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________________ २७८ सरस्वती इन महान् व्यक्तियों के पथ पर चलनेवाले हम छोटे लोग भी अगर इस बात का गर्व करें कि हमारा कार्य बड़ा पवित्र है और हमारे पूर्वज बड़े महान् थे तो हमारा यह गर्व अक्षम्य नहीं समझा जायगा । हम उनके चरण-चिह्नों पर चलते हैं, उनके आदर्शों का सम्मान करते हैं और उतनी योग्यता न होते हुए भी उन्हीं की भाँति उसी भाव से अपनी और उनकी मातृभूमि की सेवा करना चाहते हैं । यहाँ मुझे यह न भूल जाना चाहिए कि भारत काम करनेवाले कई अँगरेज़ पत्रकार भी ऐसे हुए हैं जिनका उनके समकालीन भारतवासी बड़ा सम्मान करते थे और आज भी हम उनको बड़े सम्मान के साथ स्मरण करते हैं। राबर्ट नाइट, मार्टिन वुड, विलियम डिग्बी, एस० के० रैटक्लिफ़ और ग्लीन बारलो ऐसे ही व्यक्ति थे; और श्री बी० जी० हारनीमैन भी ऐसे ही व्यक्ति हैं । स्वर्गीय श्रीमती ऐनीबीसेंट का स्थान तो इन सबसे भी ऊँचा है । यह हमारे लिए खेद की बात है कि आज भारत में जो अँगरेज़ पत्रकार कार्य कर रहे हैं वे ब्रिटेन के अस्थायी हितों का ही ध्यान रखते हैं और जिसमें वे रह रहे हैं तथा जिस देश की जनता की सहायता के आधार पर ही उनके पत्र चल रहे हैं उसकी सेवा करना वे अपना कर्तव्य नहीं समझते । अन्तर्जातीय विवाह-बिल सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान बाबू भगवानदास असेम्बली के आगामी अधिवेशन में एक अन्तर्जातीय विवाह-बिल उपस्थित करने जा रहे हैं। इस पर सहयोगी 'नवयुग' ने एक अग्र लेख लिख कर यह सिद्ध किया है कि देश की वर्तमान बदली हुई परिस्थिति में ऐसे क़ानून की आवश्यकता है और प्राचीन काल में ऐसे विवाह होते भी थे। लेख का एक अंश इस प्रकार है शास्त्रकारों ने अनुलोम और प्रतिलोम दोनों प्रकार के विवाहों की इजाज़त दी है। इतना ही नहीं, शास्त्रकार गान्धर्व, राक्षस विवाह को भी विवाहों में गिनते आये हैं। प्राचीन काल में अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ भीम का हिडिम्बा से विवाह होना और माता कुन्ती और युधिष्ठिर का उसको शास्त्रानुमोदित बताना और भीम को इस कार्य पर उनका आशीर्वाद देना यही सूचित करता है कि अन्तर्जातीय विवाह प्राचीन काल में प्रचलित थे और समाज में वे चादर से देखे जाते थे । ग्राज से बीस साल पहले अन्तर्जातीय विवाह का विरोध जिस प्रकार किया जाता था श्राज वह भाव नहीं रहा है | आज साधारण समाज ऐसे विवाहों का यदि दर की दृष्टि से नहीं देखता तो कम कम उसका विरोध नहीं करता । श्रौंध के पन्त प्रतिनिधि सदृश कट्टर सनातनधर्मी नरेश का अन्तर्जातीय विवाह का पक्षपाती होना इस बात का सूचक है कि समाज के विचारक और प्रगतिशील व्यक्ति इसकी आवश्यकता का अनुभव करते हैं । इस समय परिस्थिति और अवस्था भी बदल गई है। बहुत-से लोग नौकरी व्यवसाय व्यापार के कारण अपने जन्म-स्थानों को छोड़कर दूसरे प्रान्तों में जाकर स्थायी रूप से बस गये हैं। उनके लिए वहाँ अपनी ही जाति, उपजाति में अपनी संतान की शादी करना सम्भव नहीं रहा है । केवल विवाह के लिए वे अपने जन्म-स्थान को जा नहीं सकते। क्योंकि बहुत से लोगों का अपना पुराना जन्म-स्थान छोड़े हुए दो दो तीन तीन पुश्तें हो गई हैं। इस बदली परिस्थिति के कारण यह आवश्यक हो गया है। कि जाति को तोड़कर किये गये विवाह क़ानूनी माने जायँ । इस बिल की आवश्यकता एक कारण से और भी है । देश में राष्ट्रीयता की स्थापना उस समय तक सम्भव नहीं है जब तक कि मौजूदा असंख्य जाति-भेद और उपभेद विद्यमान रहेंगे । इनका अन्त अन्तर्जातीय विवाह के द्वारा ही हो सकता है । इसलिए राष्ट्र का बल बढ़ाने, युवकयुवतियों को अपना जीवन-संगी चुनने के लिए विस्तृत क्षेत्र देने और नई पीढ़ी को बलवान बनाने के वास्ते भी यह आवश्यक है कि अन्तर्जातीय विवाह क़ानून संमत माने जायँ । इस क्षेत्र में गौड़ एक्ट और ब्रह्मसमाज एक्ट पहले www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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