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________________ संख्या १] बाबू शिवप्रसाद गुप्त विद्रोही हैं और ब्रिटिश गवर्नमेंट के दुश्मनों से मिले हुए भारत में राष्ट्रीय सेवा के अर्वाचीन इतिहास में अद्वितीय हैं। जब ये पिनाँग पहुँचे, गिरफ्तार कर लिये गये कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। और बहुत दिनों तक फ़ौजी जेल में गिरफ़्तार रहे। देश में राष्ट्रीय विचारों को हिन्दी-भाषा-द्वारा प्रचार फ़ौजी जेल की यातनायें करने के उद्देश से अवर्णनीय होती हैं । इन्होंने कृष्ण-जन्माष्टमी उनके वर्णन की यहाँ संवत् १९७७ को 'ज्ञानआवश्यकता नहीं है। मण्डल-यंत्रालय की पुलिस की ओर से कुछ स्थापना की। इस यंत्रादिन तक तहकीकात होती लय से हिन्दी की बहुरही। अन्त में इनके संख्यक अमूल्य पुस्तकें खिलाफ कुछ न पाकर प्रकाशित हो चुकी हैं उसे इनको छोड़ देना और हो रही हैं। हिन्दी पड़ा। का प्रसिद्ध दैनिक कष्ट संसार में सबसे 'अाज' इसी यंत्रालय से बड़ा शिक्षक है। पीनाँग प्रकाशित होता है और के जेल में रहकर अपनी इस प्रयत्न में गुप्त जी तथा अपने देश की का अब तक करीब ४ परवशता का अनुभव लाख रुपया लग चुका केवल महीने भर में है। 'काशी-विद्यापीठ जितना अधिक हुअा १० इन्हीं की दानवीरता वर्ष के कठिन राजनैतिक और अनुकरणीय देशअध्ययन से भी उतना प्रेम का प्रमाण है। यह सम्भव नहीं था। उसी संस्था इन्होंने संवत् समय के अनुभव ने गुप्त १६७७ में स्थापित की जी के ऊपर ऐसा असर थी। निम्नलिखित वाक्य डाला है कि आज तक यह तसवीर १६२६ में जेनवा में ली गई थी और इसमें जो विद्यापीठ के 'समउनकी देश-प्रेम और निम्नलिखित व्यक्ति हैं। पंण-पत्र' से उद्धृत राजनैतिक सेवा की खड़े हुए बाई ओर से (१)-श्री विनयकुमार सरकार, किये जाते हैं, स्थिति - प्रवृत्ति कञ्चन के समान (२) श्री अन्नपूर्णानन्द सेक्रेटरी, बाबू शिवप्रसाद गुप्त, को स्पष्ट करते हैंनिष्कलंक देदीप्यमान है। (३) बाबू शिवप्रसाद गुप्त । बैठी हुई -१) श्रीमती "१–में शिवप्रसाद बाबू शिवप्रसाद की सरकार, (२) सरकार की कन्या, (३) श्रीमती गुप्त जी। गुप्त, श्रीनरोत्तमदास देश-सेवा ज़बानी जमा परलोकवासी का पुत्र, खर्च की सेवा नहीं है । उन्होंने देश के नाम पर अपना जीवन जाति से वैश्य-अग्रवाल, काशी का रहनेवाला हूँ। तो खतरे में डाला ही है, अपनी सम्पत्ति का भी उतना मैं अजमतगढ़वालों के नाम से विदित कुल का एक सदस्य अधिक अंश देश के काम के लिए समर्पित किया है कि हूँ। और मैं अब अपने कुल के दूसरे सदस्यों से पूर्णतया
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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