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________________ संख्या ३] सामयिक साहित्य २८१ लेखक हैं श्रीयुत विनायक गणेश वझे बी ए० । लेख -हमारे विवाह का वयमान भी बढ़ाने की आवश्यकता है । का एक अंश इस प्रकार हैं - अभी हाल में श्रीनिवास शास्त्री ने अन्नामलाय-विश्वयद्यपि हमारी जनन संख्या का परिमाण बहुत ज्यादा विद्यालय में इस प्रश्न पर दृष्टिक्षेप करते हुए बड़ी चुस्त है, तथापि उसकी जन-संख्या घट ही रही है। १८७५ से टीका की थी। हमारी वर्तमान सामाजिक परिस्थिति के १६७० तक भारत में ११ करोड़ से ऊपर लोग मर गये। सुधार का कोई न कोई उपाय अवश्य ढूँढ़ निकालना इससे स्पष्ट है कि हिन्दुस्तान कितना भूखा-कंगाल हो चाहिए । श्रीनिवास शास्त्री ने शारदा-ऐक्ट का जिक्र रहा है । अनावृष्टि इत्यादि आपत्तियों को दूर करने के करते हुए कहा था कि उसकी जो अवहेलना सरकार और लिए हमारी सरकार ने कोई प्रयत्न नहीं किया है। महा- जनता, दोनों द्वारा की जा रही है वह किसी भी सम्मान्य मारी ने भी हमारे ऊपर कम गज़ब नहीं ढाया है। देश के लिए लजाजनक है । शारदा-ऐक्ट केवल नाम ही १६०० से लेकर १६२० तक ११ करोड़ से भी ऊपर के लिए है, क्योंकि धड़ाधड़ उसकी अवहेलना हो रही है । लोग इसके शिकार बन चुके हैं। १६१६ में सिर्फ इसके लिए संतति-नियमन को भी व्यवहार में लाने की ६ महीनों में ८४ लाख मनुष्य मृत्यु-मुख में चले गये। ज़रूरत है, क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में दो-तीन से हिन्दुस्तान में ४३.६ प्रति हज़ार पैदा होते हैं और ३८५ ज़्यादा बच्चे पैदा होना माँ बाप, दोनों, के लिए हानिकारक प्रति हज़ार मरते हैं । अमेरिका में ३५.१ प्रति हज़ार है। इस वक्त दरिद्रता भी इतना भयानक रूप धारण पैदा होते हैं और १७°४ प्रति हज़ार मरते हैं। इंग्लैंड किये हुए है कि उसके निवारणार्थ उपाय निकालना नितांत में २२ प्रति हज़ार पैदा होते हैं और १२ प्रतिशत आवश्यक है । हिन्दुस्तान में प्रत्येक मनुष्य जो कृषि करता मरते हैं । इस प्रकार इन देशों की तुलना में हिन्दुस्तान है, वर्ष में सिर्फ ४८) पैदा करता है, जहाँ जापान का में अकाल-मृत्यु और बाल-मृत्यु की संख्या बहुत बढ़ी- ८५), ग्रेटब्रिटेन का ६२), कनाडा का ३४४), और चढ़ी है। अमेरिका का १७५) पैदा करता है। उद्योग-धन्धों अतएव इस प्रश्न की ओर लोगों को शीघ्र ही ध्यान की स्थिति तो एकदम निराशाजनक है। उसमें देना चाहिए । लोगों के स्वास्थ्य पर और उनकी आर्थिक हिन्दुस्तान का एक मनुष्य वर्ष भर में सिर्फ १२) परिस्थिति पर विशेष ध्यान देने और उसके सुधारने की कमाता है। जहाँ जापान का मनुष्य १८५), ग्रेटब्रिटेन श्रावश्यकता है। इसके लिए जनता में जागृति होनी का ४६५), और कनाडा का ५४५), अमेरिका का ६६३) चाहिए । हमारा अज्ञान और हमारी ग़रीबी ही हमारे दारि- कमाता है। ऐसी परिस्थिति में अगर शीघ्र ही कोई द्रय के मूल कारण हैं । हमारे आहार-विहार भी आरोग्य- उपाय न किया गया तो हमारे देश की क्या दशा होगी, प्रद रीति से होने चाहिए । हम को जन-संख्या की बाढ़ भी कहा नहीं जा सकता । यहाँ के व्यवसाय और उद्योग-धंधों रोकनी चाहिए । १९२१ से १६३१ तक उसमें १०.५ प्रति के बढ़ाने की बड़ी ज़रूरत है। यहाँ ६६.४ प्रतिशत शत की बाढ़ हुई है। अभी कुछ दिन हुए श्री हुसेन इमाम लोग कृषि में हैं और सिर्फ १० प्रतिशत लोग उद्योग-धंधों ने इस श्राशय का बिल कौंसिल अाफ़ स्टेट में पेश किया में लगे हैं । इन बातों को ध्यान में रखते हुए चारों ओर से था कि इस जन-संख्या को घटाने की कोशिश की जाय। भारत की प्रगृति का होना अत्यन्त आवश्यक है। भलाई परन्तु लोगों के औदासीन्य से वह पास नहीं हो सका। इसी में है कि हम समय पर चेते। फा. १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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