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________________ संख्या २ ] परन्तु स्फुट रचनाओं के परे जहाँ तक . ' ज्योत्स्ना' का सम्बन्ध है, हिन्दी सङ्केतवाद को पंत जी से बहुत आशा है । 'ज्योत्स्ना' में भारतीय मौलिकता तथा सङ्केतवाद की सजीवता है । वास्तव में हिन्दी का वही एक मात्र सङ्केत वादी पूर्ण-ग्रन्थ है । विभूति-संसार के जीवन का वह हिन्दी में प्रथम और अनुपम काव्य है । सङ्केत के सहारे उसमें स्वर्गिक एवं मानवीय ग्रामात्र (spirits) का सुन्दर मेल हुआ है | उसका सौन्दर्य हृदय और लक्ष्य की क्रीड़ा में सन्निहित है । विश्व एकीकरण का मनोरम चित्र नाटक के प्रत्येक पात्र के प्रत्येक वाक्य से व्यंजित हुआ है। एक-एक शब्द मानो कह रहा है साहित्य में सङ्केतवाद Our meddling intellect misshapes The beauteous form of things. लहरें भी एक नियम में बद्ध हैं। उनका जीवन, विश्वजीवन का एक निमंत्रित अंश है । वे अपना परिचय काव्यमय श्राध्यात्मिकता में देती हैं अपने ही सुख से चिर- चंचल, हम खिल-खिल पड़ती हैं प्रतिपल; जीवन के फेनिल माती को, लेले, चल - करतल में टलमल, चिर जन्म मरण को हँस हँस कर हम आलिंगन करतों पल-पल, फिर-फिर असीम में उठ उठ कर, फिर-फिर उसमें हो हो श्रीफल । अँगरेज़ी - साहित्य से प्रभावित कवियों में सङ्केतवाद रोमेटिसिज्म का एक अंग नहीं रह जाता, क्योंकि उनकी साङ्केतिक भावनाओं में सर्वरूप-दर्शन (objectivity) की अधिकता के कारण स्वरूप-दर्शन (subjectivity) का आधार नहीं रह जाता और रोमेटिसिज्म का वैयक्तिक मान घट जाता है । बँगला का छायावाद चण्डीदास तथा विद्यापति के सरस रोमेटिसिज्म का उपपन्न है और इसी लिए वह सुसंस्कृत है । वर्तमान बँगला - छायावाद - द्वारा प्रभावित कवियों में 'प्रसाद जी' सर्वश्रेष्ठ हैं। मेरी समझ में तो हिन्दी के साम्प्रत साहित्य-संसार में एक वे ही सफल सङ्केतवादी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १५५ कलाकार हैं । बौद्ध-युग के दर्प का आध्यात्मिक प्रकाश और आकर्षणमय वंगीय कला उन्हें साहित्य-संसार में सङ्केतवाद के ज्योतिर्मय संदेशवाहक के रूप में लाते हैं । उनकी रचना में भावों की तीव्रता, कला का सुन्दर परिधान पहन कराती है और इन्द्रिय-जगत् अप्रत्यक्ष सत्य के धार पर स्थित होकर स्थिर सौन्दर्य की वस्तु बन जाता है । उनके सङ्केत में अनुभूति की सरसता और प्रीति - भावना की सजीवता है । अप्रत्यक्ष सत्य को प्रत्यक्ष जगत् की वस्तु मान कर उन्होंने एक स्थल पर सङ्केत किया हैजीवन-वन में उजियाली है । किरणों की यह कोमल-धारा, बहती ले अनुराग तुम्हारा; फिर भी प्यासा हृदय हमारा, व्यथा घूमती मतवाली है । हरित - दलों के अन्तराल से बचता-सा उस सघन जाल से वह समीर किस कुसुम -बाल से माँग रहा मधु की प्याली है १ एक घूँट का प्यासा जीवन, निरख रहा सबको भर लोचन; कौन छिपाये है उसका धन ? कहाँ सजनि, वह हरियाली है ? हिन्दी के ही सङ्केतवाद अथवा कबीर के रहस्यवादद्वारा प्रभावान्वित कवियों में श्री माखनलाल जी चतुर्वेदी 'भारतीय श्रात्मा' हैं । उनमें कबीर ही सी तीव्रता, शक्ति और भावुकता है और यही कारण है कि उनकी कला नितान्त नग्न है । उनके अन्तर में चलनेवाला जीवन वर्तमान राजनीति की हथकड़ियों की भंकार कर कारागृह में भी उस लक्ष्य 'सत्य' को पाने को छटपटाता रहता है । उनमें मौलिकता का दर्शन पाकर भी हम कबीर ही के समान उद्दण्डता पाते हैं । श्रात्मा की प्रेरणा उनके कवि को बाँध-सी देती है । प्रत्यक्ष विश्व की जघन्यता 'भारतीय आत्मा' को अप्रत्यक्ष के सुन्दर तन में छिप जाने को बाध्य करती है — www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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