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________________ संख्या।३ विजय के पथ पर २०७ दुनिया के चार सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। कितनी ही बार श्रेष्ठ खेल कर भी वे हार जाते हैं। अभी हाल में आपको ६ गोल का हैन्डिकेप मिला है। बंगाल में फुटबाल की टीमें बहुत हैं। सूखे ग्राउंड में | फुटबाल- फुटबाल का खेल भी हिन्दुस्तान में बहुत वे हिन्दुस्तान की अच्छी अच्छी फ़ौजी टीमों से लोहा ले लोकप्रिय है और वह भी खासकर बंगाल में । कलकत्ते में सकती हैं। आई० एम० ए० शील्ड का सबसे बड़ा फुटबाल टूर्नामेंट मोहनबगान की वर्तमान टीम भी बहुत विख्यात है। होता है। उन दिनों एक एक खेल में लाखों श्रादमियों भारत के अन्य स्थानों में होनेवाले बड़े बड़े टूर्नामेंटों में की भीड़ हो जाती है। इस टूर्नामेंट में बाहर से हिन्दुस्तान वह खेली है और यहाँ की सर्वोत्तम टीमों पर विजय प्राप्त की प्रायः उत्तम से उत्तम फ़ौजी टीमें आकर भाग लेती की है। १६२५ में वह शिमला के डूरंड-कप में सेमीहैं। यह टूर्नामेंट सन् १८६३ में प्रारम्भ हुआ था। इसके ४३ वर्ष के जीवन में सिर्फ एक बार सन् १६११ में एक भारतीय टीम को विजय मिली। वह है भारतविख्यात मोहनबगान' । मोहनबगान के बाद अब तक और किसी भी अन्य भारतीय टीम को यह गौरव नहीं मिला। १६११ में जब मोहनबगान ने यह ट्रमिंट जीता था तब फ़ाइनल में उस साल की सर्वश्रेष्ठ फ़ौजी टीम ईस्ट यास थी। उसके गोलकीपर का खेल और [मोहम्मडन स्पोर्टिंग-क्लब, कलकत्ता] मोहनबगान के प्रख्यात भादुरी खड़े हुए रहमान, सत्तार, मासूम, हबीब, अमीर, ज़ाफ़र, सबो, मोहुद्दीन । बन्धुत्रों का अद्भुत बाल-संचालन बैठे हुए-शेख इब्राहीम, सयद, एम० के० अनवर, रशीद, रहमत । स्मरण-योग्य है। ऐसे खिलाड़ी ज़मीन पर–जुमाखाँ, एम० आई० शिराज़ी, अब्बास । अब तक बंगाल में नहीं हुए। इसके बाद भी मोहनबगान को यह टूर्नामेंट जीतने के फाइनल में खेली थी। यह पहला ही अवसर था कि एक | अन्य अवसर मिले, परन्तु कुछ तो भाग्यदोष से और भारतीय टीम फ़ौजी टीमों से भिड़कर इतनी दूर तक कुछ खेल के बुरे निरीक्षण से विजय नसीब नहीं हुई। पहुँची। इस खेल में बेलजियम के स्वर्गीय सम्राट अलबर्ट, | भारतीय टीमों के लिए जो सबसे बड़ी बाधा उपस्थित भारत के वाइसराय, पंजाब के गवर्नर और स्वर्गीय पंडित | होती है वह यह है कि यह टूर्नामेंट बरसात के बुरे दिनों मोतीलाल जी एवं अन्य विख्यात राष्ट्रीय नेता भी उपमें होता है। भारतीय खिलाड़ी नंगे पाँव खेलते हैं। इस स्थित थे। सम्राट अलबर्ट ने स्वयं मोहनबगान को बधाई | कारण उनमें सूखे ग्राउंड की स्पीड नहीं रहती। उनके दी और उसके खेल की बड़ी प्रशंसा की । मोहनबगान में | पाँव बूटधारी प्रतिद्वन्द्वियों के साथ नहीं टिकते और खेलनेवालों में श्री जी० पाल जो गोस्टोपाल के नाम से |
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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