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________________ ३०२ सरस्वती [भाग ३६ जहाँ इस तरह से हुलिया लिखी गई जैसे भारत में चोर- जगह नज़र आ रहे थे। टूटी हुई इमारतें और अस्तव्यस्त डकैतों की लिखी जाती है । जापानी अफ़सर बैठे बैठे नगर उसके साफ़ साफ़ चिह्न थे। इससे पता चला कि प्रश्न कर रहे थे और मंचूको के अफ़सर उनका हुक्म बजा युद्ध अधिक भयंकर हुअा होगा। समाचार-पत्रों के रहे थे। तहज़ीब का अभाव । दो डालर की भेंट और विवरणों की क्षति और इस क्षति में ज़मीन और आसमान भुगताने के बाद जान छूटी। चुंगी में सामान की भी का फर्क पाया। तलाशी देनी पड़ी। इधर अाकर भोजन की सुविधा मिली। मास्को से यहाँ से रूसी कंडक्टर और वेटर बिदा हुए। रूस चलते समय मैंने भोजन का टिकट खरीदकर बड़ी बुद्धिमें इनाम-इकराम लेने से लोग इनकार करते हैं, मानी की थी, क्योंकि रूसी गाड़ी में तो भोजन इतना लेकिन यहाँ उन्हीं रूसी कंडक्टरों और वेटरों ने बड़ी खुशी महँगा था कि ७५) का एक रोज़ भोजन कर लेने पर भी से इनाम ले लिया और लम्बा सलाम भाडा। तबीयत न भरती। मंचूरिया का सफ़र- मंचूरिया में और ही रंग था। हार्विन में-दूसरे रोज़ सवेरे गाड़ी हार्बिन में आ यहाँ की गाड़ियाँ निहायत आरामदेह और अमेरिकन लगी । रात बड़े आराम से कट गई। ट्रनों से टक्कर लेती थीं। पहले उत्तरी चीन का यह भाग हार्बिन शहर योरप के शहरों का शान शौकत में रूस के अधीन था, इसलिए यहाँ रूसी खूब आ डटे हैं। मुकाबिला करता है। सामान को टामस कुक कम्पनी के लेकिन अब उन्होंने मंचूको की ही राष्ट्रीयता स्वीकार कर पंडों के हवाले करके मैं और पाँच जर्मन सैर को निकल ली है, जैसे भारत में एंग्लो इंडियन । इस भाग में डाकुओं पड़े। व्यापारिक चहल-पहल थी। यहाँ एक होटल . का बड़ा ज़ोर है और इस कारण हमेशा रूसी और मंचूको में शर्बत पीने के वक्त एक भारतीय सज्जन से भेंट हो पुलिस और फ़ौज को थाना पड़ता है। कभी कभी दोनों गई। उसी तरह का आनन्द प्राप्त हुआ, जिस तरह देशों के सिपाही भी कट जाते हैं। रूस और जापान के प्यासे को रेगिस्तान में जलाशय मिल जाने से होता है । संघर्ष का प्रारम्भिक क्षेत्र यही है और दोनों अपनी अपनी साथियों से क्षमा माँगी और उनसे भेंट की । वे बड़े मिलनमोर्चेबन्दी यहाँ सीमा पर किये हुए हैं। सार हैं। उनकी हार्बिन में रेशमी कपड़ों की दूकान है। __रूस छोड़ने के बाद पहली बार साफ़-सुथरी पोशाक मुझे नदी की सैर भी कराई। एक अपरिचित आदमी के के जीवों के दर्शन हुए । फैशन का खूब जोर देखा, स्त्रियाँ साथ इतनी मेहमानदारी भारतीय ही कर सकता है। भड़कीले कपड़ों में और अप-टु-डेट फैशन में नज़र आई। इसका मुझे गर्व हुआ। जापान के युद्ध की छाप–यहाँ ट्रेन ठीक वक्त पर हार्बिन से मुझे फ़सान पहुंचना था। इस प्रदेश में छटी और हार्बिन तक चिलकुल ठीक समय पर पहुँचती भी डाकुओं का बड़ा ज़ोर है । अब भी रात की गाड़ी रही। जिस प्रदेश में से हम गुजर रहे थे वह हरा-भरा के पाँच मिनट पहले फौजियों से भरी गाड़ी चलती था और सर्वत्र कार्यशीलता नजर आ रही थी। जापान ने है। ट्रेन में भी फ़ौजी रहते हैं। कोरिया के हरे-भरे तीन वर्षों के भीतर इस प्रदेश की काया पलट कर दी है। मुल्क से होते हुए पहाड़ियों और नालों और झरनों सड़कें बनाई जा रही हैं, शहर आबाद किये जा रहे हैं। को पार करती हुई गाड़ी अत्यन्त रमणीक स्थान से गुज़री रेल-मार्ग निकाले जा रहे हैं। हवाई जहाजा के स्टेशन और आखिर हम अपनी यात्रा के अन्तिम छोर पर पहुँचे। तैयार किये जा रहे हैं। अभी जापानी कम संख्या में यहाँ आकर एक शांति की साँस ली। ये १३ दिन बस रहे हैं। लेकिन ट्रेनों की ट्रेने प्रवासियों से भरी हुई बड़े विकट दिन थे, लेकिन नये नये अनुभवों की तुलना आती जा रही है । चीन-जापान के युद्ध के निशान जगह में कष्ट कम ही थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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