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________________ सरस्वती [ भाग ३६ प्रवर्तक, कवि, आदर्श पुरुष, वीर, तथा देशभक्त महा- वान् सौम्यकाशीश की स्तुति के साथ ही साथ अद्वैत तत्त्व पुरुषों का वर्णन किया है। एक एक शीर्षक के नीचे का सुन्दर सामंजस्य किया है। स्वामी जी की संस्कृत पाँच पाँच प्राचीन तथा अर्वाचीन महापुरुषों के चरित प्राञ्जल तथा शैली सरल है । पुस्तक में नाना छन्दों के सरल तथा सुबोध भाषा में लिखे गये हैं। लेखक की समावेश के कारण पुस्तक पढ़ने में जी नहीं ऊबता। वर्णन-शैली रोचक और मनोहर है। विद्यार्थियों के लिए अष्टादश स्तवक तो शिवस्वरूप का ही वर्णन करता है उपयोगी है । महापुरुषों की जीवन-कथाओं से वे बहुत और वह भी दुर्गा सप्तशती की शैली पर । अनुष्टुप् श्लोकों कुछ उपयोगी बातें और शिक्षायें इस पुस्तक से सीख के अन्तिम चरण “नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमस्तस्मै नमो सकेंगे। पुस्तक में चित्रों का यदि समावेश होता तो और नमः" इन शब्दों में लिखे गये हैं । श्लोकों पर वैद्यराज जी भी अच्छा होता। ने हिन्दी में सरला टीका लिखी है तथा श्लोकों का गम्भीर ७–वेदान्तभानु-लेखक, संत अमीचन्द्र शर्मा हैं, अर्थ प्रकट करने में सहायक उपनिषद्-वाक्यों का चयन पृष्ठ-संख्या १२२ और मूल्य ॥ है। पता-कल्याण करके इस ग्रन्थ को सर्वसाधारण के लिए उपयोगी बना पुस्तकालय, तिलक गली, ग्वालमंडी, लाहौर। दिया है । हिन्दी-टीका की भाषा यद्यपि सर्वथा शुद्ध नहीं लेखक ने इस पुस्तक में वेदान्तग्रन्थों में वर्णित है, तथापि श्लोकों के भाव समझने में कठिनाई नहीं (१) नित्यानित्यवस्तुविवेक, (२) इहामुत्रफलभोग विराग, होती। शिवभक्तों तथा उपनिषद्-रहस्य के जिज्ञासुत्रों को (३) शमदमादि सम्पत्ति. (४) तथा मुमुक्षत्व नामक इससे लाभ उठाना चाहिए। साधन चतुष्टय की विशद व्याख्या है। योग-सम्बन्धी ९-लेखक (मासिक पत्र)-इसके सम्पादक संत-वाणियों तथा विषयोपयुक्त कथाओं के द्वारा लेखक ने श्रीभारती एम० ए० और श्री प्रेमनारायण अग्रवाल, अपने विषय को सीधी-सादी भाषा द्वारा हृदयंगम कराने बी० ए० हैं। यह प्रयाग के लेखक-संघ का मुख पत्र का प्रयत्न किया है । इस दृष्टि से पुस्तक वेदान्त के साधन है। अभी लगभग ३ माह से निकलने लगा है। इसमें चतुष्टय के जिज्ञासुत्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। भाषा हिन्दी के लेखकों के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण ज्ञातव्य यद्यपि सर्वथा शुद्ध नहीं है और लेखक के स्वरचित विषयों का संकलन रहता है। नये लेखकों की कठिनाइयों पद्यों में छन्दोभंग-दोष स्थान स्थान पर हैं, तो भी प्रति- के दूर करने के उपयुक्त उपाय भी बताये जाते हैं। इस पाद्य विषय के समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। पत्र से नये और पुराने लेखकों दोनों का बड़ा उपकार द्वितीय संस्करण में इन त्रुटियों का सुधार वाञ्छनीय है। हो सकता है। इसके सहारे वे हिन्दी लिखने का काफ़ी ८-श्री सौम्यकाशीशस्तोत्रम्-रचयिता पूज्यपाद साफ़-सुथरा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसके सभी अंक श्री तपोयन स्वामी, सरला नामक भाषा टीकाकार श्रीयुत उपयोगी लेखों से युक्त निकले हैं । इस तृतीय अंक में वल्लभराम शर्मा वैद्यराज, पृष्ठ-संख्या ३७५ और मूल्य १) श्री नलिनी मोहन सान्याल, एम० ए० का समालोचनाहै। पता-वैद्यराज वल्लभराम शर्मा, अंजार (कच्छ) है। तत्त्व पर महत्त्वपूर्ण लेख निकला है । यह पत्र हिन्दी में इस पुस्तक में उत्तर काशीस्थ भगवान् सौम्य काशीश अपने ढंग का एक अनोखा पत्र है। इसकी एक प्रति महादेव की स्तुति संस्कृत में नाना छन्दों में की गई है। का मूल्य ।-) और वार्षिक मूल्य ३) है, किन्तु सदस्यों को महात्मा तपोवन स्वामी जी ने इस रचना में ईश, केन, २) में ही साल भर दिया जायगा। कठ आदि सोलह उपनिषदों के भावों के आधार पर भग -कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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