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________________ सम्पादकीय नोट संख्या १] क्रम पहले की ही भाँति जारी ही नहीं है, किन्तु ऐसा जान पड़ता है कि निवार्य रूप से जारी ही रहेगा । हिन्दुत्रों की संख्या में जो यह कमी हो रही है उसका एक कारण धर्मपरिवर्तन भी है । और यह धर्मपरिवर्तन धर्म - जिज्ञासा के भाव से उतना नहीं होता है जितना कि आर्थिक संकट या सामाजिक अनाचार के कारण होता है । यह सच है कि हिन्दू ग्रार्थिक संकट से अपने जाति-बन्धुत्रों की रक्षा करने में असमर्थ हैं, पर वे सामाजिक अनाचार से उनकी रक्षा ज़रूर कर सकते हैं । खेद की बात है कि उनका ध्यान इस ओर जाकर भी नहीं जा रहा है । १९३१ की मनुष्यगणना की रिपोर्ट से प्रकट होता है कि पंजाब, बंगाल और ट्रावनकोर एवं कोचीन राज्यों में हिन्दुओं की संख्या जहाँ घटी है, वहाँ मुसलमानों और ईसाइयों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है । पञ्जाब, बंगाल और आसाम में मुसलमान वृद्धि पर हैं । पंजाब में हिन्दू १६२१ की गणना में ३,१८१ प्रतिशत थे, जो घट कर व २,६८४ प्रतिशत रह गये हैं । इसी प्रकार बंगाल में वे १९२१ में ४,३२० प्रतिशत थे जो अब घटकर ४,३०४ प्रतिशत रह गये हैं । हाँ, आसाम में मूलनिवासियों के कारण उनकी संख्या में कुछ वृद्धि हुई है, परन्तु उस प्रान्त में मुसलमानों की जो संख्या वृद्धि होती जा रही है उसके आगे हिन्दुओं की यह संख्या वृद्धि नगण्य है । उधर ट्रावनकोर और कोचीन में ईसाइयों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। गत दस वर्षों में भारत में उनकी संख्या में ३२५ प्रतिशत की वृद्धि हुई है । ट्रावनकोर में और कोचीन में तो गत ५० वर्षों के भीतर उनकी संख्या कहीं दुगुनी और कहीं तिगुनी बढ़ गई है । और इनकी इस संख्या वृद्धि में अछूतों ने बहुत अधिक योग दिया है । दक्षिण में अछूतों के साथ जो होता है वह लोक - विदित है । और इस अवस्था के होते हुए भी यदि वहाँ के सभी अछूतों ने अपना धर्मपरिवर्तन अभी तक नहीं किया है तो इसे आश्चर्य ही समझना चाहिए। यह वहाँ के 'अछूत' हिन्दुओं के दुराग्रह का परिणाम है कि दक्षिण में ईसाइयों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है । व्यवहार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ९१ निस्सन्देह हिन्दुत्रों की संख्या का यह भारी हास हिन्दुओं के लिए विशेष चिन्ता की बात है । उनके समाज के जो लोग उनसे असन्तुष्ट होकर धर्म-परिवर्तन करेंगे वे लोग उनके साथ प्रेम का व्यवहार कैसे कर सकेंगे ? देश में इस समय सम्प्रदायवाद का जो ज़ोर है उसका एक कारण यह भी है । अतएव हिन्दुत्रों को इस विकट समस्या की ओर विशेष सावधानी से ध्यान देना चाहिए और उन्हें अपनी जाति का पुनः संगठन इस विधि से करना चाहिए कि निम्न समझी जानेवाली जातियाँ भविष्य में वैसी न समझी जायँ । यही नहीं, उनके साथ ऐसा व्यवहार हो कि वे स्वयं अपने को सबके समान ही समझें । स्वर्गीय पंडित गोपीनाथ पुरोहित स्वर्गीय रायबहादुर सर गोपीनाथ पुरोहित की मृत्यु हो गई । श्राप जयपुर - राज्य के नररत्न थे । पुरोहित जी का जन्म संवत् १६१६ के चैत्र में हुआ था । आप केवल ३ वर्ष के ही थे जब श्रापके पूज्य पिता का स्वर्गवास हुआ था । अनेक आर्थिक एवं कौटुम्बिक आपदाओं को वीरता पूर्वक फेलते हुए ग्रापने बी० ए० (नर्स) और एम० ए० की उच्च उपाधियाँ प्राप्तकर जयपुर के महाराजा - कालेज का मुखोज्ज्वल किया। जयपुर-राज्य के श्राप सर्वप्रथम ग्रेजुएट थे । श्रतएव श्रापका राज्य द्वारा हाथी, घोड़े और राजकीय लवाजमे से स्वागत किया गया । प्रारम्भ में पुरोहित जी जयपुर- कालेज में प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए। आपकी साधारण योग्यता से प्रसन्न होकर जयपुर-नरेश ने आपको जयपुर-राज्य की ओर से आबू अपना वकील नियुक्त किया। इस सम्मानित पद पर नियुक्त होनेवाले श्राप सर्वप्रथम जयपुरी थे । १५ वर्ष तक इस पद पर आपने बड़ी तत्परता और योग्यता से कार्य किया । इन सेवाओं के फलस्वरूप आपको 'रायबहादुर' की उपाधि मिली । इसके पश्चात् पुरोहित जी पुलिस मेम्बर हुए और अन्त में जयपुर - केबिनेट के वाइस प्रेसिडेण्ट तथा होममेम्बर बनाये गये । पेन्शन होने के पूर्व आप 'सर' की उपाधि से विभूषित किये गये । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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