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________________ संख्या ३] सिंहावलोकन २४५ उचित समझा कि अगले शासन-विधान में कांग्रेसवालों अन्तर नहीं है । ऐसी हालत में अच्छा तो यही था कि को पद भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए। इससे देश का आपस का भेद-भाव भूलकर देश-हित के लिए सब अधिक लाभ होगा और कांग्रेस-दल भी संगठित रहेगा, दल एक साथ मिलकर कौंसिलों में जाते। परन्तु स्वार्थी जिससे सरकार की नीति पर भी असर पड़ेगा। इनका लोग अभी से अपनी अपनी फ़िक्र में हैं । वे चाहते यह कहना है कि पद-ग्रहण करके सरकार के विधान का हैं कि कांग्रेसवाले काई पद न ग्रहण करें, तभी उनका विरोध किया जाय, जिससे शासन में गड़बड़ हो और काम बनेगा। फिर जब कौंसिलों में जाना है, चाहे वह सरकार को हार मानकर भारत की राष्ट्रीय मांगों को नये विधान को तोड़ने के लिए ही क्यों न हो, पूरी स्वीकार करना पड़े। सबसे पहले इस बात की घोषणा शक्ति का उपयोग करना चाहिए । यदि कांग्रेसवाले श्री सत्यमूर्ति ने की कि अगले शासन-विधान में कांग्रेस- लिबरलों तथा अन्य राष्ट्रीय विचारवालों से समझौता दलवाले बहुसंख्या में पहुँच कर सरकारी पदों पर कब्ज़ा करके अगले चुनाव को लड़ेंगे तो निस्सन्देह वे लोग कामकरेंगे। शुरू में कांग्रेस-दल के पदाधिकारियों ने न इस याब होंगे और सहज में ही डाक्टर बात का प्रतिवाद ही किया और न खुलकर स्वीकार ही सभी अच्छी जगहें उन लोगों के कब्जे में अा जायँगी, किया। मगर बात छिपी कब तक रह सकती थी। धीरे धीरे यह जिससे प्रतिक्रियावादियों को अपने हथकंडे साफ़ करने को स्पष्ट हो गया कि पार्लियामेंटरी बोर्डवाले पद ग्रहण करने मौका न मिलेगा। परन्तु यदि कांग्रेस ने अपनी ज़िद के की सोच रहे हैं। बस फिर क्या था ! कांग्रेसवाले फिर दो कारण अन्य राष्ट्रीय दलों से समझौता न किया तो अगले दलों में विभाजित हो गये। यही मसला वर्धा की कार्य- चुनाव में वर्तमान असेम्बली जैसी स्थिति का होना अससमिति की बैठक में पेश हुआ था। परन्तु कार्य-समिति म्भव न होगा और उन्हें किसी अल्पसंख्यक दल के को दोनों दलों को साथ रखना था इसी लिए उसने इस इशारों पर ही नाचना पड़ेगा। सवाल को थोड़े दिनों के लिए टाल दिया है । मगर कांग्रेसवालों का कौंसिलों में जाना और फिर कोई पद इतना गहन विषय कब तक टल सकता है ? कांग्रेस को न ग्रहण करना, 'गुड़ खाना और गुलगुलों से परहेज़' एक दिन तो अपनी नीति स्पष्ट करनी ही पड़ेगी । इसमें वाली कहावत के अनुसार ही होगा। नये शासन-विधान सन्देह नहीं कि डाक्टर अन्सारी, डाक्टर विधानचन्द्र राय, की अायोजना सन् १६१६ वाले कानून को दृष्टि-कोण में श्री आसफ़अली और चौधरी खलीकुज़्मा ने अभी हाल रखते हुए की गई है। यदि इसमें मंत्रिमंडल से बाहर रह में ही अपना एक वक्तव्य प्रकाशित किया था, जिसमें कर विरोध किया गया तो फ़िज़ल ही आपस में लड़कर उन्होंने कहा था कि कांग्रेसवालों को सभी सरकारी पदों अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया जायगा, साथ ही सरकार पर क़ब्ज़ा करना चाहिए । परन्तु यह तो तभी हो सकेगा का भी कुछ बने या बिगड़ेगा नहीं। जब कांग्रेसवाले भावी शासन-विधान में पद ग्रहण करने अभी हाल में युक्त-प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी ने म्युनिकी नीति स्वीकार करेंगे। सिपल्टी और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चुनाव के लिए अपना इस सम्बन्ध में एक बात और है। जिस नीति को श्री एक कार्य-क्रम प्रकाशित किया है। उक्त कार्यक्रम का भूलाभाई देसाई, श्री सत्यमूर्ति, डाक्टर अन्सारी, डाक्टर एक दसवाँ हिस्सा भी सफल नहीं हो सकता यदि कांग्रेसविधानचन्द्र राय तथा अन्य उनके साथी स्वीकार करने के वाले अगले चुनाव में अधिक संख्या में पहुँचकर कौंसिलों लिए कांग्रेस को राय दे रहे हैं वही नीति इस समय लिबरलों पर अपना कब्ज़ा नहीं करते और अपने जैसे विचारवालों तथा अन्य कई राष्ट्रीय विचारवाले दलों की भी है, जो का मंत्रिमंडल नहीं बनाते । ऐसी स्थिति में तो यदि कांग्रेस के सत्याग्रह-आन्दोलन के पक्ष में नहीं थे। उस कांग्रेसवाले कौंसिलों में जाते हैं तो उन्हें चाहिए कि वे दृष्टिकोण से कांग्रेसवालों और उन लोगों में कोई विशेष अभी से अपना संगठन करें, साथ ही ऐसे लोगों को भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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