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भारतवर्ष की वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति
सिंहावलोकन
लेखक, श्रीयुत कृष्णमोहन, एम० ए०
धर कुछ दिनों से देश का राजनैतिक वातावरण इतना शीघ्र शीघ्र बदल रहा है कि कोई यह नहीं कह सकता कि अगले साल हवा का क्या रुख होगा । बम्बई - कांग्रेस में यह प्रस्ताव पास हुआ था कि वर्तमान शासन-प्रणाली का विरोध अन्दर और बाहर दोनों तरफ़ से किया जाय और इसी लिए बड़े बड़े वादे करके कांग्रेसवाले लेजिस्लेटिव असेम्बली में गये भी । इसमें सन्देह नहीं कि इस बार की असेम्बली में सरकार को कई बार हार खानी पड़ी, मगर देश के शासन में उसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सरकार अपनी दृढ़ नीति पर बराबर डटी रही । यह नहीं कहा जा सकता कि असेम्बली में सरकार की हार कांग्रेस-दल की वजह से हुई थी। सच बात तो यह थी कि सारी शक्ति श्री जिन्ना और उनके दल के हाथ में रही । जिधर वे मुड़ जाते, उसी को विजय मिलती थी। इसका पता साम्प्रदायिक निर्णय-सम्बन्धी प्रस्ताव के वाद-विवाद से अच्छी तरह लग जाता है । जबलपुर में कांग्रेस कार्य समिति के सामने जब कांग्रेस पार्लियामेंटरी बोर्ड के कार्यों का प्रशंसात्मक ब्योरा उस दिन पेश किया गया तब समिति ने उसकी कोई प्रशंसा नहीं की । इससे यह बात साबित होती है कि पार्लियामेंटरी बोर्ड के कार्यों को अन्य लोग ही नहीं, बल्कि कांग्रेस की कार्य समिति भी कोई विशेष महत्त्व नहीं देती है । यह तो रही कांग्रेस की बात ।
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उधर सरकार नये शासन-विधान को पार्लियामेंट से पास करवा कर उसे क़ानून का रूप देने में जी-जान से लगी थी । भारतवर्ष में जगह जगह हर तरह से, जहाँ तक संभव था, नये विधान का विरोध ही किया गया; मगर सरकार अपनी ही धुन में मस्त रही । ब्रिटिश मंत्रिमंडल में भारी परिवर्तन हुआ और सर सैमुएल होर की जगह मार्किस ग्राफ़ ज़ेटलैंड भारत मंत्री नियुक्त किये गये ।
नये भारत - मंत्री भारत में बंगाल के गवर्नर रह चुके हैं और उन्होंने हिन्दू - कला और इतिहास का अच्छा अध्ययन भी किया है । इसके अलावा वे शुरू में साम्प्रदायिक निर्णय के विरुद्ध भी रहे हैं । इसी से कुछ हिन्दुत्रों को श्राशा हुई कि नये भारत - मंत्री हिन्दू-हितों पर उस तरह कुठाराघात न करेंगे जिस तरह सर सैमुएल होर ने किया है । इसी बीच में 'इंडिया बिल' की ३०४ वीं धारा में कुछ सुधार किया गया । हिन्दू नेता समझने लगे कि अब क्याबाजी मार ली ! साम्प्रदायिक निर्णय जैसे विषधर साँप का दाँत तोड़ दिया गया। यही नहीं, इस सिलसिले में उनके बधाई के तार तक दौड़ने लगे । यह हाल देखकर मुसलमानों के कान खड़े हो गये । उन्होंने भी समझा कि सारा खेल मिट्टी में मिल गया और इतने दिनों की मेहनत व्यर्थ गई । वे उक्त धारा के परिवर्तन का विरोध करने लगे । भारत की इस साम्प्रदायिक चहल-पहल ने लार्ड ज़ेटलैंड को कुछ न करने दिया और उन्हें अपने एक वक्तव्य में यह स्पष्टरूप से घोषित करना पड़ा कि साम्प्रदायिक निर्णय में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया है और बिना पार्लियामेंट की आज्ञा के उसमें कोई रद्दोबदल आगे भी नहीं होगा। यह हुई नये भारत - मंत्री की २४३
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