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________________ संख्या ३] ऐरोमा २६५ असत्य कह रहे हैं। न डाक्टर साहब इस तरह किरचें "बस, बस, खूब अवसर मिला ।' प्राणनाथ ने निकाल सकते थे और न उनके पास कोई और प्रिपेरेशन बात काटते हुए कहा-"आज़माइश हो जायगी।" हर्ष ही था। वे केवल कुछ समय चाहते थे, जिसमें वे और उल्लास से उसका चेहरा दुगुना हो गया। इनको खुश असलूबी से जवाब देने का बहाना ढूँढ़ डाक्टर साहब की समझ में कुछ न अाया। वे बुत सकें। इस प्रकार वे इन्हें नहीं जाने देना चाहते थे। बने उसकी ओर निर्निमेष ताकते रहे। प्राणनाथ डाक्टर साहब के सम्मुख खड़ा हो गया । ___ डाक्टर साहब कोच पर बैठे हुए, सोच रहे थे, उसके चेहरे से गम्भीरता टपकने लगी। उसने जेब से पर कुछ सोच न पाते थे। आज उन्हें कुछ कहने के एक शीशी निकाली, जिसमें लाल रंग की कोई गाढ़ी चीज़ लिए शब्द तक न सूझ रहे थे। उनका अनुभव, उनकी थी। उसने कहाबुद्धि, सब हवा हो गये थे। रोगिणी इंजक्शन कराने को "इसमें वह दवा है डाक्टर साहब- वह औषध है राज़ी न द न दे सकते थे और वैसे जिसकी आवश्यकता अाज सब संसार को है. जिससे किरचों का निकालना सर्वथा असम्भव-सा था। किंकर्तव्य- दंदानसाज़ी के क्षेत्र में हलचल मच जायगी, जिसकी विमूढ़-से वे चुप बैठे थे। दीवार पर टँगी हुई घड़ी ने एक बूंद रोगी के लिए जादू का असर रखती है। दस बजाये । पन्द्रह मिनट उन्हें इसी असमंजस में बीत इसके होते गैस या इंजक्शन की कोई आवश्यकता न गये। उन्होंने दीर्घ निःश्वास छोड़ा और उठ खड़े हुए। होगी। एक बूंद दाँत के ऊपर मांस पर लगा दीजिए, उन्होंने सोचा, मौके पर जो सूझ पड़ेगा, कह देंगे और कुछ ही क्षणों में मसूड़े स्वयं दाँत छोड़ देंगे।" कर ही क्या सकते हैं ? उस समय उनके हृदय में एक डाक्टर साहब हँस दिये। रोब से बोले-यह हँसी प्रबल आकांक्षा उठी। वह यह कि कोई ऐसी दवा होती का समय नहीं है कि तुम मजमा लगानेवालों की भाँति जिससे दाँत कष्ट के बिना स्वयं ही निकल जाते। भाषण दो। “डाक्टर जी! डाक्टर जी!" प्राणनाथ ने प्रसन्नता प्राणनाथ मुस्कराया, फिर गम्भीर होकर बोलासे विह्वल होकर डाक्टर हरिकुमार के कंधों को थपथपाते हँसी कौन करता है ? मेरा आज वर्षों का परिश्रम ठिकाने हुए कहा। लगा है। आज वह दवा तैयार हो गई है जिसका __ डाक्टर हरिकुमार ने चिन्ता के कारण झुका हुअा अाविष्कार करने के लिए न दिन को चैन और रातों की अपना सिर ऊपर उठाया। उनकी व्यथित आँखें उसकी नींद तक हराम हो गई थी। मुसकराती हुई आँखों से मिलीं । प्राणनाथ के हाथ ढीले डाक्टर हरिकुमार चुपचाप प्राणनाथ के मुँह की ओर पड़ गये । दूसरे क्षण कोच पर बैठकर वह अपने डाक्टर के देखते रहे। वे रोगिणी का दुख और अपनी परेशानी चिन्तित मुख का निरीक्षण करने लगा । अन्दर से रोगिणी सब भूल गये ! के कराहने की आवाज़ आई। प्राणनाथ ने शीशी की ओर देखते हुए कहीऐसे अवसर पर डाक्टर साहब सदैव प्राणनाथ से "और मज़े की बात यह है कि जिस दाँत पर दवाई परामर्श किया करते थे । वे बोले-अजीब विषम लगाई जायगी वही गिरेगा, दूसरे को तनिक भी हानि न समस्या उपस्थित है प्राणनाथ । अन्दर सर्जरी में लाला पहुँचेगी।" जुगलकिशोर की पत्नी बैठी है। उसकी दाई दाढ़ जीर्ण- डाक्टर साहब को अपने सहकारी की बातों पर शीर्ण होकर टूट गई है । वह इंजक्शन करने नहीं देती विश्वास न हुआ। उसके चेहरे की मुद्रा गम्भीर थी. पर और दुर्बलता के कारण मैं गैस देने का साहस नहीं कर डाक्टर साहब को विश्वास न होता था कि जिस दवा सकता। बड़ी उलझन में......... को सहस्रों चेष्टाओं पर भी योरप के मस्तिष्क न तैयार फा. १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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