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BUIRI
FRUMVUT
ब्रसेल्स से हार्विन
लेखका
इस लेख के लेखक श्री भगवानदीन दुवे पल को जी. वाई. नाइट लि. नायक फर्म के मालिक हैं और सूती तथा रेशमी कपड़े का व्यापार करते हैं। इसके पहले वे आधे दर्जन से अधिक बार दुनिया की सैर कर चुके हैं, लेकिन ट्रांस सैबेरियन रेलवे से यह इनका पहला सफर है। यह लेख
हमें वर्तमान के संयुक्त सम्पादक श्रीयुत विष्णुदत्त मिश्र तरङ्गी से मिला है। -- क ही समुद्री तार ने मेरा तक का फ़र्स्ट क्लास का टिकट ७५०) में ले लिया । भोजन
विश्राम भंग कर दिया । इस इत्यादि के १५०) अलग रहे, क्योंकि रेल पर भोजन का बार जब मैं जापान से लौटा मूल्य अपने पास से देना पड़ता है। कंपनीवालों ने मुके था तब मैंने सोचा था कि सलाह दी कि रूस में रेल के भोजन का एक टिकट अग्रिम पाँच-छः महीने घर रुकने ले लो, नहीं तो रेल में भोजन खरीदना बहुत ही महँगा का मौका मिलेगा। लेकिन पड़ेगा। यह सलाह ठीक निकली, क्योंकि बाद में मैंने
व्यापार में विश्राम कहाँ ? प्रत्यक्ष अनुभव किया कि एक सप्ताह के भोजन के टिकट के मुझे जल्दी से जल्दी इंग्लेंड जाने की तैयारी करनी पड़ी। मूल्य ७०) में एक दिन भी मुश्किल से संतुष्ट हो सकता। पन्द्रह दिन की यात्रा के बाद मैं योरप पहुँच गया।
सुदूर पूर्व की ओर—योरप से सुदूर पूर्व के लिए हिन्दुस्तान से निकलने के पहले इस बार मैने निश्चय हफ्ते में दो बार मंगल और बृहस्पतिवार को गाड़ियाँ किया था कि रूस और सैबेरिया होते हुए जापान जाऊँगा। छूटती हैं। मंगलवार को जानेवाली गाड़ी डेलक्स ट्रेन लेकिन अपने जिन जिन अँगरेज़ मित्रों से मैंने अपनी कहलाती है, क्योंकि इसमें पहले दर्जे के ही मुसाफ़िर लिये प्रस्तावित यात्रा का जिक्र किया उन सबने इस यात्रा जाते हैं। बृहस्पतिवार की गाड़ी में पहले, दूसरे और को कष्टप्रद बताकर अमरीका होते हुए जापान जाने की तीसरे दर्जे के मुसाफ़िर लिये जाते हैं। सलाह दी। मेरे पास समय होता तो मैं ऐसा ही करता, ब्रुसेल्स से बर्लिन- इंग्लैंड में अपना काम समाप्त लेकिन १६ दिन के समय की बचत भी तो कोई चीज़ है। करके मैं बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स ा गया। अमरीका के रास्ते से जापान पहुँचने में ३० दिन लगते ब्रुसेल्स में इस समय बड़ी चहल-पहल थी। एक बड़ी और मास्को होकर जाने में १४ दिन । हकीकत में इस प्रदर्शिनी हो रही थी। ११ जून को मैं हवाई जहाज़ से यात्रा के कष्टप्रद अनुभवों को स्वेच्छा से स्वीकार करने- ब्रुसेल्स से बर्लिन के लिए रवाना हुअा और तीन घण्टे वाले वे ही विरले होते हैं जिन्हें एडवेंचर (साहसपूर्ण के बाद ही सात बजे शाम को बर्लिन पहुँच गया । ट्रेन कार्यों) से प्रेम है अथवा जो समय की बचत के सामने ११॥ बजे रात को छूटनेवाली थी, इसलिए बर्लिन किसी भी कष्ट को अधिक नहीं समझते।
में घूमने का मौका मिल गया। हिटलर के राज्य की जो मैं अपने निश्चय पर अटल रहा। बर्लिन से जापान चर्चायें मैंने पढ़ी थीं उनसे मैं सोचता था कि ऐश
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