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श्री मावलीप्रसाद जी हिन्दी के सुलेखकों में हैं। सरस्वती में पहले आप बहुत लिखते थे । प्रसन्नता की बात है कि आपने लिखना फिर शुरू कर दिया है । गोस्वामी तुलसीदास ने अपने मानस में कतिपय दुर्लभ पदार्थों का प्रसंगवश स्थान स्थान पर उल्लेख किया है। वही सब इस लेख में श्रीवास्तव जी ने एक क्रम से -
संकलित किया है।
पदाथ
लेखक, श्रीयुत मावलीपसाद श्रीवास्तव
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सार में ऐसी कोई वस्तु नहीं गया है ? कारण उसी चौपाई के आगे मिलता है। जो दुर्लभ हो। पुरुषार्थी के “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा”—यह शरीर सभी लिए सभी पदार्थ सुलभ हैं साधनाओं का मार्ग और मुक्ति का द्वार है; इसी अथवा हो सकते हैं। इसी कारण यह सुर-दुर्लभ है। इसके ज़रिये चारों पदार्थ
लिए कहा गया है कि 'सकल अर्थ, धर्म, काम और मेक्षि-का साधन हो सकता है । ISRAE L पदारथ हैं जग माँही । कर्म- दुर्लभ नर-शरीर पाकर जिसने कुछ भी पुरुषार्थ न किया,
N हीन नर पावत नाहीं।' जिसने लोक-परलोक का, किसी एक का भी साधन न सत्कर्म-रहित और पुरुषार्थ-हीन जीवों को बहुत-से पदार्थ किया, वह अभागी शोचनीय है। मनुष्य-शरीर बहुत कभी नहीं मिल सकते । परन्तु कुछ अधिक मूल्यवान् दुर्लभ है, इसलिए इसका कुछ-न-कुछ सदुपयोग करना पदार्थ भी हैं जो सचमुच दुर्लभ ऐसे हैं जो सत्कर्मशील ही चाहिए ।
और पुरुषार्थ-पूर्ण व्यक्तियों को भी शीघ्र नहीं मिल (२) अमृत का नाम सुना जाता है, विष प्रत्यक्ष सकते । मिलें कैसे ? हर एक जंगल में चंदन नहीं होता, देखने को मिलता है। सुधा दुर्लभ है, विष सर्वत्र प्रत्येक हाथी में गजमुक्ता नहीं पाया जाता, प्रत्येक सुलभ है। हंस जल्दी नहीं मिलता। कौए, उल्लू और पत्थर में माणिक्य नहीं रहता और हर गली-कूचे में बगुले सभी जगह बहुतायत से पाये जाते हैं । सजन पुरुष नहीं मिल सकते । दुर्लभ और मूल्यवान् सुनिय सुधा देखिय गरल, सब करतूति कराल । पदार्थ कहीं-कहीं, कभी-कभी, किसी-किसी अधिकारी जहँ तहँ काक, उलूक, बक, मानस सकृत मराल ॥ अथवा सत्पात्र व्यक्ति को ही मिल सकते हैं । इस लेख सुधा और राजहंस की तरह सच्चे संत और यथार्थ में तुलसीकृत रामायण के अाधार पर थोड़े में यह सजन भी संसार में बहुत कम मिलते हैं। मनुष्यबतलाने का प्रयत्न किया जायगा कि ये अत्यन्त दुर्लभ समाज में वेषधारी बगुलों, स्वाँग बनानेवाले बहुरूपियों पदार्थ कौन-कौन हैं।
और धर्त कौवों की कमी नहीं। जहाँ हूँढो. ये काफ़ी (१) सबसे पहले तो यह मनुष्य-शरीर ही बहुत दुर्लभ तादाद में मिलेंगे। इसी लिए सजन के सत्संग का मिलना है। यह चाहे मिट्टी का कच्चा घड़ा हो क्षणभंगुर हो, विषय- बहुत दुर्लभ बतलाया गया है । "सत्संगति दुर्लभ संसारा । वासनाओं और रोग-शोक का घर हो, जो कुछ भी हो, निमिष दंड भरि एको बारा ॥ (उत्तरकाण्ड)” एक परन्तु है बहुत दुर्लभ । “बड़े भाग्य मानुष तन पावा। ही बार, एक घड़ी या एक पल भर के लिए भी सुर दुर्लभ सद्ग्रंथन्ह गावा। (उत्तरकाण्ड)" ऐसा क्यों सजनों की संगति मिलना दुर्लभ है। यदि घंटे दो घंटे कहा गया है ? यह क्षणभंगुर शरीर सुरदुर्लभ क्यों बतलाया के लिए भी सत्समागम हो जाय तो फिर क्या कहना
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