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________________ १७४ पाठक मेरे उपन्यास की शीला और प्रेमचन्द जी की इस शीरीं की परीक्षा करें। उनका कैसा दाम्पत्य जीवन है और उस जीवन से किस प्रकार विद्रोह करने पर तुली हुई हैं, यह देखकर स्वयं सोचें कि क्या दोनों एक ही नहीं हैं। नाम और स्थान का भेद कोई भेद नहीं है । प्रेमचन्द जी की कहानी में दो पात्र और हैं। गुलशन और शापुर जी। ये दोनों भी 'उलझन' की मानवती और धर्मदास से मिलते-जुलते हैं -- गुलशन कटुभापरण में और शापुर जी धन कमाने में। एक उदाहरण लीजिए । गुलशन अपने ग़रीब पति से कहती है- " जब तुम्हारे घर में रोटियाँ न थीं तब मुझे क्यों लाये ।” (हंस जून १९३५ पृष्ठ ३३) इधर मानवती अपने ग़रीब पति से कहती है- “तुमने मुझे क्या सुख दिया है, क्या बनवा दिया है- ” (उलझन पृष्ठ ५) " सरस्वती माना कि ग़रीब घरों में सर्वत्र स्त्रियाँ इसी प्रकार की बातें कर सकती हैं और करती हैं। इसलिए ऐसे पात्रों को उपस्थित करना जो सर्वत्र पाये जाते हैं, चोरी नहीं है । परन्तु जिस परिस्थिति में, जिस उद्देश से, जिस समस्या को सुलझाने के लिए ये पात्र उपस्थित किये गये हैं, वे सब एक ही हैं। इसलिए यह भी चोरी के अन्दर अवश्य ही आवेगा । प्रेमचन्द जी की कहानी में चार पात्र हैं और उलझन में छ: हैं । प्रेमचन्द जी ने जैसे कहानी को ३ -- धर्मदास -- धनी व्यापारी । ४ - - शीला - - सभ्य महिला पर पति से सन्तुष्ट । -भ्रमर -कवि । ५ ६- चम्पा - सरल पर समझदार स्त्री । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ संक्षिप्त किया है वैसे ही पात्रों को भी ६ की जगह ४ कर दिया है। दोनों के पात्रों का संक्षिप्त पर तुलनात्मक परिचय मैं नीचे कोष्ठक में देता हूँ । उलझन १--जगतनारायण--ग़रीब पर विद्वान, मेहनती और १ - कावस जी - गरीब पर विद्वान, मेहनती, और सन्तोषी | सन्तोषी | २- मानवती - पति की ग़रीबी के कारण कटुभाषिणी । इस प्रकार उलझन के ६ पात्रों की जगह प्रेमचन्द जी ने ४ पात्रों से ही काम चलाया है । 'उलझन' लगभग ३०० पृष्ठों का उपन्यास है और कहानी 'हंस' के सिर्फ ७ पृष्ठों में समाप्त हुई है। संक्षिप्त करने में दो पात्रों का कम कर देना उचित ही था । 'उलझन' में एक बुढ़िया का ज़िक्र है, जो अपने घर में दूसरों को आया देख उदास हो जाती है। प्रेमचन्द्र जी की कहानी में भी यह बुढ़िया इसी रूप में आई है । ( उलझन पृष्ठ २१७ हंस पृष्ठ ३७ ) इस बुढ़िया का 'उलझन' में कोई नाम नहीं रक्खा गया है, इसलिए प्रेमचन्द जी ने भी अपनी कहानी में इस बुढ़िया का कोई नाम नहीं दिया । विवाहित स्त्री-पुरुषों का वर्णन होते हुए भी 'उलझन' में किसी के बच्चे नहीं हैं । यह इसलिए कि मेरा बच्चों की समस्या पर अलग. से लिखने का विचार है। पर प्रेमचन्द जी के सामने 'उलझन' ही है, इसलिए विवाहित स्त्री-पुरुषों का वर्णन आने पर भी उनकी कहानी में भी किसी के बच्चे नहीं हैं। मैं मानता हूँ कि मौलिकता मेरे हिस्से में नहीं पड़ी है। एक ही बात को, एक ही समस्या को एक ही साथ अनेक मनुष्य एक ही ढङ्ग से सुलझा सकते हैं। पर दो कहानी लेखकों को एक ही प्रश्न पर विचार करने के तरीक़ों में उतना साम्य नहीं हो जीवन का शाप २-- गुलशन - पति की ग़रीबी के कारण कटुभाषिणी । ३--शापुर जी -- धनी व्यापारी । ४ - शीरीं - - सभ्य महिला पर पति से असन्तुष्ट । ५ - इस पात्र को उन्होंने कावसजी में मिला दिया है । ६ – इस पात्र को उन्होंने गुलशन में मिला दिया है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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