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________________ १०० प्राप्त करना चाहते हैं उनका स्वराज्य गर्हणीय है । उनके स्वराज्य की अपेक्षा मृत्यु हज़ार दर्जे बेहतर है। वर्तमान काल में हमारे सामने स्वराज्य की वही दोन शकले विद्यमान हैं। हमारे कांग्रेसी भाई हैं जो इस जातीय अखंडता को इसलिए मिटा देना चाहने हैं कि उन्हें स्वराज्य प्राप्त हो जाय। वे कहते हैं कि भारत के पुराने इतिहास को भुला दो; महाराज शिवाजी, महाराना प्रताप, गुरु गोविंदसिंह और वीर वैरागी को भूल जाओ, क्योंकि उनको जातीयता का ठीक ज्ञान न था । आज हमको जातीयता का ठीक-ठीक ज्ञान है; न हमें हिन्दूत्व की परवा है, न हिन्दू - इतिहास की; हम तो स्वराज्य लेना चाहते हैं। हमने एक नई जातीयता ढूँढ़ निकाली है, जिसमें पिछला सारा जमाना मिट जायगा और इस देश में एक नई जातीयता उत्पन्न होगी। मैं इस 'थियरी' या कल्पना को बिलकुल ग़लत समझता हूँ। यह उन लोगों का सा ख़याल है जिन्होंने मुग़लों के समय में बड़ी आसानी के साथ स्वराज्य लेना चाहा। उन्होंने अपना 'स्व' बदल लिया । हमारे ये भाई भी अपना 'सेल्फ' मिटा देना चाहते हैं। मैं ऐसे स्वराज्य को धिक्कार देता हूँ। अगर हमें इसी तरीके से स्वराज्य जीवन की ज्योतिर्धारायह किसके ललाट पर चमका प्राची का प्रभात-तारा ? सरस्वती [ भाग ३६ लेना है तो इससे भी ज्यादा एक और आसान तरीक़ा है । हम सब अपना धर्म छोड़कर ईसाई बन जायें। हमारा 'स्व' इंग्लेंड के लोगों का 'सेल्फ' हो जायगा और हम स्वतन्त्र हो जायेंगे। यह बात कि इससे हमें वास्तविक स्वतन्त्रता मिलेगी या नहीं, सर्वथा असंगत है । सवाल तो सिर्फ समझने का है । हम अपने 'स्व' को मिटाकर उसे इंग्लेंड के 'स्व' में जज्ब करवा देंगे तो इंग्लेंड का राज्य हमारे लिए स्वराज्य का समानार्थक हो जायगा । जीवन की ज्योतिर्धारा प्रतिगुंजित पल्लव- पल्लव पर तो ! हिम का प्रखर स्रोत प्यारा ? ज्योतिर्वाण जीवन की ज्योतिर्धारा जन महाकाश के नील नीड में भर जाने दे तनिक- रश्मियों से मेरी तमसा द्वारा ! मंगलमय यह बेला, नोरवंवातावरण, शान्त उपवन-वन; द्रुमद्रुम पर, उत्पल - उत्पल पर छारे सफल कामना उन्मन ! जीवन की ज्योतिर्धारासंचित कर दे नव कलियां में अपना स्नेह-पुलकसारा ! जागे पद्म - मुकुल - मानस में सुख मधु - नैश- जागरित अलिगण; सिहरा क्यों यह विश्व विहङ्गम ? लेखक. श्रीयुत सप्रसाद सिंह किरणों की स्वर्णाभ शलाका भेद चली तम का अन्तर्तम ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat एक अन्य युक्ति जो मैं इस ' थियरी' या कल्पना के विरुद्ध देना चाहता हूँ वह यह है कि हम हिन्दू अपने आपको चाहे कितना ही भुला दें और नई जातीयता की खातिर हिन्दू-जातीयता को मिटा दें, पर पिछला सारा अनुभव हमें यही बतलाता है कि मुसलमान लोग कांग्रेस की इस थियरी को मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं। वे किसी भी अवस्था में न इस्लाम को भुलायेंगे और न नई जातीयता को ग्रहण करेंगे । इसलिए कांग्रेस की यह थियरी जहाँ तर्क की दृष्टि से बिलकुल गलत है, वहाँ क्रियात्मक दृष्टि से भी सर्वथा संभाव्य है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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