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सरस्वती
[भाग ३६
[शाङ्-घाई जापान द्वारा ध्वस्त नगर में खेती]
मुड़ा । यह नदी छोटी है । शाङ्-घाई इसी नदी के तट पर बसा हुआ है। यद्यपि जहाज़ अँधेरा होते ही शाङ्घाई पहुँच गया था, तो भी उस वक्त हम क्या देखते ? और फिर यह चीन है। शाङ्-धाई के विदेशी अधिकृत भाग से भी तो डाकू आदमियों को पकड़ ले जाते हैं। हमारा प्रफ़ देखना समाप्त हो गया था। हमने उसके और यात्रा के प्रथम खंड का पार्सल बना लिया। चिट्ठियाँ भी तैयार कर रक्खीं।
१ ली मई को बड़ा-नाश्ता साढ़े सात बजे मिल गया । एन० वाई० के० जापान की सबसे बड़ी जहाज़ी कम्पनी है। इसके जहाज़ सातों समुद्रों में बराबर घूमा करते हैं। यहाँ शाङ-घाई में नदी के दोनों तरफ़ इसके कितने ही बड़े बड़े गोदाम हैं। उस वक्त हमारा जहाज़ नदी के दाहने तट पर खड़ा था। इस तरफ़ भी कुछ बस्ती है, किन्तु असली शहर नदी के बायें तट पर है। यहाँ कपड़ा बुनने के कई जापानी कारखाने हैं। अन्योमारू बम्बई से हज़ारों गाँठे रुई लाया था। वह धड-धड़ उतारी जा रही थीं। नौ बजे हमें पार जाने की मोटर-नौका मिली। नदी बहुत चौड़ी नहीं है। कलकत्ते की भागीरथी से आधी होगी। लेकिन जहाज़ों, अगिनबोटों, मोटरनौकाओं तथा नावों और डोंगियों की भरमार है। यहाँ डालर-लाइन का पैसेंजर-जहाज़ खड़ा है और वहाँ फ्रेंच मेसाजिरी मारीतीम का विशाल जहाज़ । परले पार सफ़ेद जापानी गन-बोट तोपों से सुसजित खड़े हैं। पार के घरों के शिखर गगन-चुम्बन कर रहे थे--विशेषकर सासून बिल्डिंग । यह बीस मंजिला मकान इस ओर पूर्व का सबसे ऊँचा मकान समझा जाता है। यह उसी यहदी सासून-खानदान का मकान है जिसकी कितनी ही कपड़े की मिले बम्बई में चल रही हैं । हम लोग चुंगीवाली जेटी पर गये।
शाङ-घाई शहर तीन भागों में बँटा है - इन्टनेश्नल कन्सेशन, फ्रेंच-कन्सेशन और बृहत्तर शाङ्-घाई । पहला भाग अँगरेज़ों ने १८४२ ईसवी में लिया था। उस समय शाङ्-घाई एक छोटा-सा ग्राम था। पीछे फ्रांसवालों और अमेरिकनों तथा दूसरी जातियों का भी हिस्से मिले ।
[शाङ्-घाई नदी और नौकायें]
[शाङ-घाई नदी और सासून बिल्डिङ्स]
Ovenonende