स्थायी होता है।" है और छः वैसे ही भरे रक्खे हैं। आचार्य के हाथ में ___ पहले शिष्य ने यह सुना तब क्रोध से चिल्ला काग़ज़ का एक टुकड़ा था, जिस पर लिखा थाउठा-"परमात्मा की कसम, मुझे कभी यह आशा “ज्ञान और सत्य की तलाश में सत्तर वर्ष व्यतीत न थी कि इस प्रकार की मूों वाली बातें मैं आचार्य करने के बाद अब मैं अपने अन्वेषण को संसार के के किसी शिष्य की ज़बान से सुनूँगा।" लिए छोड़े जाता हूँ। ये घातक विष के छः गिलास ___ इस पर बाक़ी चिल्लाये-"बकवाद क्यों करते हैं। इनमें एक से एक बढ़कर सख्त ज़हर है। मेरे हो ? परचा तुम्हारे नाम का निकला है। यह गिलास बस में था कि इन सबसे अधिक भयंकर सातवाँ पीओ, अन्यथा यहाँ से निकल जाओ।" विष भी छोड़ जाता, जिसका नाम 'अमृत' है और __ अब वह नवयुवक मजबूर हो गया। बढ़कर जिसके द्वारा मनुष्य सदा के लिए मृत्यु से बच उसने एक गिलास उठा लिया। परन्तु शीघ्र ही सकता है। परन्तु मुझे आदमी पर तरस आया। मेरे उसे अनुभव हुआ कि गिलास में कोई बहुत ही हृदय ने किसी तरह यह न माना कि आदमी को तेज़ रस है। जल्दी से उस गिलास को रख दिया दुःख तथा शोक झेलने के लिए सदा जीवित रहने का और दूसरा गिलास उठा लिया। ठीक इसी समय रास्ता दिखाऊँ। आदमी अपने वर्तमान छोटे जीवन बिजली-सी चमकी और सातों शिष्य बेहोश होकर में जो कष्ट झेलता है वही क्या कम हैं कि अनन्त गिर पड़े। जीवन का कष्ट और मोल ले । यही सोचकर मैंने बहुत देर के बाद जब उन्हें होश आया तब यह सातवाँ विष-अमृत-एक ऐसे जीव के पेट में अपने आपको प्राचार्य के घर के बाहर पड़ा देखा। पहुँचा दिया है जिसे वह हानि नहीं पहुँचायेगा। वे बहुत डरे हुए थे। ऐसा मालूम होता था कि नशे महाराज से मेरी प्रार्थना है कि मेरी याद में श्मशानमें हैं, परन्तु वास्तव में वे नशे में न थे। जब उनके भूमि में यह स्मारक लगा दिया जायहोश बिलकुल ठीक हो गये तब उन्होंने आपस में 'यहाँ वह आदमी सो रहा है जिसने मनुष्य फैसला किया कि इस घटना का किसी से ज़िक्र न को सदा के कष्ट से बचा लिया।' करेंगे। ___महाराज के सिपाही इस दृश्य से अत्यन्त हैरान थे कि इतने में बहुत शोर हुआ। वे क्या देखते परन्तु सात आदमियों में किसी बात का छिपा हैं कि कमरे में एक बहुत बड़ा बन्दर घुस आया है रहना कठिन है। शीघ्र ही तमाम नगर में इस विचित्र और बड़ी फुर्ती और चुस्ती से नाच और उछल घटना की चर्चा फैल गई। उड़ते उड़ते महाराज रहा है। यह देखकर लोगों ने खयाल किया कि तक भी खबर पहुँच गई। उसी समय राजा की सेना आचार्य ने अपना अमृत इसी बन्दर को पिला ने आचार्य के घर को घेर लिया। महाराज ने आज्ञा दिया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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