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________________ संख्या २ ] यह तो काल्पनिक बात है । मैं यह बताना चाहता हूँ कि यह बात काल्पनिक नहीं है । इस देश में मुग़लों का राज्य था । मुग़लों से पहले अन्य कई मुसलमान वंशों की हुकूमत रही। वे शासक और उनके सिपाही जिनको वे साथ लाये थे, इस देश के निवासी बन गये । क्या उस युग के हिन्दुओं ने उस राज्य को अपना राज्य समझा या ग़ैरों का ? अगर उन्होंने उसे ग़ैरों का समझा तो क्या वे ग़लती पर थे या जिन लोगों ने उन विदेशी शासकों को अपना समझा वे सचाई पर थे ? स्वराज्य क्या है ? इस बात को स्पष्ट करने के लिए हमें समझ लेना चाहिए कि स्वराज्य लेने के दो विभिन्न तरीक़ हैं । एक तो यह कि हम राज्य की शकल को बदल दें और दूसरा यह कि हम अपनी शकल को बदल लें । इस देश पर जब मुसलमानों ने आक्रमण किये और स्थान-स्थान पर अपना शासन क़ायम करने का प्रयत्न किया तब भारत की हिन्दू आबादी में दो प्रकार के मनुष्य पाये जाते थे । एक वे थे जिन्होंने यह समझा कि उनके लिए स्वराज्य लेना बहुत मामूली बात है । उन्होंने अपना धर्म छोड़ दिया, अपने पूर्वजों को तिलांजलि दे दी, अपनी जातीयता को त्याग दिया और इस्लामी मज़हब इख्तियार कर लिया । मुसल मान होते ही वे इस्लामी राज्य को अपना राज्य समने लगे । उनके लिए स्वराज्य लेने का तरीका बहुत आसान था । केवल 'स्व' को बदल लेने से, विना किसी प्रकार का बलिदान किये, बिना किसी चरित्र के, बगैर किसी मेहनत के उन्होंने स्वराज्य प्राप्त कर लिया । उस समय जितने लोग स्वधर्म तथा स्वजाति को छोड़कर मुसलमान बन गये वे महमूद ग़ज़नवी और तैमूर को अपना भाई समझने लगे और नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के हिन्दुओं पर किये गये अत्याचार उन्हें हर्ष एवं गर्व प्रदान करनेवाले कार्य दिखलाई पड़ने लगे । और, आज उन लोगों के वंश के जितने मुसलमान भारत आबाद हैं उन सबके लिए इस्लामी शासन स्वराज्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ९९ हो गया है । भारत के इतिहास के सम्बन्ध में उनका दृष्टिकोण हो बदल गया है। स्वराज्य-प्राप्ति का यह एक निहायत आसान तरीका है । एक अन्य तरीक़ा था जिससे दूसरे लोगों ने स्वराज्य प्राप्त करने का प्रयत्न किया । उसका एक उदाहरण हमें राजपूतों के इतिहास में मिलता है । उसका दूसरा उदाहरण हमें महाराज शिवाजी और मराठों के उत्कर्ष में मिलता है। उसका एक और उदाहरण हमें गुरु गोविंदसिंह, वीर वैरागी और सिक्ख साम्राज्य में मिलता है। राजपूतों, मराठों और सिक्खों ने भी स्वराज्य प्राप्त किया। स्वराज्यप्राप्ति का इनका तरीक़ा पहले तरीके से सर्वथा विरुद्ध था । इन्होंने बड़े भारी बलिदान किये, बड़ी-बड़ी यातनायें उठाई, अपने कुटुम्बियों एवं महिलाओं तक को क़त्ल करवा दिया। इस प्रकार इन्होंने अपनी गिरी हुई जाति के अंदर सचरित्र उत्पन्न किया और नवजीवन संचार किया। यह उसी नये जीवन की बदौलत था कि महाराष्ट्र के मामूली देहातियों ने और पंजाब के ग्रामीणों ने अपने-अपने साम्राज्य बना लिये । परन्तु स्वराज्य - प्राप्ति का यह तरीका इस लेख के विचार के बाहर की है 1 बात खैर, इन लोगों ने 'स्व' का अर्थ बिलकुल दूसरा समझा। इनके 'स्व' या 'सेल्फ' और उनके 'स्व' या 'सेल्फ' में जमीन-आसमान का फर्क है। थोड़ी देर विचार करने से मालूम होगा कि वे लोग मिस्त्रियों और ईरानियों के समान थे जिन्होंने अपनी जातीयता का नाम मिटा दिया और अपने आपको एक विदेशी जाति के अंदर जज्ब करवा दिया। नस्ल और खून, जाति और रक्त की जो अखंडता हजारों सालों से उनकी रगों में चली आती थी उसे उन्होंने मिटा दिया और अपनी कायरता या पतन के कारण कुछ से कुछ बन गये । यह अखंडता जातीयता है; यही जाति का जीवन और उसकी आत्मा है। जो लोग इस अखंडता को मिटाकर दूसरे तरीके से स्वराज्य www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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