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________________ जापान के रास्ते में सरस्वती के विद्वान लेखक श्रीमान राहुल सांकृत्यायन जी इस बार जापान गये हैं । आपने संस्कृत के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का तिब्बती- अनुवाद से उद्धार किया है। उसके उपोद्घात लिखने की सामग्री प्राप्त करने के लिए ही आपने सुप्राच्य की यह लम्बी यात्रा की है। इस लेख में आपने अपने शंघाई पहुँचने का हाल लिखा है और यह भी बताया है कि चीन की राष्ट्रीय सरकार का और चीन बोल्शेविकों का कैसा संघर्ष हो रहा है। शाड़-घाई ग्रन्योमारू २ ५ ३५ अप्रेल को उठकर केबिन के छिद्र से देखा । ग्रासमान में कुहरा छाया हुआ था । कहाँ मई का महीना और कहाँ कुहरा ! प्रायः दिन भर कुहरा ही रहा । जहाज़ हर दस दस मिनट पर इसलिए भोंपू बजाता था कि अँधेरे से आकर कोई जहाज़ टकरा न जाय । आवाज़ अच्छी नहीं मालूम होती थी। मालूम होता था, जंगल में कोई भैंस केली पड़ गई है और चिल्ला रही है । २६ तारीख को दोपहर को हम २६ अक्षांश में जा रहे थे, अर्थात् प्रायः बनारस के बराबर के। उस वक्त बनारस में कैसी गर्मी पड़ती होगी, दोपहर को घर से बाहर निकलना कितना मुश्किल होता होगा, यह तो वहाँ के रहनेवाले ही जानते होंगे । यहाँ दोपहर को भी टेम्परेचर सिर्फ़ ६३ डिग्री था। मालूम होता था, गर्मी का मौसिम है ही नहीं । मुझे तो रह रह कर भ्रम हो जाता था कि हम दक्षिणी गोलार्द्ध के २६ अक्षांश में तो नहीं जा रहे हैं । २८ ३० तारीख को सर्दी और अधिक बढ़ गई । डेक पर जाने पर मालूम होता था, हम बनारस के माघपूस में हैं । आज १२ बजे हमारा जहाज़ याङ्-सी महानद और सागर के संगम पर पहुँचा । याङ-सी की महाजल - राशि समुद्र के जल को अपना रंग दे रक्खा है । आज हमें रास्ते में बहुत-से द्वीप मिले । सभी थे पहाड़ी । दाहनी ओर के द्वीप की खाड़ी में सैकड़ों मा नौकायें थीं । बाई ओर दूर, पीछे की ओर हटकर, समुद्र में एक पहाड़ दिखाई पड़ रहा था । हमारे ग्रास्ट्रियन साथी हर हन्कल बतला रहे थे कि वह रमणीय द्वीप बौद्ध मठों से भरा है और उसका नाम 'पोतो' है। ल्हासा में भी मैंने सुना था कि चीन में भी पोतला नाम का एक द्वीप है, जिस पर बहुत से मठ और मन्दिर हैं, और जो बहुत हरा-भरा है । शायद वह यही पोतोate होगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पानी सभी जगह एक-सा न था । कहीं उथला पानी न आ जाय और जहाज़ वहीं फँस जाय, इस लिए अन्य मारू देर तक मार्गदर्शक स्टीमर की प्रतीक्षा करता रहा । कुछ दूर तक याङ्-सी में चलने के बाद वह बाई ओर से आनेवाली बाङ-पू नदी में लेखक, श्रीयुत राहुल सांकृत्यायन १०१ www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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