SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०८ ___ सरस्वती [भाग ३६ फुटबाल के क्षेत्र में विख्यात हैं, २५ वर्ष तक फुटबाल अगले साल आस्ट्रेलियावालों ने इसे बुलाया है। यहाँ की में खेल चुके हैं। इनके जैसे खिलाड़ी शताब्दियों में ही फुटबाल एसोसिएशन ने यहाँ की टीम को ओलिम्पिक हुआ करते हैं । फ़ौजी टीमों में तो इनके नाम का बड़ा गेम्स में भी भेजने का विचार किया है। ग्राशा है कि भय है। खेल में इनसे गेंद निकाल लेना बहुत ही कठिन भारतीय फुटबाल-टीम हाकी टीम की तरह ही किसी दिन बात समझी जाती है। फुटबाल के समालोचकों ने तो भारत का गौरव बढ़ावेगी। इन्हें 'चीन की दीवार' की उपाधि दे रक्खी है। दूसरे खेल-अन्य खेलों में भारत का स्थान नगण्यदूसरी भारतीय टीम जिसने भारतीय फुटबाल में सा है। बिलियर्ड में अभी हाल में ही बंगाल के प्रत्यूषनया रेकार्ड किया है वह है मोहम्मडन स्पोर्टिङ्ग। इसने देव जो सर्वभारतीय शैम्पियन हैं, इंग्लेंड गये हैं । शतरंज कलकत्ते की फुटबाल लीग को २ वर्ष तक लगातार जीता में किसी समय सुलतानखाँ संसार में सर्वश्रेष्ठ थे। गोल्फ है। यह सौभाग्य अभी तक अन्य किसी भी टीम को नहीं में भारतीयों में मल्लिकबन्धु प्रसिद्ध ही हैं । प्राप्त हुआ है। इस टीम में हिन्दुस्तान के चुने हुए भारतीय युवकों ने संसार के सभ्य राष्ट्रों की प्रतियोखिलाड़ी हैं। ये खेलते तो इतना कलापूर्ण नहीं, परन्तु गिता में खेलों की दौड़ में कैसी सफलता अब तक प्राप्त बड़ी हिम्मत और बड़े जोश से अपने प्रतिद्वन्द्वी पर अपने की है, यही हमने इस लेख में संक्षेप में वर्णन किया है । खेल का असर डाल देते हैं। ___ भारत की युवकशक्ति के विकास के मार्ग में बहुत-सी हिन्दुस्तान के बाहर जाकर भी यहाँ की टीमों ने अड़चनें हैं। भारतीय युवकों में प्रतिभा, क्षमता और 'अच्छा नाम कमाया है। सर्वप्रथम १९२४ में बंगाल से उत्साह की कमी नहीं है, परन्तु उन्हें संगठित करके उनकी कुछ खिलाड़ी सिंगापुर, पेनांग, जावा, सुमात्रा आदि शक्ति को विकसित करने का यथेष्ट प्रयत्न नहीं होता । स्थानों को गये थे । बाद में १६३३ में एक टीम सीलोन स्पोर्ट्स के क्षेत्र में यदि हम पाश्चात्य राष्ट्रों से बराबरी का भेजी गई थी। वहाँ उसे बहुत सफलता मिली। पिछले दावा करना चाहते हैं तो हमको उनसे बहुत कुछ सीखना साल दक्षिण अफ्रीका के निमंत्रण पर एक टीम वहाँ भी होगा । हमें भी अपने राष्ट्रीय जीवन में स्पोर्ट अर्थात् खेलों गई । वहाँ कितने ही मैच उसने वहाँ के अन्यान्य प्रांतों को वही महत्त्व देना होगा जो विदेशों में है । हमें खेलों की टीमों के साथ खेले । तीन टेस्ट मैच भी हुए थे, पर के प्रति रुचि रखनी होगी, सक्रिय भाग लेना होगा और कहीं भी हार नहीं खाई। अफ्रीकावालों ने भारतीय टीम हर प्रकार से उन्हें लोकप्रिय बनाना होगा । हमें समके खेल की बड़ी प्रशंसा की और वहाँ के कार्पोरेशनों ने झना चाहिए कि युवकशक्ति के विकास में ही राष्ट्र का इसका सम्मान किया। इसकी यह सफलता देखकर ही उत्थान है। गीत लेखक, श्रीयुत रामविलास शर्मा मधुकर, छोड़ अब मधुपान । मूंदती आतुर किरण-दल गमन-वेला जान । ढल गये सुख-स्वप्न के पल, अस्त रे दिनमान । हेर, कौन विनाश-माया तिर रही जल पर मलिन-घन खोल प्राची-द्वार, छायाअरुणिमा, हत-छवि कमल-वन; स्तब्ध करती विश्व को; अवरुद्ध खग-कुल-गान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy