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________________ संख्या ३] ऐरोमा २६७ करते देखा था, परन्तु बाद को वह नोट-बुक उन्हें कभी उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया था। उन्हें अपने दिखाई न दी। प्राणनाथ को दवा का नुस्खा कंठस्थ शरीर का, अपने स्वास्थ्य का कोई ध्यान न रहा था । था, नोट -बुक की उसे आवश्यकता ही न थी, फिर भी ज्यों ज्यों बार्डर अधिक संख्या में आने लगे, उनकी डाक्टर हरिकुमार को ज्ञात था कि नोट-बुक उसकी व्याकुलता में वृद्धि होती गई। वे अपने शरीर की अन्दर की जेब में रहती है। प्रयोगशाला में उसके अोर से बेपरवा हो गये थे। पहले वे प्रातः उठकर कपड़े और होते और बाहर और, किन्तु वह उन्हें हजामत बनाते, ब्रश करते, नहाते, समय होता तो सैर बदलते समय सावधानी से नोट-बुक भी निकाल लेता। करने को भी जाते। पर अब 'सवेरे' जब बिस्तर से डाक्टर साहब उस सुअवसर की ताक में थे कि वह उठते तब 'घड़ी की सुई सवा नव पर थी' का-सा हाल नोट -बुक भूल जाय, पर आज तक वह अवसर न होता। कई कई दिन तक बाल न बनवाये जाते। कपड़े आया था। मैले हैं, पर बदलने की इच्छा नहीं होती। निजी काम भी प्रकट रूप से वे उससे हँस हँस कर बातें करते । प्रायः चौपट हुअा जा रहा था, पर उनको उसकी सुध श्राधे भाग की जगह उसे कुछ अधिक ही देते। हर तक न थी। यह सब कुछ था, परन्तु प्राणनाथ के साथ उत्सव पर उसके घर कुछ न कुछ भेज देते । उसके उनके व्यवहार में कोई अन्तर न आया था । उससे वे माता-पिता को अपने यहाँ आमन्त्रित करते, किन्तु अन्दर सदैव मुसकराते हुए मिलते । उसकी सेवा-शुश्रूषा में कोई से जलते रहते । उनका हृदय सदैव ईर्ष्या और स्वार्थ की कमी न होने पाती। कसाई जानवर को पाल रहा था, अग्नि में भुना करता। __ पर साथ ही छुरा भी तेज़ किये जा रहा था। प्राणनाथ की भोली-भाली सरल सूरत उन्हें ज़हर संध्या का समय था। हरिकुमार ड्राइङ्ग रूम में बैठे प्रतीत होती । प्रतिक्षण उससे दवा का रहस्य पूछने में दवा-फ़रोशों के सूचीपत्र देख रहे थे। सहसा उनकी लगे रहते । कहते, यार तुमने कमाल कर दिया। आखिर आँखों में एक चमक पैदा हुई । उन्होंने सूचीपत्र को साथ तुम्हें इसका खयाल कैसे पैदा हुआ ? वही किताबें हमने लिया और मोटर में सवार होकर माल-रोड की ओर चले पढ़ी हैं, वही तुमने। हमें तो कहीं कुछ सुझाई नहीं गये । 'ऐमनीशिया!' 'ऐमनीशिया !' उन्होंने दो बार इस दिया। प्राणनाथ चुप रहता या मुसकरा देता । अपनी दवा का नाम दोहराया । इसकी एक बूंद का प्रशंसा को सुनकर चुप रहना उसने भले प्रकार सीख बीसवाँ हिस्सा उनकी मनोकामना को पूरा कर सकता लिया था और सत्य तो यह है कि इसी में उसकी भलाई था। दवा की शीशी कोट की भीतरी जेब में दबाये हुए थी। वह उन पुरुषों में से न था जो प्रशंसा के दो शब्दों डाक्टर साहब अपनी कोठी में दाखिल हुए, उस सेनासे फूलकर कुप्या हो जाते हैं और फिर खुशामदी जो चाहे, नायक की भाँति जिसे दुश्मन को परास्त करने का कोई कह देते हैं । डाक्टर हरिकुमार ने इस शस्त्र को निष्फल सुगम साधन हाथ आ गया हो। जाते देखकर दूसरे हथियार से काम लेने की ठानी। प्राणनाथ प्रयोगशाला में अपने काम पर आ गया उन्होंने प्राणनाथ को मदिरा-पान की लत डालने का था और ड्रेसिंगरूम में कपड़े बदल रहा था । हरिकुमार प्रयास किया, किन्तु इस प्रयत्न में भी वे निष्फल रहे। ने सर्जरी से एक सुई ली, और कमरे में पड़े हुए दवा के प्राणनाथ शराब तो क्या सिगरेट तक के समीप न गया, बंडलों पर से गुज़रते हुए शीघ्रता से ड्रेसिंगरूम में आये। और डाक्टर हरिकुमार सब अस्त्र : ला चुकने पर थक प्राणनाथ चीज़ों को कोट की एक जेब से दूसरे की जेब में जानेवाले योद्धा की भाँति हार कर बैठ गये। रख रहा था। उसकी पीठ डाक्टर साहब की ओर थी । __ पर वे निश्चिन्त हो गये हों, यह बात न थी । उनके दिन उसे एक साधारण-सी चुभन जान पड़ी और उसके साथ और रातें इसी समस्या का हल सोचने में व्यतीत होतीं। की चीजें गिरकर बिखर गई । डाक्टर हरिकुमार ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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