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________________ ९२ सरस्वती पुरोहित जी साधारण स्थिति में जन्म लेकर जयपुर जैसे समृद्ध राज्य के प्रधान सचिव बने, फिर भी आपमें अभिमान लेशमात्र भी न था, विनय सादगी और सज्जनता आप उदाहरण थे । पुरोहित जी हिन्दी के लेखक तथा वृद्ध साहित्यसेवी थे । मित्रता, वीरेन्द्र, सती-चरित, चमत्कार श्रादि पुस्तकें लिखी हैं तथा शेक्सपीयर और भतृहरि के शतकत्रय के सुन्दर अनुवाद हिन्दी में किये हैं । हिन्दी-कोविद - रत्नमाला में आपका चरित प्रकाशित हुआ है 1 शैशवकाल से लेकर मृत्युपर्यंत आपको विद्या का व्यसन बना रहा। मृत्यु के समय श्रापकी अवस्था ७३ वर्ष की थी और इस समय आप ग्रामीणों के जल-कष्ट से दुखी होकर एक बड़ा बाँध बँधवाने में दत्तचित्त थे । आपकी मृत्यु से जयपुर का एक श्रेष्ठ व्यक्ति उठ गया है । नेत्ररोग की व्यापकता भारत नाना प्रकार की आधि-व्याधियों का घर बन गया है । उसे उन सबसे मुक्त करने के प्रयत्न सरकार तथा इतर परोपकारी जन यथाशक्ति बराबर करते रहते हैं, परन्तु रक्तबीज की तरह वे घटने के स्थान में बढ़ती ही जाती हैं और सो भी नये नये रूपों में । ऐसी दशा में पुरानी व्याधियों का उन्मूलन होना पीछे रह जाता है और सर - कार तथा दूसरे लोग नई व्याधियों का प्रतीकार करने में लग जाते हैं । फलतः पुरानी व्याधियाँ जड़ पकड़ लेती हैं। उदाहरण के लिए आँखों के रोग को ही लीजिए । श्राज क्षय, काला आज़ार, गर्दन तोड़ बुखार के आगे उसकी ओर कौन ध्यान देता है ? परन्तु वह इस दशा में देशव्यापी होता जा रहा है। अलीगढ़ के श्रीमोहनलाल जी जैसे कुछ लोग लाख अखबारों में अन्धों के पक्ष में शोरगुल मचाया करें, पर किसे फुर्सत है कि उनकी ओर समुचित रूप से ध्यान दे। काशीनिवासी स्वर्गीय राजा मोतीचन्द ने इधर कई वर्ष से नेत्ररोगियों की सहायता के लिए विशेष आयोजन किया था, पर उनके निधन से अब वह सहारा भी नहीं रहा । अन्धसहायक सभा के मन्त्री श्री मोहनलाल जी का कहना है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३६ सिन्ध के बाद अन्धों की संख्या संयुक्तप्रान्त में ही सबसे अधिक है। इस बात में सिन्ध सारे भारत में सबसे आगे है । वहाँ की जन-संख्या में लाख पीछे ३०० आदमी अन्धे हैं । संयुक्त प्रान्त में वही संख्या २५० है । अतएव यह दूसरे नम्बर पर है। आँख के रोगों में रोहे का रोग 'ट्राकोमा' सबसे भयंकर होता है। आँख के रोगियों में २५ फ़ीसदी लोग इसी रोग से ग्रस्त हैं । पञ्जाब में आँख के रोगियों में ५० फ़ी सदी लोगों में यह फैला हुआ है । भारत में श्राविष्कार सदा की भाँति पेटेन्ट आफ़िस की रिपोर्ट इस बार भी निकली है । इस रिपोर्ट से उन आविष्कारों का ब्योरा प्राप्त होता है जिनका पेटेन्ट श्राविष्कार करनेवाले प्राप्त करते हैं। इसकी वार्षिक रिपोर्टों से प्रकट होता है कि नये विष्कारों की संख्या बराबर बढ़ती जा रही है । यह प्रसन्नता की बात है कि भारतीय यंत्र - विशारद अपने कार्य में उत्साहपूर्वक लगे हुए हैं और वे कोई न कोई नया विष्कार करते ही रहते हैं । पेटेंट आफ़िस की पिछली रिपोर्ट से प्रकट होता है कि रिपोर्ट के साल पेटेंट कराने की दरख्वास्तें १,००७ श्रई, जिनमें ३४२ भारत की थीं और इनमें १२६ अकेले बंगाल की थीं । आविष्कार की प्रक्रिया में बंगाल अन्य प्रान्तों की अपेक्षा पहले की ही तरह अब भी आगे है । बिजली के भिन्न भिन्न उपयोगों के सम्बन्ध के यन्त्रों का पेटेन्ट कराने के लिए इस वर्ष गतवर्ष के मुक़ाबिले में ७० फ़ीसदी अधिक दरख्वास्तें आई । परन्तु इनमें भारत की लगभग ८ फ़ीसदी ही रहीं । यह प्रसन्नता की बात है। कि बिजली - सम्बन्धी यन्त्रों के आविष्कारों की ओर लोगों का ध्यान विशेषरूप से रहा है। इसी तरह खेती के छोटे छोटे यन्त्रों के आविष्कारों की ओर भी भारतीय श्राविकारकों ने विशेष रूप से ध्यान दिया है और उनमें भी सिंचाई सम्बन्धी यन्त्रों का आविष्कार करने में । इस प्रकार के यन्त्रों के निर्माण में पंजाबवालों ने विशेष रूप से दिल - चस्पी दिखाई है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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