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________________ २८० सरस्वती वास्तविक शान्ति और स्वाधीनता की स्थापना तब हो सकती है जब समाज के धन का बँटवारा समानता के आधार पर हो। इस बात को लेकर वे वर्षों आन्दोलन करते चले आ रहे हैं। हाल में ही अमरीका के 'नेशन' नामक समाचार-पत्र में उनका एक ऐसा ही लेख प्रकाशित हुआ है जिसका सारांश 'प्रताप' में प्रकाशित हुआ है। उसका कुछ अंश यहाँ हम उद्धृत करते हैं मनुष्य मनुष्य की गुलामी करे, यह क्या है ? यह शरीर और श्रात्मा का तिरस्कार है । कवियों ने गुलामी की जी भर निन्दा की है। उन्होंने एक स्वर से यह घोषणा की है कि एक मनुष्य वह चाहे जितना अच्छा क्यों न हो, दूसरे मनुष्य का स्वामी बनने के योग्य नहीं । मार्क्स ने अपने समस्त जीवन को इस बात को सिद्ध करने में बिता दिया था कि जब तक गुलामी की प्रथा कानून के द्वारा नहीं हटा दी जाती तब तक उसका विनाश नहीं हो सकता; क्योंकि मनुष्य के स्वार्थ और निर्दयता का कभी नहीं होता । मनुष्य के स्वार्थ और निर्द यता के कारण समाज में गृह-युद्ध चला करता है, वह मालिकों और गुलामों की श्रेणियों में विभाजित है । एक और मज़दूर सभायें हैं और दूसरी ओर पूँजीपतियों के संघ हैं । पूँजीपति लोग पार्लियामेंटों, स्कूलों, समाचारपत्रों दि के द्वारा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि जन-साधारण अपनी गुलामी का अनुभव न कर सके। हमें शुरू से ही यह सबक सिखाया जाता है कि हमारा देश स्वाधीन है । जब हम वोट देने लायक हो जाते हैं तब हमसे कहा जाता है कि तुम्हारे लिए वेतन संघ की स्थापना हुई है, निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध किया गया है, राष्ट्रीय प्रौद्योगिक निर्माण योजना कार्यरूप में परिणत की जा रही है, बेकारों का सरकारी सहायता दी जाती है यदि आदि । पर वास्तव में देखा जाय तो इतने पर भी जनसाधारण भूखा और नंगा रहता है । स्कूलों और विश्वविद्यालयों से निकले हुए रईसों के लड़के समझते हैं कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था सबसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ अच्छी है । इसका कारण यह है कि इस व्यवस्था में उनके साथ पक्षपात किया जाता है। इसी लिए वे इसकी रक्षा के लिए जी तोड़कर कोशिश करते हैं । भ्रमपूर्ण ऐतिहासिक पुस्तकों, बेईमानी से भरे हुए अर्थशास्त्र आदि का सीख कर रईस का लड़का अपने केा जनसाधारण की श्रेणी से बड़ा और अधिक सुसंस्कृत समझता है । शासकगण और पूँजीपति यह जरूरी समझते हैं कि उन्हें सुन्दर और अच्छे कपड़े पहनना चाहिए, खास ढङ्ग से उच्चारण करना चाहिए, पहले दर्जे में सफ़र करना चाहिए, केवल घण्टी बजा देने से यदि कोई साधारण आदमी जूते साफ़ कर सकता है तो उन्हें स्वयं नहीं साफ़ करना चाहिए यदि आदि । इसके अतिरिक्त वे जनसाधारण को मूर्ख और अन्धविश्वासी बनाये रखना चाहते हैं, जिससे वह पूँजीपतियों के हुक्म को बिना आनाकानी के बजाया करे । जनसाधारण को कानून द्वारा यह करने और वह न करने के लिए बाध्य किया जाता है। यदि वे कानूनों को न मानें तो अदालतें उन्हें सजा दे देंगी। मिल मालिक मज़दूरों का शोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं । मज़दूरों के पास एक ही चारा रह जाता है। वह है हड़ताल । पर पुलिस उन्हें हड़ताल भी नहीं करने देती । इन सब बातों को देखते हुए यह ज़रूरी मालूम पड़ता है कि हमें वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन करना होगा । पर केवल राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने से काम न चलेगा । सामाजिक और आर्थिक प्रणाली में भी उलट-फेर करना होगा। इंग्लैंड का जनसाधारण जिसे आज़ादी समझता है वह दर असल आज़ादी नहीं । सच्ची आज़ादी तो तभी कायम होगी जब समाज के धन का बँटवारा समानता के आधार पर हुआ करेगा । जन-संख्या का प्रश्न श्रीयुत ज्योति: प्रसाद 'निर्मल' द्वारा सम्पादित 'हिन्दुस्तान' में हिन्दुस्तान की गिरती हालत शीर्षक एक महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ है। उस लेख के www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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