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________________ संख्या ३] नई पुस्तकें २५१ में सभी भाव आ जाते हैं । किन्तु देखें चतुर्वेदी जी उस की छपाई-सफ़ाई सुन्दर है और गल्पों का संग्रह देखते विषय को किस ढंग से आधुनिक जनता के सामने हुए मूल्य भी उचित ही है । उपस्थित करते हैं । इस पुस्तक का मूल्य ३) है, और कृष्णमोहन एम० ए०, बी० ए० (आनर्स) पता-साहित्य-सेवक-सदन, काशी। ४-अज्ञात-वास (खण्ड काव्य)-लेखक, श्रीयुत . -यज्ञदत्त शुक्ल, बी० ए० रामसहाय शर्मा 'मराल', पृष्ठ-संख्या १४३, मूल्य ) है । ३-उन्माद-लेखिका, श्रीमती कमलादेवी चौधरी, पता-श्रीमराल-सरस्वती-सदन, नियाज़नगर, पो. मिरहची प्रकाशक, श्री बनारसीदास चतुर्वेदी, १२०।२, अपर (एटा)। सरकूलर रोड, कलकत्ता हैं । पृष्ठ-संख्या २०० और मूल्य यह खण्ड काव्य बोल-चाल की भाषा में लिखा गया है। इसमें पाण्डवों के 'अज्ञात-वास' के समय की कथा - इस पुस्तक में श्रीमती कमलादेवी चौधरी की लिखी सरस तथा ललित शैली में वर्णित है। कीचक-वध, हुई कहानियों का संग्रह है। श्रीमती जी ने, हाल में ही कर्णार्जन-संग्राम तथा अभिमन्यु-विवाह के वर्णन कहानी लिखना शुरू किया है । उनकी कहानियों में भाव विशेषरूप से सुन्दर हुए हैं। कथा का निर्वाह कवि ने का एक प्रमुख स्थान है, उसमें अनुभूति की झलक बड़ी कुशलता से किया है। श्रीयुत 'मराल' जी की यह होती है। जिस किसी भी पात्र को देवी जी ने लिया है प्रथम कृति है, तो भी कवि को अपने प्रयास में उसी के चरित्र का चित्रण बहुत ही सुन्दरता के साथ अच्छी सफलता मिली है। इस 'कृति' को देखकर हमें किया गया है। इसमें शक नहीं कि श्रीमती कमला जी ने विश्वास होता है कि मराल जी अपनी काव्य-साधना-द्वारा जिन पात्रों का निर्माण किया है, वैसे पात्रों का निर्माण मातृभाषा के भाण्डार की श्रीवृद्धि करेंगे। आशा है, कहानी-लेखक पुरुष ज़रा कठिनता से कर पावेंगे। काव्य-रसिक कवि की इस कृति का समुचित आदर करेंगे। कहानियों के उच्च कोटि के होने के साथ ही साथ यह नहीं ५–साहित्यिक लेख-लेखक, श्रीयुत रामप्रसाद कहा जा सकता कि उनमें भूल ही नहीं है। कहीं कहीं पाण्डेय, एम० ए०, हैं, प्रकाशक, श्रीरामनारायणलाल उनमें उलझन-सी आ जाती है जिससे पाठक अक्सर बुकसेलर, इलाहाबाद हैं। पृष्ठ-संख्या २०८ और मूल्य १) है। परेशान हो उठता है। कहीं कहीं लेखिका की कल्पना हिन्दी में निबन्ध-ग्रन्थों का अभाव है। प्रस्तुत पुस्तक असंगत हो जाती है, जिससे यह धारणा हो उठती है कि में श्रीयुत पाण्डेय जी ने अपने उन निबन्धों तथा लेखों नायक अपने सीमित क्षेत्र को पार कर ऐसी जगह में का संग्रह किया है जो पिछले दस वर्षों में सरस्वती, सुधा, विचरण करने लगा है जिसका न कोई सिर है, न पैर। माधुरी आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । निबन्ध मैं बनारसीदास जी से सहमत हूँ जैसा कि उन्होंने अपने साहित्यिक तथा दार्शनिक विषयों पर लिखे गये हैं। कुछ 'निवेदन' में कहा है, कि 'उन्माद' उस हिन्दुस्तानी रेल निबन्धों में लेखक ने तुलसी, भिखारीदास, मीरा, आदि की तरह है, जिसमें सभी डिब्बे हैं, इसलिए सभी प्रकार की कृतियों की मार्मिक विवेचन की है। निबन्धों की के पाठक अपनी अपनी बौद्धिक हैसियत के अनुसार उसका भाषा प्रौढ़ और विषयों का विवेचन उच्च कोटि का है।। अानन्द उठा सकते हैं । मगर इसमें केवल अन्तर यह है ६-चारुचरितावली-लेखक, श्रीयुत कृष्णदेव कि हिन्दुस्तानी रेल में अधिकांश तीसरे दर्जे के डिब्बे उपाध्याय, प्रकाशक, पं० शालिग्राम शर्मा, व्यवस्थापक होते हैं, पर 'उन्माद' में इन्टरमीडियट और सेकेन्ड क्लास हरिहर-मण्डल, कालभैरव, काशी हैं। पृष्ठ-संख्या-१७५ के डिब्बों की प्रधानता है। और मूल्य ॥) है। श्रीमती कमला देवी जी की गल्पों में भावों की प्रधानता यह पुस्तक महापुरुषों के जीवन-चरितों का बालकोपहै , उनकी कहानियाँ दुःखान्त होते हुए भी सरस हैं । पुस्तक योगी संकलन है। इन जीवनचरितों में लेखक ने धर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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