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________________ २६६ सरस्वती [भाग ३६ कर सके उसे लाहौर के एक कोने में बैठा हुआ उनका नींव रक्खी गई। दवा का नाम 'ऐरोमा' रक्खा गया । सहकारी तैयार कर लेगा। प्राणनाथ ने उनकी इस उधेड़- कुछ ही महीनों के विज्ञापनों से विदेश तक से आर्डर बुन की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। वह उनका हाथ आने लगे। रसायन-क्षेत्र में शोर मच गया। लोग थामे उन्हें सर्जरी में ले गया । दो रुपये की एक शीशी मँगाते और अपने तो अपने, प्राणनाथ ने रुई के टुकड़े को शीशी में भिगोते पड़ोसियों तक के दाँत निकाल देते । दवा की ईजाद किसने हुए कहा- "हाथ कंगन को आरसी क्या ?" डाक्टर की है, इस बात का ठीक ठीक पता किसी को न था, हरिकुमार चुप खड़े देखते रहे। उसने उस दाढ़ के ऊपर भाँति भाँति के अनुमान भिड़ाये जाते थे। कोई मसूड़े पर दवा लगाई और रोगिणी को तश्तरी पर मुँह डाक्टर हरिकुमार को उसका आविष्कारक बताता तो झुकाने के लिए कहा। कुछ क्षणों के बाद दाँत के बदबू- कोई कहता उन्होंने जर्मनी से केमिस्ट रासायनिक) दार टुकड़े स्वयं थूक के साथ तश्तरी में गिर पड़े और बुलवाया है। किन्तु प्राणनाथ का कोई नाम तक न रोगिणी का कष्ट दूर हो गया। हरिकुमार प्राणनाथ के लेता । चाँदी का रुपया ताँबे के सम्मिश्रण से झंकृत होता मुख की ओर टकटकी बाँधे देखते रहे । उन्हें ऐसा है, किन्तु नाम रुपया का ही होता है, ताँबे को कोई नहीं प्रतीत हुआ, जैसे वे काम करते करते ऊँघ गये हों और पूछता। स्वप्न में कोई जादूगर उन्हें आश्चर्यजनक खेल दिखा डाक्टर हरिकुमार इन किंवदंतियों को सुनते और रहा हो । भ्रम दूर करने के निमित्त उन्होंने आँखों को चाहते कैसा अच्छा होता यदि मैं इस दवा का आविष्कारक भी मला, खिड़की से बाहर को देखा, पर सब कुछ होता। एक बड़ा भारी कारखाना खोलता। सारे संसार सत्य था। सामने कुर्सी पर लाला जुगलकिशोर की पत्नी में मेरी ख्याति की बिजली कौंद जाती। लोग प्रलयबैठी थी, उसके मुँह पर शांति की झलक थी। बाहर लाला पर्यन्त मेरे नाम को स्मरण रखते। उनका चित्त प्रतिदिन साहब का मोटर खड़ा था और शोफ़र मज़े से सिगरेट पी व्याकुलता के अथाह सागर में उतरता जाता । मन रहा था। की नाव आशंका के भँवर में डगमगाया करती। उन्हें उनके असिस्टेंट ने वह काम कर दिखाया था जो खटका लगा रहता, कहीं अाज प्राणनाथ मुझसे सम्बन्धयोरप के बड़े बड़े रासायनिक भी न कर सके थे। विच्छेद न कर ले, कहीं अाज जुदा न हो जाय । सोचते-- यदि प्राणनाथ मुझसे जुदा हो गया तो कहीं का न ___ कुछ ही काल में 'ऐरोमा' की ख्याति सारे भारत रहूँगा। सारी ख्याति मिट्टी में मिल जायगी। भविष्य में फैल गई। सब पत्रों में उसके विज्ञापन निकलने लगे। का सुन्दर और सुनहरा दुर्ग एक क्षण में ढह जायगा और सम्पादकों ने उस पर अपनी सम्मतियाँ दी, उसकी प्रशंसा प्राणनाथ ! वह ऐश करेगा। सिद्धि और विलास उसके के पुल बाँध दिये। डाक्टर हरिकुमार को बैठे-बिठाये पाँव चूमेंगे । संसार उसकी प्रशंसा करेगा। पत्र उसके एक निधि मिल गई। प्राणनाथ सारा दिन प्रयोगशाला फ़ोटो प्रकाशित करेंगे। रुपया मैंने लगाया। प्रयोग में बन्द रहता, दवा तैयार करता । सन्ध्या को वह शीशियों करने के लिए. प्रयोगशाला मैने दी। अब वह मुझे में बन्द कर दी जाती और दूसरे दिन बाहर भेज दी अलग कर देगा । दूध की मक्खी की भाँति निकाल जाती। धन पानी की नाई बरसने लगा। फेंकेगा। प्राणनाथ रुपया नहीं लगा सकता था । उसने डाक्टर साहब को इस अल्पकाल में ही कई सहस्र डाक्टर साहब से दवा और विज्ञापनों पर धन व्यय करने रुपया मिल चुका था, पर उनका सन्देह किसी प्रकार के लिए कहा और उसे तैयार करने का बोझ अपने कंधों दूर न होता था। पहले दिन उन्होंने किवाड़ के छेद पर लिया। 'सम्मार्ट एंड का' के नाम से एक कम्पनी की से प्राणनाथ को नोट-बुक से कुछ देखकर दवा तैयार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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