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________________ रिचर्ड गारनेट की अँगरेज़ी कहानी का अनुवाद अमृत P अनुवादक, श्रीयुत माईदयाल जैन, बी० ए० (आनर्स), बी. टी. (१) विचित्र बात मालूम हो गई। मैं नहीं कहता कि चार्य चन्द्रभट्ट कौशाम्बी मुझे सोना बनाना आगया है या जादू की अँगूठी नगर के एक ऊँचे बुर्ज में मिल गई है। नहीं ऐसी कोई बात नहीं हुई है। मैं रहते थे और रसायन- यह भी दावा नहीं करता कि मैं मुर्दो को जिन्दा विज्ञान के प्रयोगों में अपना कर सकता हूँ। परन्तु हाँ, मैं जीवन को अमर बना समय गुजारते थे। उनकी सकता हूँ, मुझे अमृत मिल गया है।" लाHिS प्रयोगशाला में कभी कोई यह कहकर आचार्य ने अपने शिष्यों को गौर आदमी दाखिल होने न से देखा ताकि अपने शब्दों का प्रभाव उन पर पाया था। परन्तु आचार्य को मनुष्यों की संगति से मालूम करें। उन्होंने देखा कि सबके मुखों पर घणा न थी। उनके सात शिष्य थे। वे सातों नव- आश्चर्य के भाव झलक रहे हैं । उनके हृदय आचार्य युवक थे और कौशाम्बी के उच्चतर घरानों के प्रकाश- की बात पर विश्वास कर चुके हैं, और उस विचित्र मान सितारे थे। ये आचार्य से भिन्न भिन्न विद्याओं रहस्य को जानने के लिए वे बेचैन हैं। आचार्य ने तथा विज्ञानों की शिक्षा पाते थे। केवल रसायन उनसे कहा-“यदि तुम चाहो तो मैं खुशी से तुम्हें और जादू-दो ऐसे विषय थे जो आचार्य ने उन्हें वह रहस्य बता सकता हूँ।" अभी तक नहीं सिखाये थे। ___ यह सुनकर सब शिष्यों के मुँह से एकदम एक दिन आचार्य ने अपने स्वभाव के बिलकुल खशी की आवाज आने लगी। विरुद्ध अपने खास कमरे में अपने सातों शिष्यों को प्राचार्य ने कहा-"किन्तु ध्यान से सुनो। इस बुलवाया। वे बड़े आश्चर्य और भय से कमरे में रहस्य को मालूम करने का मूल्य तुम्हें देना पड़ेगा। दाखिल हुए। क्या देखते हैं कि उनके आगे सात इसका मूल्य बहुत अधिक है। विश्वास करो कि मैं सुन्दर बिल्लौरी गिलास किसी रस से भरे रक्खे हैं स्वयं अपना जीवन एक पल भी बढ़ाना नहीं चाहता। और स्वयं आचार्य चुपचाप हैं। मैंने इतने कष्ट झेले हैं और इतनी ठोकरें खाई हैं __आचार्य ने शिष्यों को सम्बोधन करके कहा- कि जल्द से जल्द मौत का स्वागत करना चाहता "प्यारे बेटो ! लोगों का खयाल है कि मैंने वे हूँ। अच्छा हो कि मेरे जीवन का अनुभव भी सब रहस्य मालूम कर लिये हैं जो प्राचीन काल के तुम्हारे जीवनों के अनुभवों के समान हो और मेरी तत्त्ववेत्ताओं और रासायनिकों को मालूम न थे। तरह तुम भी अमर जीवन की इच्छा न करो।" उनका यह खयाल ठीक है। वास्तव में मैंने ऐसे भेद अब तक शिष्य भी यही कहा करते थे कि मालूम कर लिये हैं, परन्तु ये भेद कुछ अधिक जीवन झूठा है और उससे शीघ्र से शीघ्र छुटकारा कीमती नहीं हैं। मुझे भय था कि कहीं मैं भी दुनिया पालेना ही अच्छा है। परन्तु यह सब ज़बानी जमाखर्च से असफल न चला जाऊँ । परन्तु कल मुझे एक था। उस वक्त उनमें एक भी ऐसा न था जो उस ३४३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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