________________
२४२
सरस्वती
[भाग ३६
डाक्टर ने हमें कितने ही कमरों को दिखाया। देखने की आये। सारी यात्रा में आदमी पीछे २० येन् या प्रायः बहुत-सी चीजें थीं, किन्तु हमें रेलगाड़ी भी पकड़नी थी, १६) रुपये खर्च हुए। इसलिए जल्दी बिदा होकर स्टेशन की ओर भागे। स्टेशन ६ बजे शाम को अन्योमार चल पड़ा। चार बजे पर पहुँचने पर दस मिनट गाड़ी के पाने में बाकी थे। के करीब जहाज़ कोबे बंदरगाह के बाहर खड़ा हो गया । ___तीसरे दर्जे की गाड़ी में सवार हो हम मोजी की ओर यह बंदरगाह बहुत बड़ा है । लहरों के आघात से चले । अब की रास्ते का या जापान देश का ग्राम्य दृश्य उसे बचाने के लिए यहाँ पत्थर की दीवारें बनाई गई हैं। देखने का मौका मिला । जगह जगह गाँव-कस्बे हैं । गाँवों बड़े से बड़ा जहाज़ भी तट तक पहुँच सकता है। हम लोगों तक में बिजली का प्रबन्ध है, जिसके सहारे लोग मोजा का जहाज़ तूशान के डेक पर जाकर लगा । कुछ भारतीयों बुनने की मशीनें तथा दूसरे छोटे छोटे यंत्रों को लेकर को यहीं उतर जाना था, इसलिए कोबे के कुछ भारतीय चीजें बनाते हैं।
उन्हें लेने आये थे । वहीं श्री कोतक और श्री आनन्दमोहन. ___इन चीज़ों के बेचने का सुन्दर प्रबन्ध सरकार की ओर सहाय से भेंट हुई। आनन्दमोहन जी भागलपुर (बिहार) से है । कस्बों में जगह जगह फ़ेक्टरियाँ हैं । जंगल यहाँ के रहनेवाले हैं । असहयोग में मेडिकल कालेज की पढ़ाई नेपाल की तरह बेदर्दी से काटे नहीं गये हैं । जगह जगह उन्होंने छोड़ दी थी । गया-कांग्रेस (१९२२ ई.) के बाद वे बाँस, देवदार तथा दूसरे वृक्षों के वन हैं। बाँस के कई जापान चले आये। तब से जापान में ही हैं। भारतीय जगह बगीचे भी लगे हुए हैं। बाँस से जापान में कुर्सी, राष्ट्रीय महासभा की जापानी शाखा के वे सभापति भी हैं, मेज़, टोकरी आदि सैकड़ों तरह की चीजें बनती हैं, और अपना बहुत-सा समय राष्ट्रीय कामों में ही देते हैं । इसलिए इसकी अोर खास ध्यान रखा जाता है। यदि पासपोर्ट का झगड़ा समाप्त कर लेने पर हमें अानन्दजापान की तरह भारत में भी बिजली का प्रचार हो और मोहन जी एक बौद्ध मंदिर में ले गये। जूता उतार छोटी छोटी मशीनों द्वारा लोग चीजें तैयार करें तो कर मंदिर में गये । जापान में मंदिर में घुसने से पूर्व वहाँ भी ऐसे ही कामयाबी हो सकती है।
जूते का उतार देना ज़रूरी है। खूब स्वच्छ विशाल ___ जापान का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है और हाल में पद्मासनासीन सुन्दर बुद्ध-मूर्ति है। फर्श पर गर्मी का एक तरह से यहाँ नाम नहीं है। इसलिए साफ़-सुथरी मुलायम चटाइयाँ बिछी हुई हैं । भगवान्
आदमी काम करने में खूब मुस्तैद रहते हैं । जापान बुद्ध के प्रति अपनी भक्ति प्रकट कर चुकने पर हम जलवायु में भूतल का स्वर्ग है। समय समय पर आनेवाले एक कमरे में ले जाये गये। वहाँ एक एक प्याला भयङ्कर भूकम्पों की इसके विरुद्ध कही जा सकती है, जापानी ढंग की चाय दी गई। सामने की दीवार पर नागरी किन्तु उसने तो जापानी लोगों को मृत्युंजय बना दिया अक्षरों में 'अमितायुस' लिखा टँगा देखकर पूछा। मालूम है। हँसते हँसते इन लोगों को मृत्यु का आलिंगन करते हुआ कि ब्रह्मदेश के भिक्षु श्री उत्तम यहाँ रह चुके हैं । वह देख बाहर के लोग आश्चर्य करते हैं।
उन्हीं के हाथ का लिखा है। वहाँ से कोतक महाशय के ___हम ५ बजे के करीब मौजी पहुंचे। जेटी पर थोड़ी यहाँ गये । हमारा जहाज़ कोबे में चार दिन ठहरनेवाला देर में मोटर-नौका मिली, और हम फिर जहाज़ पर चले था, इसलिए नारा, होरियोजी, क्यूतो आदि स्थानों के
देख श्राने का प्रोग्राम बना और ग्यारह बजे रात को हम * बाँस के करील की तरकारी बहुत स्वादिष्ट समझी फिर अपने जहाज़ पर लौट आये। जाती है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com