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________________ २४६ सरस्वती अपने साथ ले लें जो कांग्रेस में न होते हुए भी उसके पार्लियामेंटरी बोर्ड की नीति से सहमत हैं । सन् १९०७ में सूरत- कांग्रेस के बाद गरम दलवाले अलग कर दिये गये थे और सन् १९१७ तक कांग्रेस आज-कल के लिबरलों के हाथ में रही थी । सन् १९१६ की लखनऊ - कांग्रेस में गरम दलवाले फिर शामिल हुए और सन् १६१६ तक नरम दलवाले कांग्रेस से बाहर हो गये। तब से अब तक कांग्रेस गरम दलवालों के हाथ में रही। मगर बम्बई - कांग्रेस के बाद से कांग्रेस पार्लियामेंटरी बोर्ड का ज़ोर अधिक हो गया है । इस नई पार्टी और पुराने नरम दलवालों में कोई विशेष अन्तर नहीं है । ऐसी परिस्थिति में लिबरलों का इस नई पार्टी के साथ मिलकर एक मुख्य उद्देश के लिए कार्य करना असंगत भी नहीं प्रतीत होता । इन सब बातों को दृष्टि में रखते हुए यह कहना पड़ता है कि देश की राजनैतिक परिस्थिति दिन दिन इतनी तीव्र गति से बदल रही है कि जब नया शासन विधान कार्य में परिणत किया जायगा उस वक्त क्या होगा, अभी से कुछ कहना कठिन है । फिर भी इस समय भिन्न भिन्न दलों के लोग अपने विचारों में तल्लीन होते हुए भी अन्य दलों के कार्यों को बड़ी सतर्कतापूर्वक देख रहे हैं । सच-मुच किसका साथ देना चाहिए, इस निर्णय पर पहुँचने के पूर्व बड़ी सावधानी की आवश्यकता है । X X X देश राज्यों की प्रजा का प्रश्न भी ज़ोर पकड़ रहा है । बहुत-सी देशी रियासतों की प्रजा वहाँ के शासन से सुखी और संतुष्ट नहीं है । प्रजातंत्र और जनसत्ता की बहती हुई लहर में वहाँ की प्रजा में भी ग्राशा का संचार होना स्वाभाविक ही है । इसी लिए देशी राज्यों की प्रजा अक्सर कांग्रेस कमेटी से देशी राज्यों की प्रजाओं के प्रति उसकी क्या नीति है, इसका स्पष्टीकरण करने को कहती रहती है । पहले भी एक बार श्रीमती एनी बेसेंट ने देशी राज्यों का स्वराज्य कहा था । महात्मा गांधी ने भी देशी नरेशों और उनकी प्रजात्रों को रामराज्य का स्मरण दिलाया था । मगर श्रीमती बेसेंट का वह स्वराज्य या महात्मा गान्धी का कहा हुआ रामराज्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ किसी भी भारतीय राजनीतिज्ञ का श्राज स्वीकार न होगा । अभी हाल में ही श्री भूलाभाई देसाई ने मैसूरराज्य में एक भाषण किया था, जिसमें उन्होंने देशी राज्यों की खूब प्रशंसा की और वहाँ की प्रजा को आदेश दिया कि नरेश सर्वेसर्वा हैं, राजा का वाक्य ही न्याय है, वही सब शक्ति का केन्द्र है । इसी लिए क़ानून की सूक्ष्म दृष्टि से राजा, न कि उसकी प्रजा, फ़ेडरेशन में राज्य का प्रतिनिधि बनकर जा सकता है। श्री देसाई के विचार में सारी राजशक्ति राजा के हाथों में ही रहनी चाहिए । यदि वह उसमें से कुछ हिस्सा अपनी प्रजा के सिपुर्द कर देता : है तो अपनी ही रियासत में दूसरी शक्ति खड़ी करता है । और तत्र प्रजा को दो अधिकारियों की श्राज्ञा माननी पड़ेगी। उनकी राय में कांग्रेस को रियासती मामलों में पड़ने का अधिकार ही नहीं है, इसी लिए देशी रियासतों की प्रजा को आपने आदेश दिया कि अपने राजाओं के प्रति राजभक्ति का ही भाव रक्खें। श्री देसाई ने यह भी कहा कि उनके विचार से जैसे प्रजातन्त्र के माने स्वाधीनता नहीं है, उसी प्रकार राजतन्त्र में स्वाधीनता असंभव नहीं है । श्री भूलाभाई देसाई श्राज-कल कांग्रेस के एक प्रमुख व्यक्ति हैं और जब तक उनके इस मैसूर में दिये हुए भाषण का कोई प्रतिवाद नहीं होता, क्या यह समझना अनुचित होगा कि यही नीति कांग्रेस की भी देशी रियासतों की प्रजा के प्रति है । श्री देसाई के भाषण का काफ़ी विरोध हुआ है । किन्तु वर्धा में कार्य समिति की जो बैठक अभी हाल में हुई थी उसमें इस विषय पर काफ़ी बहस हुई, मगर आखिर में निश्चय यह हुआ कि श्री भूलाभाई ने उक्त भाषण अपनी निजी हैसियत से दिया था और कांग्रेस की नीति से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है । इस सम्बन्ध में कांग्रेस की वही नीति है जो कलकत्ताकांग्रेस में घोषित हुई थी और पिछले अप्रैल में जो जबलपुर की बैठक में दुहराई जा चुकी है । X X X देश की राजनैतिक स्थिति पर विचार करते हुए आतंकवाद की ओर भी एक दृष्टि डालना श्रावश्यक है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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