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सरस्वती
पृथक हो गया हूँ । श्रतएव मैं उस सब सम्पत्ति का जिसका उल्लेख नीचे किया गया है, स्वयं बिना किसी दूसरे की शिरकत के मालिक हूँ और मुझे अधिकार है कि अपने इच्छानुसार इसको जिस तरह चाहूँ, खर्च करूँ या दान दूँ | मेरी ज़मींदारी बनारस, जौनपुर, फ़ैज़ाबाद, छपरा (सारन), चारा, भागलपुर इत्यादि जिलों में है और मेरी एक सर्राफ़े की कोठी काशी में है जो श्री बालकृष्णदास विश्वेश्वरप्रसाद' की कोठी के नाम से प्रसिद्ध है और जिसमें लेन-देन आदि का काम होता है ।
“२ - मेरे एक कनिष्ठ सहोदर भ्राता थे । उनका नाम श्री हरप्रसाद था । उनकी अकाल और सोचनीय मृत्यु १६ वर्ष की अवस्था में संवत् १६६० विक्रमी में हो गई । उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने की कामना से मैं इस समर्पण-पत्र (ट्रस्टडीड)- द्वारा एक निधि (ट्रस्ट) की प्रतिष्ठा करता हूँ, जिसका नाम 'श्री हरप्रसाद - शिक्षानिधि' होगा ।
“३ – इस शिक्षानिधि के लिए मैंने दस लाख रुपया अपनी निजी पृथक् सम्पत्ति में से निकालकर समर्पण कर दिया है और उसकी स्थायी रूप से एक निधि (ट्रस्ट) बना 'दी है, जिसका जमाखर्च मेरी कोठी 'श्री बालकृष्णदास विश्वेश्वरप्रसाद' के बही-खाते में समर्पण (ट्रस्ट) के नाम से हो गया है और यह रुपया मेरी कोठी में जमा है, जिसका सूद दर II) सैकड़ा माहवारी के हिसाब से कोठी इस समय 'काशी विद्यापीठ' को दे रही है । श्रागे चल कर सुविधे से इस मूल्य की उपयोगी और बिना जोखिम की चल अथवा अचल सम्पत्ति खरीद करके अलग कर दी जायगी, जो सूद की आमदनी अथवा मुनाफ़ा इससे होगा वह नीचे लिखे हुए उद्देश की पूर्ति में लगाया जायगा । जिनके लिए यह निधि स्थापित की जाती है किन्तु मूलधन या सम्पत्ति जो उस धन से खरीदी जाय वह किसी अवस्था में भी खर्च नहीं की जायगी ।"
गुप्त जी की एक दूसरी प्रशंसनीय योजना 'भारत माता का मन्दिर' है, जिसका शिलान्यास २४ लाख गायत्रीजप और हवन के बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् १६८४ को किया गया है । इस मन्दिर की बुनियाद में बहुत हिफ़ाज़त के साथ पार्चमेंट में अनेक पुस्तकें रक्खी गई हैं, जिनमें
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[ भाग ३६
भारतीय इतिहास की मुख्य मुख्य घटनाओं की विक्रमसंवत् में ५००० वर्ष पूर्व के समय से तालिका दी गई हैं । श्रार्य-विद्या का परिचय दिया गया है । वेद, ब्राह्मणग्रंथ श्रादि जो इस समय विद्यमान हैं उनकी सूची है। नास्तिक-दर्शन, जैन, बौद्ध, चार्वाक सिद्धान्तों के ग्रंथों की भी सूची है । इस मन्दिर में भारतवर्ष का ३० फुट लम्बा और ३० फुट चौड़ा एक मानचित्र होगा जो देश-सेवकों का और भारतवर्ष के समस्त रहनेवाले हिन्दुत्रों, मुसलमानों और ईसाइयों का एक व्यापक पूजा-स्थान होगा। इस मन्दिर का निर्माण अभी तक जारी है और इसमें गुप्त जी क़रीब एक लाख रुपया लगा चुके हैं ।
बाबू शिवप्रसाद जी इस प्रान्त के अग्रणी नेताओं में हैं । अनेक वर्ष तक ये ग्राल इण्डिया कांग्रेस कमेटी के सभासद् रहे हैं । सन् १६२७-२८ में 'युक्तप्रान्त कांग्रेसकमेटी' के ये प्रमुख चुने गये और उसके बाद 'कांग्रेसवर्किङ्ग कमेटी' के मेम्बर बनाये गये । सत्याग्रह आन्दोलन में अनेक बार जेल गये हैं। नमक - सत्याग्रह का आरम्भ होने पर २५ जून सन् १६३० में बस्ती में इन पर दफ़ा १४४ लगाई गई थी । श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन और श्री नरेन्द्रदेव उस समय इनके साथ थे। गुप्त जी ने दफ़ा १४४ का उल्लंघन किया और दफ़ा १८८ में ३ महीने की सख्त क़ैद की सज़ा पाई और ३०० ) जुर्माना हुया । सज़ा की यह अवधि समाप्त न हो पाई थी कि ८ अगस्त १६३० को दफा १२४ ए में इनके ऊपर दूसरा मुक़दमा चलाया गया और राजविद्रोह के अपराध में इन्हें एक वर्ष की सज़ा मिली। इसके बाद गान्धीइरविन समझौते की बात शुरू हुई और वर्किङ्गकमंटी के मेम्बर होने के कारण २७ जनवरी १६३१ को ये सजा की अवधि समाप्त होने के पहले ही छोड़ दिये गये। दूसरी बार १६३२ में जब फिर आन्दोलन शुरू हुआ, ५ जनवरी १६३२ को ये दफा १२४ ए में बनारस में व्याख्यान देने के अपराध में गिरफ़्तार किये गये और ६ महीने की सज़ा पाई । १ जुलाई १६३२ को ये इस क़ैद से छूटे । लेकिन १७ अगस्त १६३२ को फिर गिरफ़्तार हो गये और एक वर्ष के लिए कड़ी क़ैद
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