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________________ संख्या ३] सामयिक साहित्य २७९ से मौजूद हैं; मगर सर गौड़ के सिविल मैरिज एक्ट धर्म के अनुसार अत्याज्य वा अविच्छेद्य है और मुसलसे बहुत कम लोगों ने लाभ उठाया है। उधर डाक्टर मान इसलिए तलवार रक्खें कि सिख कृपाण रखते हैं तो इन भगवानदास के बिल के पास होने के साथ ही उससे पहले कृपाणों और तलवारों के बीच में अन्य सम्प्रदायों की क्या और बाद में हिन्दूरीति से किये गये सब अन्तर्जातीय गति होगी ? क्या वे बेमौत मारे जाने को राजी हो जायँ ? विवाह कानूनी करार दिये जायेंगे । डाक्टर गौड़ के सिविल यदि सिखों को अपने गुरुद्वारों की और मुसलमानों को मैरिज एक्ट से शादी कराने के लिए विवाह की रजिस्ट्री मसजिदों की रक्षा करनी है तो हिन्दुओं को मन्दिरों कराना आवश्यक है। इससे बचने के खयाल से बहुत-से की और ईसाइयों को गिर्जाघरों की रक्षा करनी ही होगी । लोग अन्तर्जातीय विवाह नहीं कराते । डाक्टर भगवान- इससे मालूम होगा कि यह प्रश्न जिस तरह केवल दास का बिल उनकी यह बाधा दूर कर देगा। सिखों और मुसलमानों का नहीं है उसी तरह केवल गुरु द्वारों और मसजिदों का भी नहीं है। मन्दिरों को भी तलवार रखने का दावा दावा करने का अधिकार है। पर भिन्न भिन्न धर्मों के लाहौर के मुसलमानों ने माँग पेश की है कि अनुयायी हमें क्षमा करें, हम तो मन्दिरों और मसजिदों सिक्खों कृपाण रखते हैं इसलिए उन्हें तलवार रखने से मनुष्यकृत सब उपासना स्थान से उस मंदिर को की इजाजत दी जाय। पर भारत में सिख और अधिक पवित्र और रक्षणीय समझते हैं जो स्वयम् परमुसलमान ही नहीं बसते । हिन्दू, ईसाई आदि और मात्मा ने बनाया है और जो परमात्मा के अस्तित्व का लोग भी बसते हैं। वे क्या करें ? इन सब बातों उज्ज्वल प्रमाण है। हमारा मतलब मनुष्य-शरीर से है। पर विचार करते हुए सहयोगी 'आज' ने एक मह- हम यह बात क्षण भर के लिए भी मानने को तैयार नहीं त्त्वपूर्ण अग्र लेख प्रकाशित किया है। उसका कुछ हैं कि ईट-पत्थरों से मनुष्य-द्वारा बनाये गये मन्दिरों और अंश हम नीचे उद्धृत करते हैं मसजिदों की रक्षा के लिए तो कृपाणे और तलवारों की लाहौर में मुसलमानों की सार्वजनिक सभा ने यह आवश्यकता है और ईश्वर के बनाये सजीव मन्दिर दावा पेश किया है कि जिस तरह सिखों को कृपाण रखने जिसमें वह स्वयम् वास करता है, अरक्षित छोड़ दिये की स्वतन्त्रता दी गई है, उसी तरह मुसलमानों को भी जायँ । ईट-पत्थरों के मानवकृत उपासना-स्थानों की अपनी मसजिदों की रक्षा के लिए तलवार रखने की स्वत- रक्षा के लिए भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के उपान्त्रता मिलनी चाहिए। प्रश्न हँसकर उड़ा देने योग्य नहीं सकों को यदि शस्त्र दिये जायँगे तो ईश्वर के बनाये है। सिखों का धर्म है कृपाण रखना, अतएव कृपाण उन मन्दिरों की अवस्था और भी विपज्जनक हो जायगी। से छीना नहीं जा सकता। तलवार के सम्बन्ध में इस्लाम यह बात प्रत्येक समझदार को माननी ही पड़ेगी। अतकी ऐसी काई आज्ञा नहीं है सही, पर मुसलमान कह एव हम इस बात पर जोर देंगे कि प्रत्येक नागरिक को सकते हैं कि धर्म के ही कारण से क्यों न हो, पर जब एक अपने बाल-बच्चों की और अपनी तथा अपने रहने के सम्प्रदाय को शस्त्र रखने से रोकना न सम्भव है न मन्दिर की रक्षा करने के लिए शस्त्र रखने की स्वतन्त्रता उचित, तो मुसलमानों को भी शस्त्र रखने की स्वतन्त्रता पहले मिलनी चाहिए, बाद को मसजिद और मन्दिर की मिल जाय । हम इस दावे का औचित्य स्वीकार करते हैं, रक्षा करने के लिए तलवार रखने की इजाज़त दी जानी पर मुसलमानों को जो यह दावा कर रहे हैं, मानना चाहिए। पड़ेगा कि प्रश्न यहीं समाप्त नहीं हो जाता। जो हक मुसलमानों को है वही हिन्दू, ईसाई आदि अन्य सम्प्रदायों बर्नाड शा के स्वाधीनता-सम्बन्धी विचार को भी है। सिख कृपाण इसलिए रक्खें कि वह उनके जार्ज बर्नार्ड शा का कहना है कि संसार में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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