SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संख्या २] प्रेमचन्द जी की रचना-चातुरी का एक नमूना १७५ + + सकता जितना कि मेरे उपन्यास-'उलझन' और प्रेम- असन्तुष्ट स्त्रियाँ अपने पतियों के गरीब मित्रों के चन्द जी की इम कहानी--'जीवन का शाप' में साथ निकल भागने को उद्यत हैं । इतने पर भी यदि मौजूद है। प्रेमचन्द जी यह कहें कि उन्होंने 'उलझन' को नहीं ___'उलझन' में क्या है ? तीन भिन्न स्वभाव के पढ़ा, उसका दर्शन भी नहीं किया, यह कहानी उन्होंने विवाहित स्त्री पुरुपों के जोड़े परस्पर मिलते हैं। उसके आधार पर नहीं लिखी, यह तो उनके बम्बईस्त्रियाँ अपने पतियों को अपनी चि के अनुकूल नहीं प्रवास का एक ताजा अनुभव है, तो यह उनकी पाती और पति अपनी स्त्रियों को अपनी रुचि के 'जिद' के सिवा और क्या कहा जायगा। अनुकूल नहीं पाते। पति सोचते हैं, उन्हें अमुक स्त्री चोरी का दोप छिपाने के लिए प्रेमचन्द जी ने न मिलकर अमुक मिली होती तो अच्छा होता अपनी कहानी में जो परिवर्तन और परिवर्द्धन और त्रियाँ सोचती हैं, उन्हें अमुक पति न मिल किया है, अब जरा उस पर भी विचार कर लीजिए। कर अमुक मिला होता तो अच्छा होता। उनमें ऊपर वाग़ की घटना का उल्लेख किया गया है। कुछ की इच्छायें किसी हद तक पूर्ण भी हो जाती हैं, वहाँ अनुचित प्रेम का प्रस्ताव 'उलझन' में पुरुष __ पर उन्हें फिर भी असन्तोप बना ही रहता है। की ओर से हुआ है। पर प्रेमचन्द जी की कहानी और इसी असन्तोष के साथ उपन्यास की समाप्ति में प्रस्ताव पहले-पहल स्त्री की ओर से हुआ है, यद्यपि होती है। पुरुप बहुत पहले से आकर्षित है और सदैव अवसर प्रेमचन्द जी ने इमो असन्तोष का नाम 'जीवन की प्रतीक्षा में रहा है। मेरा खयाल है, यह अस्वाभाका शाप' रखा और बिलकुल इसी लाट पर कहानी विक है। ऐसे प्रस्ताव प्रायः पुरुप की ओर लिख डाली। कहानी में उन्होंन थोड़ा-सा परिवर्तन से ही होते हैं, स्त्री की स्वीकृति तो सदैव मौन और परिवर्धन भी किया है, पर उनकी कहानी का होती है और उसके प्रस्ताव भी प्राय: संकेत के वही अंश असुन्दर हो गया है। 'उलझन' में जो बात रूप में होते हैं। यहीं से प्रेमचन्द जी ने साट कई पृष्ठों में कही गई है उसका उन्होंने एक पैराग्राफ़ में परिवर्तन किया है और यहीं से कहानी बिगड़नी या एक लाइन में उल्लेख कर दिया है। ऐसा न करते शुरू हुई है। तो बड़ी कहानी को इतना छोटा रूप कैसे देते ? एक अब जरा विचार कीजिए। जैसे 'उलझन' का उदाहरण लीजिए.---"शीला ने भ्रमर को अपनी भ्रमर शीला के लिए व्याकुल है, वैसे ही इस कहानी कोमल बाहुओं के सहारे...धीरे धीरे ले जाकर पेड़ के का कावस जी शीरी के लिए व्याकुल है । वह महीनों पास बैठाया ।” (उलझन पृ. ११०) से अवसर की ताक में है। अपनी कटु-भाषिणी स्त्री __ "शीरी ने उनका हाथ पकड़ कर एक बेंच पर को मायके भेज आया है । उसको तलाक़ देने और बिठा दिया ।" (प्रेमचन्द जी की कहानी हंस पृष्ठ ३६) नया घर बसाने की बात सोच चुका है। ऐसे इस प्रकार के पचीसों उदाहरण दिये जा अवसर पर शीरी का उससे प्रस्ताव करना कि सकते हैं। 'अभी इसी दम तुम्हारे साथ चलूंगी' उसके लिए ___'उलझन' के पात्र एक दूसरे के घर पर या दिल्ली खुशी का सबसे बड़ा दिन है। पर वह कायर हो के रोशनआरा-बारा में मिलते हैं। प्रेमचन्द जी के जाता है । इधर कायरता जोर पकड़ती है, उधर शीरीं ये पात्र भी एक-दूसरे के घर पर या बम्बई के एक का पति आ जाता है। कावस जी कहते हैं--"उसे .. पब्लिक पार्क में मिलते हैं। ऊपर की दोनों घटनायें मना लीजिए।" पर वह उपेक्षा करके चला जाता है। एक बाग़ की ही हैं और दोनों में अपने पतियों से तब वहाँ कावस जी की स्त्री मायके से आ धमकती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy