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________________ संख्या ३] जापान में २४१ को देखने और नहाने आते हैं । बेप्पू के चश्मे सबसे था, जिसमें दो मिनट में अंडा उबल जाता था। इस अधिक प्रसिद्ध हैं। स्थान का नाम शिन है। ___ हम पहाड़ पर चढ़ रहे थे। हमारे श्रास-पास कितने अन्त में हम हचीमन् कुंड पर पहुंचे। यहीं हमारे ही गाँव थे। कृषकों के घरों में से कुछ खपडैल से छाये साथियों को स्नान करना था। हमने तो नग्न-स्नान हुए थे, और कुछ तिनके से। भीतर देखने की बड़ी देखकर अभी सब्र करना ही पसन्द किया। एक योकन इच्छा थी, किन्तु आज उसका मौका न मिला । हाँ, के तीसरे तले पर हमें जगह मिली । वहाँ से नीचे बेप्पू तक हम देख रहे थे कि यहाँ के किसान भी काम पर कोट- की भूमि ढालू चली गई थी। जगह जगह देवदार तथा पतलून के साथ ही जाते हैं । लम्बा किमोनो दर असल दूसरे वृक्षों की शोभा निराली थी। बीच बीच में किसानों है भी नहीं काम करने के वक्त की पोशाक । भारत में भी के खेत और मकान तथा कस्बे दिखाई पड़ रहे थे । खाना काम करते वक्त यदि कुर्ता जाँघिया रक्खा जाय, तो खाना था। ५० सेन् (छः आने) में ऐसा और इतना कितना अच्छा हो । दूसरा चश्मा चिनोइके है। यहाँ खाना भारत में भी नहीं मिल सकता, और ऊपर से परिएक गहरा कुंड है, जिसका रंग लाल रोरी या चारिकाओं की दण्डवत् मुफ़्त में। सिंदूर जैसा है। यहाँ के चश्मों के बारे में लोगों का कोबे ५-५-३५ विश्वास है कि वे कितने ही प्रकार के रोगों को दूर नहाने के बाद 'इन्स्टिट्य ट अाफ़ बलनेत्रो थेराप्यूकरते हैं। टिक्स' देखना निश्चित हुआ। बहुत दूर न था । बेप्पू-तप्तफिर कुछ दूर ऊपर चलने पर कन्नावा मिला । बीसों कुण्डों से प्रायः डेढ़ मील उत्तर-पश्चिम साढ़े चौबीस एकड़ जगह रंगबिरंगी कीचड़ खौल रही थी। कहीं हलवा-सा भूमि में यह चिकित्सा-संस्था स्थापित है। प्रबन्ध इसका पक रहा था, कहीं हथेली भर के बिलकुल अर्ध गोल क्यूश का सरकारी विश्वविद्यालय करता है, और स्थापना बुलबुले थोड़ी थोड़ी दूर पर निकल रहे थे, कहीं कितने सरकार की सहायता से हुई है। संस्था का मुख्य उद्देश फुट नीचे से भाफ निकल रही थी। पथदर्शिका ने सब बेप्पू के तप्तकुण्डों का चिकित्सा के लिए वैज्ञानिक ढङ्ग से जगहें बतलाई। इन सभी स्थानों में दस से पंद्रह सेन् इस्तेमाल करना है। संस्था की भूमि के भीतर दो गर्म तक हर यात्री को देना पड़ता है, किन्तु जगहों को खूब पानी के सेते भी हैं । एक में कार्बोनिक एसिड की प्रधास्वच्छ और सजा देखकर पैसे के सदुपयोग से चित्त प्रसन्न नता है और दूसरे में गन्धक की। दोनों का तापमान हो जाता है । भारत में भी सीता-कुंड, राजगिर, सोरना ६० डिग्री सेंटीग्रेड के बराबर है । संस्था में ७० रोगियों जैसे कितने ही गर्मकुंड हैं, किन्तु वे कहाँ इतने आकर्षक के रहने की जगह है। मासिक शुल्क के अनुसार वे बनाये गये हैं ? यहाँ हर एक कुंड या कुंड-समुदाय पहली, दूसरी, तीसरी- इन तीन श्रेणियों में रक्खे जाते हैं। के आस-पास सुंदर बगीचा लगा हुआ है । सस्ते जल- पहले दर्जे में मकान और खाने का खर्च १३४ रुपया पान का प्रबन्ध है, फ़ोटो और पुस्तकों की दूकाने हैं, प्रतिमास पड़ता है, तीसरे दर्जे में ५२ रुपये के करीब । और ऊपर से पथदर्शिकानों का हर एक कुंड की कितने ही डाक्टर तथा रोगी-परिचारिकायें यहाँ शुश्रूषा के गहराई, उसके तापमान, उसके इतिहास पर लेक्चर होता लिए बराबर तैयार रहती हैं । बहुत से स्नानागार या स्नानहै। नहाने के लिए सुन्दर जगहें हैं, ठहरने के लिए स्थान बने हुए हैं, जिनमें इन तप्त-स्रोतों से ओषधि-स्नान, नज़दीक में भी योकन हैं। कार्बोनिक एसिड-स्नान, विद्युत्-जलस्नान, वायु-बुद्बुद और ऊपर चढ़ने पर हमारा मोटर हरियाली से लदे स्नान आदि कितने ही प्रकार के स्नान कराये जाते हैं। एक पहाड़ की जड़ में जा पहुँचा । सारा दृश्य जादू का-सा चिकित्सागृह नये नये यन्त्रों से सुसज्जित हैं। द्वार पर हम था । पहाड़ की जड़ में एकदम हरे पानी का एक कुंड लोगों को जूता खुलवाकर स्लीपर दिया गया, फिर एक फा. ७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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